चाहे कोई भी जीते, चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा

Edited By ,Updated: 03 Jun, 2024 04:57 AM

no matter who wins there will be challenges

हर कोई 2024 के चुनाव नतीजों का बेसब्री से इंतजार कर रहा है, जो 4 जून को जारी होंगे। आखिरी चरण का मतदान 1 जून को था। इस बीच, राजनीतिक दल जीत हासिल करना चाहते हैं और दावे-प्रतिदावे कर रहे हैं। कई लोग दांव लगा रहे हैं और भाजपा पसंदीदा है।

हर कोई 2024 के चुनाव नतीजों का बेसब्री से इंतजार कर रहा है, जो 4 जून को जारी होंगे। आखिरी चरण का मतदान 1 जून को था। इस बीच, राजनीतिक दल जीत हासिल करना चाहते हैं और दावे-प्रतिदावे कर रहे हैं। कई लोग दांव लगा रहे हैं और भाजपा पसंदीदा है। ‘इंडिया’ ब्लॉक भी कम संभावनाओं के साथ दौड़ में है। चाहे कोई भी जीते, चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दावा है यदि वह जीतते हैं तो ऐपेटाइजर और मुख्य भोजन उनके तीसरे कार्यकाल में आएगा। प्रचार के दौरान मोदी ने कहा, ‘‘तीसरे कार्यकाल में बड़े फैसलों का इंतजार करें। मैं पहले से ही एक रोडमैप पर काम कर रहा हूं जो जल्द ही पूरा होगा।’’ 

हालांकि कई पूर्वानुमान मोदी की प्रभावशाली जीत या उनकी पार्टी के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने का संकेत दे रहे हैं, लेकिन राजनीतिक परिणाम अभी भी उतार-चढ़ाव में हैं। 2004 में भाजपा के प्रचार के बावजूद यू.पी.ए. ने सरकार बनाई। मोदी का तीसरे कार्यकाल के लिए प्रयास सभी क्षेत्रों में उनकी विरासत को सुरक्षित करने से कहीं अधिक है। यह प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के तीन कार्यकाल के रिकॉर्ड को पार करने का एक साहसिक प्रयास है। हालांकि मोदी ने नि:संदेह महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। सबसे पहले उन्हें अपना अधूरा एजैंडा पूरा करना होगा। इनमें समान नागरिक संहिता लागू करना, ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’, भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना और साहसिक भूमि और श्रम सुधार जारी रखना शामिल है। इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना उसकी सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। 

राज्यों और लोकसभा के लिए एक साथ चुनाव कराने का मोदी का प्रस्ताव ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की अवधारणा से जुड़ा है। इसके तहत देश में स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय तक सभी चुनाव एक साथ कराने होंगे। यदि इसे लागू किया जाता है, तो यह परिवर्तन अधिक सुव्यवस्थित और कुशल चुनावी प्रणाली को जन्म दे सकता है। मोदी ने पहले ही इस प्रस्ताव के लिए आधार तैयार कर लिया है क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक समिति ने लोकसभा और सभी राज्यों के चुनाव एक साथ कराने और स्थानीय चुनावों को लोकसभा/ विधानसभा चुनावों के साथ जोडऩे का सुझाव दिया है। हालांकि, परिसीमन अभ्यास में संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करना शामिल है, और इससे पहले दशकीय जनगणना पूरी होनी चाहिए। 

इस परिसीमन के महत्वपूर्ण राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं, विशेषकर दक्षिणी राज्यों के लिए। जब जनसंख्या  के आधार पर परिसीमन किया गया तो दक्षिण को नुकसान होने का डर था। सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए एक हलफनामे में कहा गया है कि परिसीमन से लोकसभा में सीटों की संख्या 543 से बढ़कर 888 और राज्यसभा में 250 से 384 हो जाएगी। मोदी ने नए संसद भवन में बैठने की पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित की है। दक्षिण ने अपनी जनसंख्या कम करते हुए जनसंख्या नियंत्रण नीति को प्रभावी ढंग से लागू किया है। परिणामस्वरूप, दक्षिणी राज्यों में परिसीमन प्रक्रिया में कम से कम 100 सीटें खोने का जोखिम है, जिससे संभावित रूप से उत्तर-दक्षिण राजनीतिक विभाजन हो सकता है। यह विवाद का मुद्दा बन सकता है क्योंकि दक्षिण में क्षेत्रीय दलों को लगता है कि मौजूदा शासन का ध्यान उत्तर पर अधिक है। 

एक और विवादास्पद मुद्दा समान नागरिक संहिता (यू.सी.सी.) है, जो भाजपा का मुख्य मुद्दा है। यह कानूनों का एक प्रस्तावित सैट है जो भारत के सभी नागरिकों पर उनके धर्म की परवाह किए बिना लागू होगा। भाजपा शासित उत्तराखंड ने समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में पहला कदम पहले ही उठा लिया है और अन्य भाजपा शासित राज्य भी जल्द ही इसका अनुसरण करेंगे। हालांकि, इस जटिल मुद्दे में विविध धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं में सामंजस्य स्थापित करना शामिल है, जो संभावित रूप से देश के सामाजिक ताने-बाने को बाधित कर सकता है।

विपक्ष का एक चुनावी मुद्दा था कि भाजपा संविधान में संशोधन करेगी और इसमें से ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटा देगी। विपक्ष को चिंता है कि पर्याप्त बहुमत वाली मोदी सरकार प्रस्तावना में बदलाव कर सकती है और 42वें संशोधन द्वारा जोड़े गए ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटा सकती है। इस बात की बहुत कम संभावना है कि ‘इंडिया’ गठबंधन सभी को आश्चर्यचकित कर सकता है और अपने आंकड़ों में सुधार कर सकता है। चुनावों ने अतीत में आश्चर्य और परेशानियां पैदा की हैं। भारत की ताकत उसके सुचारू रूप से सत्ता परिवर्तन के इतिहास में निहित है। हम जल्द ही पता लगा लेंगे कि क्या सुचारू सत्ता हस्तांतरण होगा।-कल्याणी शंकर
 

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