आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रत्याशियों से किसी दल को गुरेज नहीं

Edited By ,Updated: 15 Jun, 2024 05:45 AM

no party has any objection to candidates with criminal background

राजनीतिक दलों में चाहे जितने भी वैचारिक और सैद्धान्तिक मतभेद हों किन्तु एक मुद्दे पर देश के सभी राजनीतिक दलों में मौन सहमति है। यह चुप्पी है आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसद विधायक और अन्य जनप्रतिनिधियों के चुने जाने को लेकर।

राजनीतिक दलों में चाहे जितने भी वैचारिक और सैद्धान्तिक मतभेद हों किन्तु एक मुद्दे पर देश के सभी राजनीतिक दलों में मौन सहमति है। यह चुप्पी है आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसद विधायक और अन्य जनप्रतिनिधियों के चुने जाने को लेकर। लोकसभा चुनाव के दौरान किसी भी राजनीतिक दल ने लोकतंत्र की पवित्रता को बचाए रखने के लिए आपराधिक रिकार्ड वाले प्रत्याशियों को दरकिनार करना तो दूर बल्कि सत्ता का समीकरण बिठाने के लिए बढ़-चढ़ कर टिकट दिए। सत्ता का स्वार्थ इस कदर हावी है कि इस मुद्दे पर कोई चर्चा तक करना नहीं चाहता। यही वजह रही कि लोकसभा के चुनाव में अपराध और राजनीति चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। राजनीतिक मंचों से दलों ने एक-दूसरे पर कई तरह के आरोप लगाए पर आपराधिक आरोपों के नेताओं को टिकट देने के मामले में सब के सब मौन रहे। 

18वीं लोकसभा चुनाव में कुल 543 सीटों में से 251 नव-निर्वाचित सांसद ऐसे हैं, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। हत्या, बलात्कार, लूट और डकैती जैसे अपराध के गंभीर आरोपों से नेताओं का दामन दागदार है। ऐसे में देश में अपराध और भय से मुक्ति दिलाने की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। आपराधिक आरोपों के विजयी उम्मीदवारों में भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे है। भाजपा के 240 विजयी उम्मीदवारों में से 63 सांसदों पर हर तरह के मामले विचाराधीन हैं। कांग्रेस के 99 विजयी उम्मीदवारों में से 32 सांसदों, सपा के 37 विजयी उम्मीदवारों में से 17 सांसदों और तृणमूल कांग्रेस के 29 विजयी उम्मीदवारों में से 7 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। लोकसभा चुनाव में 170 विजयी उम्मीदवारों ने बलात्कार, हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध आदि से संबंधित मामलों सहित गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। अपराधी छवि के जीतने वाले उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में 539 सांसदों में से 233 सांसदों ने अपने विरुद्ध आपराधिक मामले घोषित किए थे। इनमें से 159 सांसदों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 

पिछली लोकसभा में जहां कुल सदस्यों के 43 फीसदी अर्थात 233 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकद्दमे थे, तो अब नई 18वीं लोकसभा में 46 फीसदी के साथ ये संख्या 251 हो गई है। इसमें 3 फीसदी का इजाफा हो गया है, लेकिन 2009 से मुकाबला करें तो 15 साल में इसमें 55 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस लोकसभा में 170 गंभीर आरोपियों में 27 सांसद सजायाफ्ता हैं, वहीं, 4 पर हत्या के मामले हैं। 15 सांसदों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के इल्जाम हैं, जिनमें से 2 पर रेप का आरोप है। अपराधी पृष्ठभूमि वाले 43 सांसद हेट स्पीच के आरोपी हैं। 

वोट बैंक की राजनीति इस हद तक नीचे गिर गई है कि आपराधिक कृत्यों के आरोपों में न तो प्रत्याशी में कोई शर्म बाकी रह गई और न ही राजनीतिक दलों में। दूसरे शब्दों में कहें तो राजनीतिक दलों में सत्ता की प्रतिस्पर्धा से अपराधी छवि वाले प्रत्याशी जीत कर देश और राज्यों को चलाने के लिए संसद और विधानसभाओं तक पहुंच रहे हैं। लोकतंत्र में शुचिता और पारदॢशता की मिसाल पेश करने के बजाय नेता और राजनीतिक दल उलटी गंगा बहा रहे हैं। सार्वजनिक तौर पर बिना झिझक माफियाओं से गलबहियां डालना और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने पर नेताओं के संवेदना दिखा कर वोट बटोरने का प्रयास करने का सिलसिला जारी है। सोशल मीडिया की जागरूकता के इस दौर में यह प्रवृत्ति कांग्रेस और भाजपा में कम नजर आती है, किन्तु अन्य दलों में जरा भी लोकलाज नहीं बची है। 

उत्तर प्रदेश में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई की हत्या पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ऐसे दुर्दांत अपराधियों के खात्मे के बजाय उलटे आरोप लगाए। यादव ने ट्वीट किया था कि उत्तर प्रदेश में अपराध की पराकाष्ठा हो गई है और अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। सपा सांसद रहे दिवंगत डा. शफीकुर्रहमान बर्क ने इस माफिया के अपराधी भाई अतीक अशरफ के पुलिस एनकाऊंटर में मारे जाने पर ट्वीट कर कहा था कि देश में कोर्ट-कचहरी और थानों में ताले लग जाने चाहिएं। कानून-व्यवस्था को मिट्टी में मिला दिया। उत्तर प्रदेश के ही माफिया मुख्तार अंसारी की बीमारी से हुई मौत को लेकर सपा प्रमुख अखिलेश ने मुस्लिमों की संवेदनाएं बटोरने और उन्हें उकसाने में कसर नहीं छोड़ी। अंसारी के परिवार की मिजाजपुर्सी के लिए पहुंचे अखिलेश ने कहा था परिवार का दुख बांटने और जो घटना हुई है वो शॉकिंग थी सबके लिए। 

उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी आपराधिक रिकार्डधारी आरोपियों और उनके परिवार के सदस्यों को गले लगाने के लिए राजनीतिक दल आतुर रहे हैं। इस लोकसभा चुनाव में बिहार में 5 बाहुबलियों ने अपनी पत्नियों को मैदान में उतारा था, इनमें 3 को हार का सामना करना पड़ा। जबकि 2 को जीत मिली। राजनीतिक दलों का एकमात्र उद्देश्य सिर्फ सत्ता प्राप्त करना रह गया है। इसके लिए बेशक संगीन अपराधों के आरोपियों को ही टिकट देकर क्यों न जिताना पड़े। अपराध के आरोपियों को टिकट देने के लिए राजनीतिक दल जितने जिम्मेदार हैं, उतने ही उन लोकसभा क्षेत्रों के मतदाता भी जिम्मेदार हैं। मतदाता जात-पात, धर्म, ऊंच-नीच और प्रचार के दौरान किसी न किसी रूप में फायदा मिलने के लालच में ऐसे प्रत्याशियों को जिताने में पीछे रहते हैं।-योगेन्द्र योगी 
 

Related Story

    Afghanistan

    134/10

    20.0

    India

    181/8

    20.0

    India win by 47 runs

    RR 6.70
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!