Edited By ,Updated: 30 Sep, 2024 06:43 AM
लोग महात्मा हो सकते हैं, गांधी भी हो सकते हैं लेकिन महात्मा गांधी नहीं हो सकते। भारत के महात्मा गांधी एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे। आज बापू को हमसे छीने हुए भले ही 76 वर्ष हो गए हैं, लेकिन हमेशा ऐसा लगता है कि जैसे कल की ही बात हो।
लोग महात्मा हो सकते हैं, गांधी भी हो सकते हैं लेकिन महात्मा गांधी नहीं हो सकते। भारत के महात्मा गांधी एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे। आज बापू को हमसे छीने हुए भले ही 76 वर्ष हो गए हैं, लेकिन हमेशा ऐसा लगता है कि जैसे कल की ही बात हो। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तीन गोलियां मारकर हत्या जरूर कर दी लेकिन उनके विचारों और प्रेरणा की हत्या हो ही नहीं सकती।
बापू को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए याद किया जाता है। उनकी प्रेरणाएं- कि हम वर्तमान में क्या करते हैं; भीड़ में खड़ा होना आसान है लेकिन अकेले खड़े होने की हिम्मत होनी चाहिए; बिना विनम्रता की सेवा स्वार्थ और अहंकार है; पाप से घृणा करो, पापी से प्रेम करो; वह बदलाव बनो जैसा खुद बनना चाहते हो; इंसान के रूप में सबसे बड़ी क्षमता दुनिया को बदलने की नहीं, खुद को बदलने की हो; मानवता की महानता मनुष्य होने में नहीं, बल्कि मनुष्य दिखने में है; किसी को भी अपने गंदे पैरों से अपने दिमाग में नहीं चलने दें; कमजोर कभी माफ नहीं कर सकते जबकि क्षमा ताकतवर की विशेषता है। गांधी जी चेतना का चिंतन थे और चिंतक की चिंता। वे मानते थे कि जिस देश या समाज के पास चिंतन और चेतना नहीं, वह ज्ञान और सेवा का देश या समाज बन ही नहीं सकता। यही संयम उनकी साधना थी, तो नियम उनकी नैतिकता। दोनों उनके लोकाचार थे।
सबको पता है कि अहिंसा और शांतिपूर्ण तरीकों के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सबसे प्रमुख भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी सदा प्रासंगिक थे, हैं और रहेंगे। काल के क्रूर हाथों के चलते वह असमय हमारे बीच से चले गए, लेकिन उनके विचार जस के तस तरोताजा हैं और सबके मन:मस्तिष्क में हैं। वह गांधीवादी विचार ही है, जिस पर चलकर लाखों युवाओं ने अपने जीवन का मार्ग और जीने का तरीका बदला है। निश्चित रूप से यह गांधी जी ही सोच सकते थे कि ऐसे जिएं जैसे कि कल ही मरना है। ऐसा सीखें, जिनसे आपको हमेशा जिन्दा रहना है। हाड़-मांस के इस पुतले की कैसी निराली सोच थी कि डर शरीर की बीमारी नहीं हो, क्योंकि यह आत्मा को मारता है, इसलिए निडर रहें।
विश्वास पर उन्हें अटूट भरोसा था, तभी तो वह कहते थे कि विश्वास करना एक गुण है, वहीं अविश्वास दुर्बलता की जननी है। उनकी दार्शनिक सोच आज भी सभी के लिए अनुकरणीय है। उनका मानना रहा कि जो समय बचाते हैं, वे धन बचाते हैं और बचाया हुआ धन, कमाए हुए धन के बराबर होता है। कैसी गूढ़ सोच थी कि आंख के बदले आंख पूरे विश्व को अंधा बना देगी। आज दुनिया युद्ध के मुहाने पर क्यों है? शायद इसी नासमझी के कारण, जो एक-दूसरे को आंख दिखा रहे हैं। बापू का आजादी को लेकर नजरिया अलग और बेहद खास था। वह मानते थे कि आजादी का कोई मतलब नहीं, यदि इसमें गलती करने की आजादी शामिल न हो। निश्चित रूप से इसके पीछे यही भावना थी कि असफलता ही सफलता की सीढ़ी है।
प्रसन्नता को लेकर भी उनकी सोच बेहद अलग थी। इसकी तुलना वह इत्र से करते और मानते कि प्रसन्नता ही एकमात्र वह इत्र है, जिसे आप दूसरों पर छिड़कते हैं तो कुछ बूंदें आप पर भी पड़ती हैं। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण बेहद अलग था। बापू मानते थे कि लोग पहले आप पर ध्यान नहीं देंगे, जब देंगे तब हंसेंगे, फिर आपसे लड़ेंगे और तब आप जीत जाएंगे। चरित्र को लेकर कितना अलग नजरिया था, कि व्यक्ति की पहचान कपड़े से नहीं, चरित्र से होती है। शायद चरित्र के महत्व का इससे अच्छा कोई उदाहरण हो ही नहीं सकता, जो एक लंगोटी में लिपटे व्यक्ति ने दुनिया को जीतने का तरीका बता दिया। निश्चित रूप से बापू का जीवन एक आदर्श और जीने की कला है, जो अजर, अमर और अमिट है। उनके आदर्शों को जीवन में उतारना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।-ऋतुपर्ण दवे