Edited By ,Updated: 15 Apr, 2025 05:38 AM
कांग्रेस और विपक्षी दलों ने देश के मुस्लिम समुदाय को अछूत जैसा बना दिया है अर्थात इनके मामले में कानून और अदालत कोई परिवर्तन नहीं कर सकती। ऐसा करना मुसलमानों के आंतरिक मामलों में दखल देना है। ऐसा करने से मुसलमानों के धर्म पर भी आंच आती है। यह धारणा...
कांग्रेस और विपक्षी दलों ने देश के मुस्लिम समुदाय को अछूत जैसा बना दिया है अर्थात इनके मामले में कानून और अदालत कोई परिवर्तन नहीं कर सकती। ऐसा करना मुसलमानों के आंतरिक मामलों में दखल देना है। ऐसा करने से मुसलमानों के धर्म पर भी आंच आती है। यह धारणा पनपी है सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के कारण। कांग्रेस और विपक्षी दलों को हमेशा यही डर सताता रहा है कि किसी तरह के कानून में परिवर्तन करने से कहीं देश के मुस्लिम मतदाता नाराज न हो जाएं।
वोट बैंक के फिसलने के इस डर से मुसलमानों को डराए रखा गया। भले ही ऐसे बदलावों का फायदा मुस्लिम समुदाय को ही क्यों न हो, इसके बावजूद विपक्षी दल किसी भी तरह के संशोधन के खिलाफ रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि मुसलमानों के खैरख्वाह बनने वाले राजनीतिक दलों ने सत्ता में रहने के दौरान मुसलमानों की भलाई के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं लागू की हों। विपक्षी दलों को मुस्लिम वोटों के डर का सबसे बड़ा उदाहरण शाहबानो का प्रकरण है। सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक के एवज में मुआवजा देने के निर्णय के बावजूद केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संसद में इस कानून को ही पलट दिया। इससे तभी साफ हो गया था कि बेशक देश की मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक का दंश झेलने के बाद अपने गुजारे-भत्ते के लिए धक्के खाएं किन्तु उन्हें कानून के तहत न्याय नहीं मिल सकता। कारण स्पष्ट है कि कांग्रेस नहीं चाहती कि पर्सनल लॉ में किसी तरह का संशोधन करके मुसलमानों को नाराज किया जाए, भले ही मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय होता रहे। कांग्रेस और विपक्षी दलों की मुसलमानों के प्रति बनी पूर्वाग्रह की इस धारणा को तोड़ा है केंद्र की भाजपा सरकार ने।
केंद्र में सत्ता में आते ही भाजपा गठबंधन सरकार ने साफ कर दिया है कि कोई भी जाति, धर्म या समुदाय हो, सभी कानून के दायरे में आते हैं और इनकी भलाई के लिए कानून में संशोधन किए जा सकते हैं। इसमें यदि किसी का धर्म और रीति-रिवाज भी बीच में आते हैं, तब भी आधुनिक सोच और मानवाधिकारों के दायरे में कानून में परिवर्तन किए जाएंगे। नया प्रमाण वक्फ बोर्ड को लेकर बने नए कानून का है। केंद्र की मोदी सरकार ने इसमें संशोधन करके न सिर्फ मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित कर दी बल्कि इसे व्यावहारिक रूप दे दिया। यह बिल वक्फ बोर्ड के प्रबंधन और सम्पत्तियों में सुधार के लिए है, इसमें गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने, सम्पत्ति सर्वेक्षण और पारदर्शिता जैसे प्रावधान हैं।
केंद्र सरकार का तर्क है कि इस कानून का उद्देश्य वक्फ सम्पत्तियों में भ्रष्टाचार और दुरुपयोग को रोकना, साथ ही महिलाओं और पिछड़े मुस्लिमों को लाभ पहुंचाना है। समय की मांग के अनुसार वक्फ बोर्ड में परिवर्तन करने से विपक्षी दल डरते रहे हैं। इसी तरह केंद्र की मोदी सरकार ने बिना किसी हिचक के तीन तलाक को बंद करके मुस्लिम महिलाओं को देश की अन्य महिलाओं के समान अधिकार दिलाने का कानून बनाया। विधेयक में 3 तलाक देने वाले शौहर के लिए 3 साल तक की सजा का प्रावधान था।
गौरतलब है कि सुप्रीमकोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को तीन तलाक को असंवैधानिक ठहराया था, जिसके बाद सरकार ने इसे आपराधिक बनाने के लिए कानून बनाया। यह बिल जुलाई, 2019 में कानून बना। तीन तलाक उन्मूलन के बाद नागरिकता संशोधन कानून लाना नरेंद्र मोदी सरकार का बड़ा कदम था। इससे भारत के मुसलमान सीधे तौर पर प्रभावित नहीं होते थे। फिर भी विपक्ष ने इसे देश के मुसलमानों का मुद्दा बनाने में कसर बाकी नहीं रखी। दिसम्बर, 2019 में पारित नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) 2019 का उद्देश्य पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से आए ङ्क्षहदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणाॢथयों को नागरिकता देना था। इस कानून के दायरे से भारत के मुस्लिमों को बाहर रखा गया। इसी तरह जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने पर विपक्ष ने खूब शोर मचाया। आश्चर्य की बात यह है कि इसे भी मुसलमानों का मुद्दा बताया गया, जबकि शेष भारत के
मुसलमानों से इसका कोई संबंध ही नहीं था। विपक्ष के विरोध का फायदा पाकिस्तान ने उठाया। पाकिस्तान ने भारत पर जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों पर उत्पीडऩ का आरोप फिर जड़ दिया। यह बात दीगर है कि पूरी दुनिया ने पाकिस्तान की बात पर कभी ध्यान नहीं दिया पर विपक्ष ने उसे मौका मुहैया करा दिया। यह सर्वविदित है कि इस अनुच्छेद के खत्म होने के बाद से जम्मू-कश्मीर में आंतरिक शांति बनी हुई है। पत्थरबाजी की घटनाएं थम गई हैं। यह सीमावर्ती पहाड़ी प्रदेश भी देश के विकास की मुख्य धारा में तेजी से शामिल हो रहा है। बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश होने के साथ ही परिवहन सहित अन्य आधारभूत ढांचे के विकास ने गति पकड़ी है। जम्मू-कश्मीर की मौजूदा नैशनल कांफ्रैंस की सरकार ने भी अनुच्छेद 370 के खत्म होने के मुद्दे को पीछे धकेल दिया है। मुसलमानों से जुड़े इन मुद्दों के बाद भी सुधार की प्रक्रिया जारी है। यूनिफॉर्म सिविल कोड (यू.सी.सी.) केंद्र सरकार का अहम एजैंडा है। मुसलमानों से जुड़े इन मुद्दों को कानून की छतरी के नीचे लाकर किए संशोधनों को लेकर कांग्रेस और विपक्षी दलों ने देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इसी उकसावे के कारण सी.ए.ए. के मुद्दे पर ङ्क्षहसा हुई। यही वजह रही कि 3 महत्वपूर्ण मामलों में कानून बनाने के बावजूद देश के मुसलमान इनके वरगलावे में नहीं आए।-योगेन्द्र योगी