Edited By ,Updated: 27 Sep, 2024 05:54 AM
‘द इंडियन एक्सप्रैस’ में 16 जनवरी, 2012 को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ‘मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज केंद्र पर दबावपूर्ण संघवाद की नीति अपनाने और इस प्रकार वित्तीय आबंटन की सभी शक्तियों पर एकाधिकार करके राज्यों को अधीनस्थ स्थिति में धकेलने का आरोप...
‘द इंडियन एक्सप्रैस’ में 16 जनवरी, 2012 को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ‘मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज केंद्र पर दबावपूर्ण संघवाद की नीति अपनाने और इस प्रकार वित्तीय आबंटन की सभी शक्तियों पर एकाधिकार करके राज्यों को अधीनस्थ स्थिति में धकेलने का आरोप लगाया, यहां तक कि राज्यों के संवैधानिक अधिकारों को भी कम किया।’
आपके स्तंभकार को स्पष्ट रूप से याद है कि तत्कालीन वित्त मंत्री, मिलनसार अरुण जेतली ने 2015 में किसी समय संसद में अपने कमरे में लगभग आधा दर्जन साथी सांसदों को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया था। हमारे विनम्र मेजबान अच्छी खबर का जश्न मनाना चाहते थे। 14वें वित्त आयोग ने राज्यों को विभाज्य कर पूल का हस्तांतरण 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत करने की सिफारिश की थी। हम सभी ने इसे संघवाद की बड़ी जीत के रूप में देखा। लेकिन जेतली के बॉस, गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री के विचार कुछ और थे। संघवाद को नुकसान पहुंचाने वाला एक गंदा चार-अक्षर वाला शब्द : ‘उपकर’ (सैस) है।
जैसा कि वाणिज्य में कोई भी स्नातक आपको बताएगा कि उपकर विभाज्य पूल का हिस्सा नहीं है यानी, एकत्र किया गया धन राज्य सरकारों के साथ सांझा नहीं किया जाता है। उपकर एक विशिष्ट कर है जिसे केंद्र सरकार किसी निर्दिष्ट उद्देश्य के लिए धन जुटाने के लिए लगाती है। केंद्र सरकार वर्तमान में जी.एस.टी. क्षतिपूर्ति उपकर लगाती है। स्वास्थ्य और शिक्षा, सड़क और बुनियादी ढांचा, कृषि और विकास, स्वच्छ भारत, निर्यात और कच्चे तेल आदि पर उपकर है।
‘उपकर’ पर बढ़ती निर्भरता : इस पर विचार करें। 2012 में, ‘उपकर’ केंद्र सरकार के कुल कर राजस्व का 7 प्रतिशत था। 2015 में, यह बढ़कर 9 प्रतिशत हो गया। 2023 में, उपकर ने कुल कर राजस्व का 16 प्रतिशत योगदान दिया। 2019-23 से, केंद्र सरकार ने उपकर के रूप में 13 लाख करोड़ रुपए एकत्र किए हैं। इसमें जी.एस.टी. क्षतिपूर्ति उपकर शामिल नहीं है। पिछले 5 वर्षों में इसने कच्चे तेल पर ‘उपकर’ के रूप में 84,000 करोड़ रुपए एकत्र किए हैं। केंद्र सरकार के सकल कर राजस्व में उपकर का हिस्सा 3 गुना बढ़ गया है, जो 2011 में 6 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 18 प्रतिशत हो गया है। उपकर और अधिभार में इस वृद्धि ने विपरीत रूप से करों के विभाज्य पूल में कमी ला दी है। विभाज्य पूल 2011 में सकल कर राजस्व के 89 प्रतिशत से घटकर 2021 में 79 प्रतिशत हो गया है। यह 14वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित राज्यों को कर हस्तांतरण में 10 प्रतिशत की वृद्धि के बावजूद है।
घोर कुप्रबंधन : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट ने उजागर किया कि 2018-19 में, केंद्र सरकार ने भारत के समेकित कोष (सी.एफ.आई.) में विभिन्न उपकरों के माध्यम से एकत्र किए गए 2.75 लाख करोड़ रुपए में से 1 लाख करोड़ रुपए रोक लिए। वर्ष के दौरान एकत्र किए गए सड़क और बुनियादी ढांचा उपकर के 10,000 करोड़ रुपए ‘न तो संबंधित आरक्षित निधि में स्थानांतरित किए गए और न ही उस उद्देश्य के लिए उपयोग किए गए जिसके लिए उपकर एकत्र किया गया था’।
अधिक चिंताजनक बात यह है कि पिछले एक दशक में कच्चे तेल पर उपकर के रूप में एकत्र किए गए 1.24 लाख करोड़ रुपए ‘निर्दिष्ट आरक्षित निधि (तेल उद्योग विकास बोर्ड) में स्थानांतरित नहीं किए गए और सी.एफ.आई. में ही रखे गए’। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि आरक्षित निधियों का निर्माण न होना/संचालन न होना यह सुनिश्चित करना मुश्किल बनाता है कि उपकर और शुल्क संसद द्वारा इच्छित विशिष्ट उद्देश्यों के लिए उपयोग किए गए हैं। उपकर और अधिभार लगाने का मुख्य कारण केंद्र सरकार का अपना राजस्व बढ़ाना है। इसकी एक बड़ी आलोचना यह रही है कि उपकर बढ़ाने के बावजूद राजस्व में पर्याप्त वृद्धि नहीं हो पाई है। पिछले 10 वर्षों में राजस्व प्राप्तियों में मामूली वृद्धि हुई है, जो 2014 में जी.डी.पी. के 8.8 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में जी.डी.पी. के 9.6 प्रतिशत पर पहुंच गई हैं(एक प्रतिशत से भी कम)।
संघवाद पर धब्बा : हाल ही में, कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने एन.डी.ए. और विपक्ष शासित राज्यों के 8 अन्य मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर चिंता व्यक्त की कि उच्च प्रति व्यक्ति जी.एस.डी.पी. वाले राज्यों को उनके आर्थिक प्रदर्शन के लिए अनुपातहीन रूप से कम कर आबंटन प्राप्त करके दंडित किया जा रहा है। 80 के दशक की शुरूआत में, सरकारिया आयोग ने सिफारिश की थी कि उपकर और अधिभार एक विशिष्ट उद्देश्य और सीमित समय अवधि के लिए लगाए जाने चाहिएं। 2010 में, पुंछी आयोग ने कहा कि उपकर और अधिभार का विस्तार वित्त आयोगों की सिफारिशों को कमजोर करने के बराबर है और राज्यों को केंद्रीय कर राजस्व में उनके उचित हिस्से से वंचित करता है। इसमें आगे विस्तार से बताया गया है कि हम अनुशंसा करते हैं कि केंद्र सरकार को सकल कर राजस्व में उनके हिस्से को कम करने के उद्देश्य से सभी मौजूदा उपकरों और अधिभारों की समीक्षा करनी चाहिए।
सरकारिया आयोग और पुंछी आयोग की सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया गया है। लगाए जाने वाले उपकरों की संख्या और मात्रा में लगातार वृद्धि हो रही है। जो राज्य वैचारिक रूप से सत्तारूढ़ व्यवस्था का विरोध करते हैं, उन्हें अक्सर उनके उचित हक से वंचित किया जाता है। संसद के गलियारों में विपक्ष के अनुभवी सांसद वास्तविकता पर अफसोस जताते हैं।(अतिरिक्त शोध : आयुष्मान डे, धीमंत जैन)-डेरेक ओ ब्रायन (संसद सदस्य और टी.एम.सी. संसदीय दल (राज्यसभा) के नेता)