पहली 2 पंक्तियों में बैठे सांसद ही समाचारों पर हावी रहते हैं

Edited By ,Updated: 28 Mar, 2025 05:07 AM

only the mps sitting in the first 2 rows dominate the news

संसद के प्रत्येक सत्र में कुछ न कुछ चीजें बदलती रहती हैं। कॉफी के चम्मच सैंट्रल हॉल से आधुनिक कैफेटेरिया के भव्य, किन्तु आत्माविहीन गलियारों में चले गए हैं। विरासत को हयात जैसी चीज के लिए नहीं बेचा जा सकता। जल्द ही समाप्त होने वाले बजट सत्र के दौरान...

संसद के प्रत्येक सत्र में कुछ न कुछ चीजें बदलती रहती हैं। कॉफी के चम्मच सैंट्रल हॉल से आधुनिक कैफेटेरिया के भव्य, किन्तु आत्माविहीन गलियारों में चले गए हैं। विरासत को हयात जैसी चीज के लिए नहीं बेचा जा सकता। जल्द ही समाप्त होने वाले बजट सत्र के दौरान कुछ संसद सदस्य सफेद जूते पहने देखे गए। कंगना रनौत फोटो जर्नलिस्ट की टॉप शॉट रही हैं। इस सारी उथल-पुथल में, सबसे बड़ी 5 पार्टियों के लोकसभा और राज्यसभा की पहली 2 पंक्तियों में बैठे सांसद ही समाचारों पर हावी रहते हैं। लगभग किसी अलिखित नियम के अनुसार, चैनलों और समाचार पत्रों द्वारा कवरेज के लिए उठाए गए मुद्दे मुख्यत: राजनीति पर ही केन्द्रित होते हैं। 

इसका अर्थ अक्सर यह होता है कि किसी मुद्दे का ‘राजनीतिक भागफल’ जितना कम होगा, उसके कथानक पर हावी होने की संभावना उतनी ही कम होगी। यहां विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों द्वारा हाल ही में उठाए गए 7 ऐसे मुद्दे दिए गए हैं। इन विषयों ने भले ही बहु-स्तंभीय कहानियां या समाचार टिकर नहीं बनाए हों लेकिन ये नागरिक कल्याण के बारे में गंभीर हस्तक्षेप हैं।

1. राजमार्गों पर सड़क दुर्घटनाएं : घनश्याम तिवारी, भाजपा : पिछले 5 वर्षों में भारत में राजमार्ग दुर्घटनाओं में लगभग 8 लाख लोग मारे गए हैं। भारत में अप्राकृतिक एवं असामयिक मौतों में से लगभग आधी मौतें सड़क दुर्घटनाओं के कारण होती हैं। संसद में सरकार द्वारा स्वयं स्वीकार किए जाने के अनुसार, हम सड़क दुर्घटनाओं में 50 प्रतिशत की कमी लाने के लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहे हैं।

2. एसिड अटैक पीड़ितों के लिए पुनर्वास : संजय सिंह, आप : पिछले 11 वर्षों में 200 महिलाएं एसिड हमले की शिकार हुई हैं। 3 में से एक पीड़ित 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की है। पीड़ितों को अक्सर समय पर न्याय पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। कुछ मामले तो 20 वर्षों तक चलते हैं। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एसिड अटैक पीड़ितों के लिए पूरी तरह से मुफ्त चिकित्सा उपचार का आदेश दिया था। पीड़ितों को क्या मुआवजा मिलता है? सिर्फ  5 लाख रुपए।

3.थैलेसीमिया रोगियों के लिए रक्त आधान : सागरिका घोष, ए.आई.टी.सी. : भारत को आधान के लिए स्वस्थ, असंक्रमित रक्त की आपूर्ति में गंभीर कमी का सामना करना पड़ रहा है। हमें हर वर्ष 14.6 मिलियन यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है  तथा 7 मिलियन यूनिट कम पड़ जाते हैं। लगभग 1,50,000 थैलेसीमिया रोगी जीवित रहने के लिए ऐसे रक्त आधानों पर निर्भर हैं। आपूर्ति में कमी के कारण इन रोगियों के रक्ताधान चक्र में बाधा उत्पन्न होती है। थैलेसीमिया रोगियों के लिए जीवन रक्षक दवाओं की भी कमी बताई गई है। रक्त आधान और इससे जुड़े स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण अक्सर रक्तदान के बारे में पूर्वाग्रह और अनिच्छा पैदा होती है। स्वस्थ, असंक्रमित रक्त की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए स्क्रीनिंग प्रोटोकॉल को मजबूत करने की तत्काल आवश्यकता है।

4. स्कूल परिवहन की सुरक्षा : फौजिया खान, एन.सी.पी. (एस.पी.) : वर्ष 2021 तक, स्कूल परिवहन के रूप में उपयोग किए जाने वाले 2 में से एक वाहन में सीट बैल्ट, स्पीड गवर्नर या परिवहन प्रबंधक नहीं होते हैं। सर्वेक्षण में शामिल 4 में से 3 अभिभावक यह सत्यापित नहीं कर पाए कि स्कूल बसों में जी.पी.एस. और सी.सी.टी.वी. सक्रिय हैं या नहीं। भारत में स्कूल परिवहन के लिए प्रयुक्त वाहनों में सुरक्षा उपकरणों और प्राथमिक चिकित्सा किटों का अत्यधिक अभाव होता है। इन वाहनों में अक्सर आपातकालीन संपर्क जानकारी का भी अभाव होता है, जिससे लापरवाही से वाहन चलाने की संभावना बढ़ जाती है। सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाओं वाले देशों में से एक होने के बावजूद, भारत में स्कूल परिवहन सुरक्षा पर कोई व्यापक नीति नहीं है।

5. बच्चों में नशे की लत: अजीत माधवराव गोपछड़े, भाजपा : बच्चों, विशेषकर गरीब बच्चों में नशे की लत चिंता का विषय बनती जा रही है। बच्चे कौन सी ड्रग्स ले रहे हैं? ब्रैड पर दर्द निवारक बाम,फैविकोल, पेंट, पैट्रोल, डीजल, तारपीन, नेल पॉलिश रिमूवर, विभिन्न प्रकार के कफ सिरप और कई अन्य आसानी से उपलब्ध पदार्थ। इन पदार्थों की बिक्री प्रतिबंधित नहीं है, इसलिए इनके लिए कानूनी उपचार लगभग असंभव है। वर्ष 2022 तक 10-17 वर्ष के बीच के 1.5 करोड़ बच्चे ऐसे पदार्थों के आदी हो चुके हैं।

6.एस.एम.ए .के लिए कम लागत वाली जीन थैरेपी: हारिस बीरन, आई.यू.एम.एल. : स्पाइनल मस्कुलर अट्रोफी (एस.एम.ए.) एक लाइलाज और दुर्लभ आनुवंशिक विकार है जो प्रतिवर्ष 8,000 से 25,000 भारतीयों को प्रभावित करता है। एस.एम.ए. रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका कोशिकाओं को प्रभावित करता है और यदि इसका उपचार न किया जाए तो यह घातक हो सकता है। 2 वर्ष से कम आयु के शिशुओं में इस रोग के उपचार के लिए प्रयुक्त जीन थैरेपी दवा की लागत 17 करोड़ रुपए है। अणु चिकित्सा में प्रतिवर्ष 30 बोतल दवा की आवश्यकता होती है तथा प्रति बोतल की लागत 6.2 लाख रुपए आती है। 

7.प्लास्टिक प्रदूषण का संकट: अयोध्या रामी रेड्डी अल्ला, वाई.एस.आर.सी.पी. : केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अनुमान है कि भारत में हर साल 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। इसमें से लगभग आधा कचरा एकत्र कर लिया जाता है, जिसमें से 50 प्रतिशत का पुनर्चक्रण किया जाता है। बाकी प्लास्टिक कचरा कहां जाता है? लैंडफिल, नदियां या महासागर में। जो चीज यहीं समाप्त नहीं होती, उसे जला दिया जाता है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है। प्लास्टिक उस हवा में समा जाता है जिसे हम सांस के रूप में लेते हैं, उस पानी में जिसे हम पीते हैं तथा उस भोजन में जिसे हम खाते हैं। प्लास्टिक का पुनर्चक्रण न हो पाना भी एक आर्थिक समस्या है। भारत 80 प्रतिशत से अधिक कच्चे तेल का आयात करता है जिसका उपयोग प्लास्टिक बनाने में भी किया जाता है। प्लास्टिक को प्रभावी ढंग से पुनर्चक्रित करने से प्रतिवर्ष कम से कम 50,000 करोड़ रुपए की बचत हो सकती है।-डेरेक ओ’ब्रायन(संसद सदस्य और टी.एम.सी. संसदीय दल (राज्यसभा) के नेता)
 

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