Edited By ,Updated: 06 Jul, 2024 05:24 AM
संसद के दृश्य ने डर पैदा किया है। भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार लोकसभा में विपक्ष के नेता के भाषण का इतना बड़ा अंश अध्यक्ष को हटाना पड़ा। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इसे भी गलत बताते हुए अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा तथा रिकॉर्ड से हटाए अंश...
संसद के दृश्य ने डर पैदा किया है। भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार लोकसभा में विपक्ष के नेता के भाषण का इतना बड़ा अंश अध्यक्ष को हटाना पड़ा। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इसे भी गलत बताते हुए अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा तथा रिकॉर्ड से हटाए अंश को वापस लाने की मांग की। उन्होंने पत्र में भाजपा सांसदों का उल्लेख कर बताया कि उनके भाषण में तथ्य नहीं थे लेकिन ज्यादा अंश नहीं हटाया गया। इस तरह राहुल गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष को भी भाजपा के पाले का साबित करने की कोशिश की। लगातार हमने विपक्ष की ओर से लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों के पीठासीन अधिकारी को कटघरे में खड़ा करने वाले बयान सुने हैं। संयुक्त सत्र में राष्ट्रपति अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में पहले कभी ऐसा दृश्य उत्पन्न नहीं हुआ जो हमने इस बार देखा।
भारतीय संसद में विपक्ष के नेता का पद अत्यंत सम्मानित होता है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी जब बोल रहे थे तो प्रधानमंत्री पूरे समय उपस्थित रहे। एक बार स्वयं उठकर उनके भाषण पर प्रतिवाद किया तो 2 बार गृह मंत्री उठे। एक बार रक्षा मंत्री को उठना पड़ा तो एक बार कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को। भाषण के दौरान वैसा हंगामा नहीं हुआ जिसे कहा जाए कि सत्ता पक्ष उन्हें सुनना नहीं चाहता था। राहुल गांधी ने लगभग 2 घंटे का पूरा भाषण दिया जिसे सत्ता पक्ष ने सुना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा में जैसे ही बोलने के लिए खड़े हुए बाधा डालने के लिए शोर-शराबा आरंभ हुआ और अंत तक जारी रहा। प्रधानमंत्री को चिढ़ाने के लिए ‘हुंआ हुंआ हुंआ’ जैसी आवाज भी निकाली गई। प्रधानमंत्री को भाषण देने के लिए ईयर फोन लगाना पड़ा ताकि शोर कम सुनाई दे। राज्यसभा में तो विपक्ष ने बहिर्गमन ही कर दिया। क्या इसे संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष के निर्धारित गरिमापूर्ण व्यवहार के अनुरूप कहा जाएगा?
कुछ लोगों का तर्क है कि चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले 10 वर्षों के शासनकाल में आवश्यकता से अधिक अहंकार दिखाया है, राहुल गांधी का उपहास उड़ाया है तो आज संख्या बल के कारण राहुल गांधी और विपक्ष बदला ले रहा है। सरकार या सत्ता पक्ष ने लगातार अहंकार ही दिखाया इस पर एक राय नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन के अंदर राहुल गांधी या सोनिया गांधी परिवार पर अमर्यादित शब्द प्रकट किया हो इसका रिकॉर्ड नहीं है। अहंकार किसी का भी बुरा है। भाजपा इतना बड़ा जनाधार रखते हुए लोकसभा में बहुमत से वंचित रही तो उसका एक कारण उसके व्यवहार में निहित है। किंतु विपक्ष के व्यवहार को शर्मनाक के अलावा कोई शब्द नहीं दिया जा सकता। तृणमूल नेत्री महुआ मोइत्रा भाषण देने के लिए खड़ी हुईं तो प्रधानमंत्री सदन के बाहर जा रहे थे।
उन्होंने बोलना शुरू किया- प्रधानमंत्री जी, सुन लीजिए, सुन लीजिए, डरिए मत आप मेरे क्षेत्र में 2 बार गए आदि-आदि...। महुआ मोइत्रा सीधे तौर पर प्रधानमंत्री को चिढ़ा रहीं, उनका उपहास उड़ा रही थीं। इससे शर्मनाक और घटिया व्यवहार कुछ नहीं हो सकता। कई बार सदन की कार्रवाई चलती रहती है और प्रधानमंत्री को बाहर जाना होता है। सदस्य इस तरह उपहास करे यह स्वीकार्य नहीं हो सकता। राहुल गांधी के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध जिस तरह के आरोप व हमले थे सामान्य व्यवहार में उसे बर्दाश्त करना कठिन होता है। उसके अनेक अंश झूठ निकले। ऐसा लगता नहीं था कि विपक्ष के नेता लोकसभा में बोल रहे हैं। यह चुनावी सभा जैसा था। अग्निवीर जवानों की शहादत के बाद क्षतिपूॢत न दिए जाने का उनका आरोप गलत निकला। विपक्ष द्वारा सरकार का विरोध, हमले, उसे घेरना तथ्यों के आधार पर उसे गलत साबित करना सामान्य राजनीति है। राहुल गांधी नरेंद्र मोदी, भाजपा और संघ के विरुद्ध अपने अंदर घनीभूत गुस्से व घृणा में इस सीमा को लगातार पार करते रहे। सदन के अंदर भगवान शिवजी की तस्वीर लेकर आना, दिखाना भक्ति या निष्ठा का पर्याय नहीं माना जा सकता। साफ था कि अपने राजनीतिक हित के लिए शिव जी की तस्वीर का वह उपयोग कर रहे हैं।
जब संसद के नियमों के अनुरूप लोकसभा अध्यक्ष ने रोका तो वह कई बार पूछते रहे कि अध्यक्ष जी, क्या सदन में शिव जी की तस्वीर नहीं दिखा सकते? साफ है कि वह स्वयं को सच्चा ङ्क्षहदुत्ववादी साबित करते हुए संदेश दे रहे थे कि देखो भाजपा का अध्यक्ष सरकार का ध्यान रखते हुए हमें शिव जी की भी तस्वीर सदन में नहीं दिखाने दे रहा। यह पहली लोकसभा होगी जिसमें विपक्ष का व्यवहार ऐसा है मानो चुनाव वही जीता है एवं सत्ता पर अधिकार उसी का है। कई बार तो ऐसा लगता है जैसे सरकार उसी की चल रही हो। भाजपा की सीट घटना इसका एक पक्ष है किंतु नरसिम्हा राव ने 232 सीटों पर 5 वर्ष सरकार चलाई और देश का वर्णक्रम बदल दिया। मोदी के पास तो 240 सांसद हैं। मोदी के पास भाजपा की 240 सीटों के अलावा चुनाव पूर्व गठबंधन है।
नरसिम्हा राव के साथ यह नहीं था। मनमोहन सिंह ने पहले 145 और दोबारा 206 पर गठबंधन के आधार पर 10 वर्ष सरकार चलाई। विपक्ष खासकर राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की रणनीति में साफ झलकता है कि सरकार को निर्बाध काम करने नहीं देना है, संसद निर्बाध चलने नहीं देना है, हर समय सरकार के कमजोर होने, गिर जाने की बात करते रहनी है तथा ऐसी स्थिति पैदा करनी है कि साथी दलों के लिए सरकार के पक्ष में खड़ा होना कठिन हो जाए। इसमें यह भी रणनीति दिखाई देती है कि संसद में हमले से ऐसी स्थिति पैदा करो ताकि सत्ता पक्ष उत्तेजित होकर कुछ न कुछ गड़बड़ी कर दे और उसे बड़ा मुद्दा बनाकर चुनाव में जाया जा सके।
देश इस व्यवहार को आसानी से नहीं पचा पाएगा जिसमें विपक्ष के नेता को तो सत्ता पक्ष सुन रहा हो और जब प्रधानमंत्री बोलने के लिए खड़े हों तो लोकसभा में लगातार शोर-शराबा किया जाए, विपक्ष के नेता राहुल गांधी अपने सांसदों को बेल में जाने के लिए उकसाते दिख रहे हैं। यह व्यवहार अंदर से हिला देने वाला है। कल्पना करिए अगर सत्ता पक्ष विपक्ष के नेताओं के भाषण का बहिष्कार करने लगा तब कैसी स्थिति पैदा होगी?-अवधेश कुमार