मानसून के बदलते मिजाज के अनुरूप खुद को ढाल नहीं पाया हमारा देश

Edited By ,Updated: 05 Jul, 2024 05:34 AM

our country could not adapt itself to the changing mood of monsoon

भारत में इस बार जून में सामान्य से 11 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई जबकि गर्मी ने 122 साल का रिकार्ड तोड़ दिया। वहीं मौसम विभाग ने बताया है कि इस बार जुलाई में सामान्य से अधिक बारिश हो सकती है, जो लंबी अवधि के औसत (एल.पी.ए.) 28.04 सै.मी. से 106...

भारत में इस बार जून में सामान्य से 11 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई जबकि गर्मी ने 122 साल का रिकार्ड तोड़ दिया। वहीं मौसम विभाग ने बताया है कि इस बार जुलाई में सामान्य से अधिक बारिश हो सकती है, जो लंबी अवधि के औसत (एल.पी.ए.) 28.04 सै.मी. से 106 प्रतिशत अधिक रह सकती है। गौर करें अभी भारतीय कैलेंडर के अनुसार यह हाल आषाढ़ महीने का है और आगे सावन-भादों बचा है। भारत सरकार के केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा 3 साल पहले तैयार पहली जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट में स्पष्ट चेताया गया था कि तापमान में वृद्धि का असर भारत के मानसून पर भी कहर ढा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के ऊपर ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (जून से सितम्बर) में 1951 से 2015 तक लगभग 6 प्रतिशत की गिरावट आई है, जो भारत-गंगा के मैदानों और पश्चिमी घाटों पर चिंताजनक हालात तक  घट रही है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्मियों में मानसून के मौसम के दौरान सन 1951-1980 की अवधि की तुलना में वर्ष 1981-2011 के दौरान 27 प्रतिशत अधिक दिन सूखे दर्ज किए गए। इसमें चेताया गया है कि बीते 6 दशक के दौरान बढ़ती गर्मी और मानसून में कम बरसात के चलते देश में सूखा-ग्रस्त इलाकों में इजाफा हो रहा है। खासकर मध्य भारत, दक्षिण-पश्चिमी तट, दक्षिणी प्रायद्वीप और उत्तर-पूर्वी भारत के क्षेत्रों में औसतन प्रति दशक 2 से अधिक बार अल्प वर्षा और सूखे दर्ज किए गए। यह चिंताजनक है कि  सूखे से प्रभावित क्षेत्र में प्रति दशक 1.3 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। पर्याप्त आंकड़े, आकलन और चेतावनी के बावजूद अभी तक हमारा देश मानसून के  बदलते मिजाज के अनुरूप खुद को ढाल नहीं पाया है।  न हम उस तरह के जल संरक्षण उपाय कर पाए , न सड़क, पुल, नहर का निर्माण कर पाए। सबसे अधिक जागरूकता की जरूरत खेती के क्षेत्र में है और वहां अभी भी किसान उसी पारम्परिक कैलेंडर के अनुसार बुवाई कर रहा है। असल में पानी को लेकर हमारी सोच प्रारंभ से ही त्रुटिपूर्ण है। 

हमें पढ़ा दिया गया कि नदी, नहर, तालाब, झील आदि पानी के स्रोत हैं, हकीकत में हमारे देश में पानी का स्रोत केवल मानसून ही हैं, नदी-दरिया आदि तो उसको सहेजने का स्थान मात्र हैं। यह धरती ही पानी के कारण जीवों से आबाद है और पानी के आगम मानसून की हम कदर नहीं करते और उसकी नियामत को सहेजने के स्थान पर उसे हमने खुद उजाड़ दिया।  गंगा-यमुना के उद्गम स्थल से छोटी नदियों के गांव-कस्बे तक बस यही हल्ला है कि बरसात ने खेत-गांव सब कुछ उजाड़ दिया। यह भी समझना होगा कि मानसून अकेले बरसात नहीं है यह मिट्टी की नमी, घने जंगलों के लिए अनिवार्य, तापमान नियंत्रण के अकेले उपाय सहित धरती के हजारों-लाखों जीव-जंतुओं के प्रजनन, भोजन, विस्थापन और निबंधन का भी काल है। ये सभी जीव धरती के अस्तित्व के महत्वपूर्ण घटक हैं। इंसान अपने लोभ में प्रकृति को जो नुकसान पहुंचाता है उसे दुरुस्त करने का काम मानसून और उससे उपजा जीव-जगत करता है। 

सभी जानते हैं कि मानसून के विदा होते ही उन सभी इलाकों में पानी की एक-एक बूंद के लिए मारा-मारी होगी और लोग पीने के एक गिलास में पानी आधा भर कर जल-संरक्षण के प्रवचन देते और जल जीवन का आधार जैसे नारे दीवारों पर पोतते दिखेंगे। मानसून शब्द असल में अरबी शब्द ‘मौसिम’ से आया है, जिसका अर्थ होता है मौसम। अरब सागर में बहने वाली मौसमी हवाओं के लिए अरबी मल्लाह इस शब्द का इस्तेमाल करते थे। हकीकत तो यह है कि भारत में केवल तीन ही किस्म की जलवायु है - मानसून, मानसून-पूर्व और मानसून-पश्चात। तभी भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है। जान लें मानसून का पता सबसे पहले पहली सदी में हिप्पोलस ने लगाया था और तभी से इसके मिजाज को भांपने के वैज्ञानिक व लोक प्रयास जारी हैं। भारत के लोक-जीवन, अर्थ व्यवस्था, पर्व-त्यौहार का मूल आधार बरसात या मानसून का मिजाज ही है।

कमजोर मानसून पूरे देश को सूना कर देता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मानसून भारत के अस्तित्व की धुरी है। मानसून अब केवल भूगोल या मौसम विज्ञान नहीं है-इससे इंजीनियरिंग, ड्रेनेज, सैनीटेशन, कृषि, सहित बहुत कुछ जुड़ा है। बदलते हुए मौसम के तेवर के मद्देनजर मानसून-प्रबंधन का गहन अध्ययन हमारे समाज और स्कूलों से लेकर इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में हो, जिसके तहत केवल मानसून से पानी ही नहीं, उससे जुड़ी फसलों, सड़कों, शहरों में बरसाती पानी की निकासी के माकूल प्रबंधों व संरक्षण जैसे अध्याय हों। खासकर अचानक भारी बरसात के कारण उपजे संकटों के प्रबंधन पर।-पंकज चतुर्वेदी  
 

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