हमारे बुजुर्ग हमारी विरासत : आइए मिलकर इसे संभालें

Edited By ,Updated: 22 Aug, 2024 06:20 AM

our elders are our heritage let us take care of it together

दुनिया के हर देश में अपनी प्राचीन विरासतों को संरक्षित करने के भरसक प्रयास किए जाते हैं। प्राचीन इमारतें जैसे मंदिर, किले आदि। यहां तक कि पुरानी रेल गाडिय़ां, हवाई जहाज, पुलिस और मिलिट्री के हथियार, पुराने नोट और सिक्के आदि भी हर देश में सुरक्षित रखे...

दुनिया के हर देश में अपनी प्राचीन विरासतों को संरक्षित करने के भरसक प्रयास किए जाते हैं। प्राचीन इमारतें जैसे मंदिर, किले आदि। यहां तक कि पुरानी रेल गाडिय़ां, हवाई जहाज, पुलिस और मिलिट्री के हथियार, पुराने नोट और सिक्के आदि भी हर देश में सुरक्षित रखे जाते हैं। तो क्या वृद्धावस्था में उन माता-पिता की देखभाल और सुरक्षा की तरफ ध्यान देना आवश्यक नहीं है? अब तो कानून भी इस के लिए बन चुके हैं कि माता-पिता का पूरा संरक्षण बच्चों का दायित्व है। कुछ माह पूर्व मेरा एक लेख प्रकाशित हुआ था ‘साम्ब लौ मापे, रब मिल जाउ आपे’। इस लेख के प्रकाशित होने के बाद मुझे समाज से बड़ी अच्छी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। वृद्ध लोगों ने तो इस लेख को बहुत पसंद किया, परन्तु अनेकों युवा दम्पतियों और विशेष रूप से बच्चों ने माता-पिता और दादा-दादी के प्रति व्यवहार पर बड़ी सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई। 

मेरे एक योगाचार्य मित्र ने तो माता-पिता के प्रति आयुर्वैदिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए कहा कि मां के गर्भ में जब बच्चे का निर्माण होता है तो उसके 2 प्रकार के शरीर होते हैं -भौतिक शरीर और मानसिक शरीर। यहां हम मानसिक शरीर पर विशेष रूप से चर्चा करना चाहेंगे। यह मानसिक शरीर एक प्रकार से हमारी जीवात्मा का प्रतिनिधित्व करता है। जब किसी मां के गर्भ में बच्चे के जन्म की प्रक्रिया प्रारंभ होती है और चौथे माह तक भौतिक शरीर का ढांचा बन जाने के बाद मानसिक शरीर अर्थात जीवात्मा का प्रवेश होता है। जन्म लेने वाली जीवात्मा माता और पिता दोनों के साथ पूर्व जन्मों से संबंधित होती है। पूर्व जन्मों के सम्बन्ध दो ही प्रकार के परिणाम लेकर सामने आते हैं  या तो कर्जे चुकाने के लिए या कर्जे वसूल करने के लिए। 

माता-पिता की भौतिक संपदा पर बच्चों का पूरा अधिकार तो कानून भी प्रदान करता है। इसको हमें इस प्रकार समझना चाहिए कि माता-पिता अपनी सारी सम्पदा बिना किसी शर्त बच्चों को समर्पित करके अपने पूर्व जन्मों के कर्ज चुकाते हैं। इसी प्रकार बच्चों को भी मन में यह स्पष्ट विचार रखना चाहिए कि हमारे भी माता-पिता के प्रति पूर्व जन्मों के कुछ कर्ज होंगे जो हमें उनकी सेवा आदि के माध्यम से चुकाने से पीछे नहीं हटना चाहिए। परन्तु कलियुग में ऐसी बहुत सी घटनाएं देखने को मिलती हैं जब बच्चे माता-पिता के माध्यम से जन्म लेने के बाद उनकी सहायता से युवा अवस्था तक अपना पालन-पोषण करवाने के बाद और यहां तक कि उनकी सम्पत्तियां भी अपने नाम करवाने के बाद उनको असहाय अवस्था में छोड़कर केवल अपनी प्रगति के नशे में अलग जा बसते हैं।-अविनाश राय खन्ना

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