पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते संवारने में हमारी विदेश नीति विफल

Edited By ,Updated: 30 Aug, 2024 05:08 AM

our foreign policy failed to improve relations

इसे भारत दुर्भाग्य ही समझेगा कि पड़ोसी मुल्कों से इसके संबंध कभी मधुर नहीं रहे। पड़ोसी देशों से अपने संबंध बनाने में हमारी विदेश नीति हमेशा लुटकती रही।

इसे भारत दुर्भाग्य ही समझेगा कि पड़ोसी मुल्कों से इसके संबंध कभी मधुर नहीं रहे। पड़ोसी देशों से अपने संबंध बनाने में हमारी विदेश नीति हमेशा लुटकती रही। पड़ोसी देश हमारे शत्रु ही बने रहे। यह तो सत्य है कि बड़े पेड़ के नीचे छोटे पेड़ पनपते नहीं, परन्तु भारत तो सदैव ‘पीसफुल को-एग्जिस्टैंस’ का हिमायती रहा है। इसका तो मूलमंत्र ही ‘जियो और जीने दो’ रहा है। सब सुखी रहें, सबका मंगल हो तो भी भारत टूटता ही रहा। बहुत कम लोग जानते होंगे कि कभी श्रीलंका दक्षिण भारत के चोल और पांड्या राजाओं के अधीन रहा। 1310 में श्रीलंका भारत से अलग हो गया। आज श्रीलंका एक स्वतंत्र देश है। वर्तमान

नेपाल देश कभी भारत का हिस्सा था। 1816 में एक नया देश बन गया। भूटान 1907 में भारत से कट कर एक अलग देश बन गया। अफगानिस्तान और ईरान भारत में थे। परन्तु 1919 में अफगानिस्तान स्वतंत्र देश बन गया। ईरान हमें छोड़ एक कट्टर इस्लामी देश बन गया। कभी ईरान और अफगानिस्तान ङ्क्षहदू राष्ट्र थे। 1947 में भारत का एक बार पुन: विभाजन हुआ और इसी भारत का एक अंग पाकिस्तान और बंगलादेश बन गया। मित्रो, सज्जनो, भारत प्रेमियो, विदेश नीति की मूलभूत बातों को समझ लो। पड़ोसी देशों के मध्य उस देश की भौगोलिक स्थिति,  उस देश की आॢथक दशा, उस देश का सैन्य बल, उस देश की आंतरिक स्थिरता और वहां की जनता में आपसी सद्भाव सब कुछ भारत के अनुकूल फिर भी हमीं से निकला देश हमारा शत्रु? क्यों? क्योंकि हमने विदेश नीति पर गंभीरता से चिंतन ही नहीं किया। 

यह भी सत्य है कि हम पड़ोसी को कहीं अन्य स्थान पर नहीं भेज सकते। दूर नहीं भेज सकते। परन्तु उसे अपना बनाने की नीति तो बना सकते हैं? कूटनीति को अपना सकते हैं? चाणक्य तो बन सकते हैं? न हमारी कूटनीति पड़ोसी देशों के साथ सफल हुई, न हम चाणक्य बन सके। अत: देश हमारी विदेश नीति के कारण सिकुड़ता चला गया। परन्तु इस पर भी हमारे पड़ोसी देश हमारे न बन सके। विदेश नीति पर बोलते हुए देश के पहले और प्रगतिशील प्रधानमंत्री पंडित जवाहर नेहरू ने कहा था कि शांति केवल हमारी आशा ही नहीं अपितु हमारी आवश्यकता है। शांति हमारा स्वभाव है। शांति में ही हमारी प्रगति है। शांति हमारी प्राचीन धरोहर है। हम सबको सुखी देखना चाहते हैं। सबका मंगल हो यह हमारी प्रार्थना है इसीलिए उन्होंने ‘पंचशील’ सिद्धांत को अपनाया। हमारी किसी से दुश्मनी ही नहीं है। हम निष्पक्ष और तटस्थ रहेंगे। किसी भी ब्लाक का हिस्सा नहीं बनेंगे। 

हमारी विदेश नीति सिर्फ भारत का हित साधना है। ‘जियो और जीने दो’ हमारी विदेश नीति का नारा है। भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। विस्तारवाद कभी हमारी विदेश नीति का हिस्सा नहीं रहा। हमारी विदेश नीति ‘पीसफुल को-एग्जिस्टैंस’ शांतमय पारस्परिक सह-अस्तित्व से आगे बढ़ रही है। बस इसी को हमारी कमजोरी समझ विदेशी आक्रमणकारी हमें लूटते रहे, हम पर राज करते रहे। हम पंचशील के सिद्धांत पर चलते रहे और चीन अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाता रहा। 1962 में इसी पंचशील ने चीन को हम पर आक्रमण करने पर आमादा किया।

पंचशील का सिद्धांत चीन ही लेकर आया था। चीन ने ही आश्वासन दिया था कि हम प्रत्येक देश की प्रभुसत्ता और सार्वभौमिकता का सम्मान करेंगे, किसी भी देश पर आक्रमण नहीं करेंगे, किसी भी देश के आंतरिक मसलों में दखल नहीं देंगे, आपसी हितों को बराबर सम्मान देंगे, पारस्परिक सौहार्द से प्रत्येक देश को आगे बढऩे का मौका देंगे। चीन ने सब सिद्धांतों, जो वह स्वयं लेकर आया, की धज्जियां उड़ा कर रख दीं। भारत की प्रभुसत्ता और सार्वभौमिकता को पैरों तले रौंद दिया 1962 में। आज चीन हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान की पीठ पर खड़ा होकर हमें ललकार रहा है। कहां खड़ी है हमारी विदेश नीति? चीन और पाकिस्तान को लेकर हमारी विदेश नीति फेल है। मानता हूं नरेंद्र मोदी बड़े कद्दावर नेता हैं। विदेशों में मोदी की तूती बोलती है। रूस और अमरीका के राष्ट्रपति उन्हें गले लगाते हैं। सारा यूरोप मोदी के कसीदे पढ़ रहा है। रूस के राष्ट्रपति ने उन्हें देश का सर्वोत्तम अवार्ड प्रदान किया है।

बंगलादेश का हिंदू मर रहा है। पाकिस्तान अपने आतंकी जम्मू-कश्मीर में भेज रहा हूं। पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान मिलकर आतंकवाद को प्रोत्साहन दे रहे हैं। म्यांमार में सैनिक तानाशाही है। वहां की एक महिला नेता सू की लोकतंत्र की बहाली के लिए जेल में सड़ रही है। म्यांमार से भारत में पलायन जारी है। बंगलादेश का हिंदू रिफ्यूजी बनकर हमारी सरहदों पर घुसने के प्रयास में है। ऐसे में नरेंद्र मोदी यूक्रेन और रूस में युद्धबंदी करवाने में व्यस्त हैं। फिलिस्तीन और इसराईल में घोर युद्ध छिड़़ा है।

ईरान ने इसराईल को मिसाइलों से भून देने की चेतावनी दे डाली है। सारे इस्लामिक मुल्क फिलिस्तीन की सैन्य सहायता के लिए उमड़ पड़े हैं। अमरीका ने इसराईल और यूक्रेन को पूर्ण सैन्य सहायता दे रखी है। इन हालात में हमारी विदेश नीति मूक बनकर खड़ी है। विदेश नीति पर नरेंद्र मोदी  को भारत का हित सोचना चाहिए। हमारे पड़ोसी देशों ने हमें घेर रखा है। हमारी विदेश नीति को जंग क्यों लग गया है? ठीक है कि 1991 तक सोवियत यूनियन संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर मसले पर भारत का साथ देता आया था परन्तु गर्वाचौव के राष्ट्रपति पद त्यागते ही रूस का वह रूप शायद हमारी मदद करने वाला न रहा।

फिलहाल तो रूस के राष्ट्रपति पुतिन मोदी के दोस्त दिखाई दे रहे हैं परन्तु कल का किस को पता? अत: भारत के विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री के रक्षा सलाहकार डोभाल विदेश नीति को भारत के हित में जोडऩे का प्रयास करें। हमारी विदेश नीति का मूल आधार ही ‘राष्ट्रहित’ होना चाहिए जो आज भारत की विदेश नीति में दिखाई नहीं देता। पड़ोसी देशों ने भारत से अपनी शत्रुता के बिगुल बजा दिए हैं। पाकिस्तान कभी भारत का अंग था। भाई होने के नाते उसने अपने घर का बंटवारा कर लिया। बंटवारा कर लिया सो कर लिया। वह अपने घर में राजी,  हमें अपने देश पर गर्व। परन्तु पाकिस्तान तो भारत का पक्का दुश्मन बन गया। उसने अफगानिस्तान, चीन और अमरीका को अपना बना लिया। फिर एक के बाद एक भारत पर आक्रमण करता चला गया।

सितम्बर 1947 को ही पाकिस्तान ने कश्मीर में गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया और जम्मू-कश्मीर के बहुभाग पर कब्जा कर लिया। तब से आज तक पाकिस्तान भारत से दुश्मनी निभाता चला आ रहा है। नित नए-नए आतंकवादी आई.एस.आई. से ट्रेनिंग लेकर जम्मू-कश्मीर में मासूम लोगों की हत्याएं कर रहे हैं। आज बंगलादेश की प्रधानमंत्री भारत में शरण लिए हुए है। बंगलादेश में कट्टर-इस्लामी हिंदुओं के घरों, दुकानों, उनकी धन सम्पत्ति को सरेआम लूटकर ले जा रहे हैं। बंगलादेश का हिंदू भारत में घुसने का प्रयास कर रहा है और वहां की सरकार कट्टरपंथियों के हाथ का खिलौना बनी हुई है। अत: मेरा निवेदन मोदी सरकार से है कि भारत की विदेश नीति पर पुन:विचार किया जाए।

भारत का हिंदू विशाल दिल वाला है, उदार है। परन्तु हमारी विदेश नीति हिंदू को कायर न बनाए। भारत के गौरव को पुन: जागृत करो। समय रहते अपने पड़ोसी देशों से या तो वार्तालाप करो या उन्हें भारत की ताकत का इजहार करवाओ। कायरों की तरह सिर्फ फोकी धमकियां मत दो। एक बार आर-पार होने दो। -मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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