हमारे नेताओं को 2025 एक बेहतर वर्ष बनाना होगा

Edited By ,Updated: 01 Jan, 2025 05:03 AM

our leaders must make 2025 a better year

वर्ष 2024 का विदाई उल्लेख किस तरह करें? नई आशाओं और नए वचनों के साथ वर्ष 2025 का स्वागत करते हुए शैंपेन की बोतल खोलें या अगले 12 महीनों तक निरंतर पतन देखते रहें। स्पष्ट है कि वर्ष 2024 को इतिहास में एक उथल-पुथल भरे वर्ष के रूप में देखा जाएगा।

वर्ष 2024 का विदाई उल्लेख किस तरह करें? नई आशाओं और नए वचनों के साथ वर्ष 2025 का स्वागत करते हुए शैंपेन की बोतल खोलें या अगले 12 महीनों तक निरंतर पतन देखते रहें। स्पष्ट है कि वर्ष 2024 को इतिहास में एक उथल-पुथल भरे वर्ष के रूप में देखा जाएगा। राजनीतिक दृष्टि से वर्ष 2024 में एक विकृत, नई निकृष्ट बात देखने को मिली। भाजपानीत राजग और कांग्रेस के बीच पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार और स्मारक को लेकर कुछ विवाद देखने को मिला। राहुल गांधी ने सरकार पर आरोप लगाया कि पूर्व प्रधानमंत्री का अंतिम संस्कार राजघाट पर करने की बजाय सार्वजनिक घाट पर करने से उनका अपमान किया गया है और उनके स्मारक के लिए भूमि नहीं दी गई। भाजपा ने इसका प्रत्युत्तर कांग्रेस पर यह आरोप लगाते हुए दिया कि यह राजनीतिक लाभ के लिए छोटी मनगढ़ंत बातों से इस दुख की घड़ी का दोहन कर रही है। 

कांग्रेस भूल गई है कि उन्होंने अपने ही पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव के अंतिम संस्कार के समय कैसा व्यवहार किया था और उनके लिए दिल्ली में स्मारक के लिए भूमि नहीं दी थी। उनके पाॢथव शरीर को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय में रखने नहीं दिया गया और राव परिवार से कहा गया कि वे उनका अंतिम संस्कार हैदराबाद में करें, स्मारक बनाना तो दूर की बात है। राव का स्मारक राष्ट्र एकता स्थल मोदी सरकार द्वारा बनवाया गया। उसके बाद भाजपा ने कांग्रेस के प्रथम परिवार सोनिया-राहुल पर अमरीकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के साथ संबंधों और उसके साथ मिलकर भारत को अस्थिर करने के लिए भारत विरोधी एजैंडा चलाने का शोर मचाया और यहां तक कि इस मुद्दे पर सपा और तृणमूल कांग्रेस ने स्वयं को कांग्रेस से अलग कर लिया। उसके बाद ‘मेरा आंबेडकर बनाम तुम्हारा आंबेडकर’ को लेकर विवाद देखने को मिला। 

चुनावी दृष्टि से वर्ष 2024 के आम चुनावों में मोदी को नुकसान उठाना पड़ा और मोदी 3.0 में इस बार 400 पार की बजाय गठबंधन सरकार बनाने के लिए बाध्य होना पड़ा। निश्चित रूप से भाजपा को अकेली सबसे बड़ी पार्टी के रूप में 240 सीटें मिलीं और सहयोगी दलों के साथ 293, किंतु क्या मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में अपनी शर्तों के अनुसार कार्य कर पाएंगे? उसके बाद भाजपा महाराष्ट्र में अपने सहयोगी दलों के साथ भारी जीत दर्ज कर भूल सुधार करने में सफल रही। साथ ही हरियाणा में भाजपा ने भारी जीत दर्ज की, हालांकि लोकसभा चुनावों में इन दोनों राज्यों में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था। कांग्रेस अपनी विफलता से कोई सबक नहीं ले रही। अब देखना यह है कि कांग्रेस इस स्थिति से कैसे उबरती है। 
वर्तमान में इंडिया गठबंधन में तकरार चल रही है। तृणमूल कांग्रेस की ममता की तरह इस बार दिल्ली में केजरीवाल भी अकेले चुनाव लडऩे जा रहे हैं। साथ ही ममता बनर्जी ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं कि वह इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं। इस राजनीतिक आक्रोश के बीच आम आदमी रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष कर रहा है तथा उसमें आक्रोश और असंतोष बढ़ रहा है। जनता अपनी समस्याओं का समाधान चाहती है और नए वर्ष में बदलाव की आशा रख रही है।  

सामाजिक क्षेत्र में भी स्थिति अच्छी नहीं है। स्वतंत्रता के 70 वर्षों बाद भी शिक्षा, स्वास्थ्य और खाद्यान्न के क्षेत्र में अरबों-खरबों रुपए खर्च करने के बावजूद 70 प्रतिशत लोग अभी भी भूखे, अशिक्षित, अकुशल और बुनियादी चिकित्सा सुविधा से वंचित हैं। कहीं भी चले जाएं, स्थिति एक जैसी है जिसके चलते लोग कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं और हिंसा करने पर उतारू हैं।  देश की राजधानी दिल्ली में जघन्य हत्याएं देखने को मिल रही हैं और ऐसा लगता है कि सारा देश अंधेर नगरी में बदल रहा है। महिलाओं का यौन उत्पीडऩ, उनके साथ छेड़छाड़ आदि की घटनाएं बढ़ रही हैं। देश में प्रत्येक मिनट में 7 बलात्कार होते हैं। निर्भया से लेकर हाथरस तक स्थिति में बदलाव नहीं हुआ। विदेशी मोर्च पर चीन के साथ भारत के संबंधों में विशेष सुधार नहीं हुआ। लंबी बातचीत के बाद मोदी चीन को इस बात से सहमत कराने में सफल हुए हैं कि पूर्वी लद्दाख, देपसांग और गलवान घाटी में शांति और स्थिरता बहाल की जाए, जहां पर जून 2020 में नियंत्रण रेखा पर चीन ने आक्रामक कार्रवाई की थी। चीन न्यू नार्मल बनाना चाहता है, किंतु भारत को बुद्धिमता, परिपक्वता और धैर्य के साथ रणनीति अपनानी होगी, ताकि वह भारत-चीन संबंधों को नियंत्रित कर सके। 

देश 2025 में प्रवेश कर रहा है, हमारे नेतागणों को जिम्मेदारी से अपने कत्र्तव्यों का निर्वहन करना होगा, अपने तौर-तरीकों को बदलना होगा तथा शासन के वास्तविक गंभीर मुद्दों का निराकरण करना होगा। उन्हें इस बात को समझना होगा कि भारत की लोकतांत्रिक शक्ति आम जनता की सहनशीलता और धैर्य में है। इसके अलावा सरकार व विपक्ष दोनों को अपने नेताओं के साथ मिलकर इस बात पर विचार करना होगा कि यदि दोनों पक्ष मिलकर कार्य करेंगे तो एक बहुलवादी समाज का निर्माण होगा, जहां पर विभिन्न समुदायों के लोग मिलकर रहेंगे, जो एक राष्ट्र का निर्माण करते हैं। कुल मिलाकर, हमारे शासकों को इस बात पर ध्यान देना होगा कि वे वर्ष 2025 को किस तरह से एक बेहतर वर्ष बता सकते हैं। उन्हें अपने बुनियादी कत्र्तव्यों पर ध्यान देना होगा और अधिक मानवीयता के साथ कार्य करने होंगे। उन्हें विश्व को आशा के एक नए लैंस से देखना होगा, जहां पर सम्यक प्राधिकार, सम्यक इरादे और सम्यक आशाएं हमारे प्रत्युत्तर का निर्धारण करें।-पूनम आई. कौशिश
 

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