Edited By ,Updated: 09 Aug, 2024 05:18 AM
हमारे हुकमरानों को शायद अपने विज्ञापनों और उद्घाटन भाषणों की हैडलाइनों पर सरसरी नजर डालने के सिवाय आम जनता से जुड़े अहम मुद्दों बारे छपी खबरें पढऩे-सुनने की आदत नहीं है। पेट की आग बुझाने में असमर्थ गुरबत के मारे लोगों द्वारा की जा रही रोजाना...
हमारे हुकमरानों को शायद अपने विज्ञापनों और उद्घाटन भाषणों की हैडलाइनों पर सरसरी नजर डालने के सिवाय आम जनता से जुड़े अहम मुद्दों बारे छपी खबरें पढऩे-सुनने की आदत नहीं है। पेट की आग बुझाने में असमर्थ गुरबत के मारे लोगों द्वारा की जा रही रोजाना आत्महत्याओं, असामाजिक गतिविधियों में युवाओं की बढ़ती भागीदारी और सरकार विरोधी नारे लगाने वाली भीड़ के बारे में अधिकारियों को कोई चिंता नहीं है। पंजाब में कानून-व्यवस्था की स्थिति हद से ज्यादा खराब हो चुकी है और दिन-ब-दिन खतरनाक होती जा रही है, जो चुटकुलों में माहिर और ‘रंगला पंजाब’ की काल्पनिक बातें कहने वाले मुख्यमंत्री भगवंत मान का ध्यान आकॢषत करने में विफल रही है। ऐसा लगता है कि वह अभी भी इन डरावनी स्थितियों के दूसरे सीढ़ी तक पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं।
आए दिन लूट, चोरी, डकैती और छीना-झपटी की घटनाएं हो रही हैं। बाजारों में राह चलती महिलाओं व लड़कियों से पर्स, आभूषण, मोबाइल फोन आदि छीनने की भी अनगिनत घटनाएं हो रही हैं। लुटेरों ने एयरपोर्ट, बैंक, ए.टी.एम. पर हमला किया और भीड़भाड़ वाले बाजारों से निकलने वाले लोगों का पीछा कर उन्हें सड़कों पर अपनी लूट का शिकार बनाने का नया तरीका खोज निकाला है। आम लोगों के साथ-साथ विदेश से लौटने वाले भारतीय भी रात्रि यात्रा पर निकलते हैं और धार्मिक स्थलों की यात्रा करते हैं। पीड़ितों का एक बड़ा हिस्सा पुलिस को ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट नहीं करता है क्योंकि वे किसी भी भयानक घटना से भयभीत होते हैं जो अपराधी उनके और उनके परिवारों के साथ करेंगे। हालांकि पुलिस भी ऐसी शिकायतें लिखने से कतराती है, क्योंकि हर किसी का परिवार गैंगस्टरों के आतंक में जीता है। पुलिस स्टेशनों और पुलिस गेटों से चंद फुट की दूरी पर लुटेरे और अन्य असामाजिक तत्व बेखौफ होकर अपनी काली करतूतों को अंजाम देते रहते हैं और पुलिस अनजान बने रहने में ही अपनी भलाई समझती है।
रात में काम से घर लौट रहे कर्मचारियों, पत्रकारों और यहां तक कि सादे कपड़ों में पुलिस कर्मियों को भी बंदूक की नोक पर लूटने की घटनाएं हर शहर और कस्बे में बड़ी संख्या में हो रही हैं। यूं तो राज्य में 24 घंटे कोई सुरक्षित नहीं है लेकिन आधी रात के बाद हालात वाकई बेकाबू हो जाते हैं। चोर- लुटेरे, पूरे परिवार की मौजूदगी में घर की दीवारों पर चढ़ जाते हैं और पैसे, आभूषण, गैस सिलैंडर, जो कुछ भी उनके हाथ लग सकता है उसे लूट लेते हैं। इन घटनाओं के चश्मदीद गवाह अपराधियों को पहचानने की हिम्मत नहीं दिखाते क्योंकि हर किसी को अपनी और अपने बच्चों की जान प्यारी होती है। जब जेलों और पुलिस स्टेशनों में अपराधी मोबाइल फोन के माध्यम से नशीली दवाओं की बिक्री, जबरन वसूली और हत्याओं को अंजाम दे रहे हों तो एक आम नागरिक कैसे सुरक्षित महसूस कर सकता है?
खाली कमरों में लुटेरों का गिरोह पानी के नल, बर्तन, कपड़े, फर्नीचर आदि कीमती सामान पर बड़ी आसानी से हाथ साफ कर लेता है। अब लूटपाट के बाद सबूत मिटाने के लिए हत्या करने का चलन भी तेजी से बढ़ रहा है। नशीली दवाओं के काले व्यापार का कानून प्रबंधन से गहरा संबंध है। यदि राजनेताओं, पूंजीपतियों, पुलिस-प्रशासन की काली भेड़ों और मादक पदार्थों के तस्करों का नापाक गठजोड़ हो तो आप समझ लीजिए कि समाज पूर्ण विनाश की राह पर है।
ऐसी नापाक व्यवस्था के जाल में फंसे ईमानदार राजनेता और सरकारी कर्मचारी खुद को असुरक्षित और अलग-थलग महसूस करते हैं। यदि वर्तमान की सबसे खराब स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब पंजाब इस तरह ‘जंगल राज’ में बदल जाएगा जहां हर तरफ भय का माहौल होगा और हर नागरिक अपने आप को असुरक्षित महसूस करेगा। इन स्थितियों के लिए 3 कारक जिम्मेदार हैं - जनविरोधी नवउदारवादी नीतियों के परिणामस्वरूप बढ़ती मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और गरीबी; सरकार और कानून बनाने वाली मशीनरी का भ्रष्टाचार, नौकरशाही का नौकरशाहीकरण।
इन समस्याओं का समाधान क्या है? केंद्र और प्रांतीय सरकारों द्वारा लागू की जा रही कॉर्पोरेट और साम्राज्यवाद हितैषी नीतियों में जन-हितैषी बदलाव लाने के लिए शासक वर्गों को मजबूर करने के लिए एक बड़ा और मजबूत जन आंदोलन खड़ा करना होगा। युवा पीढ़ी, जो हताशा के कारण असामाजिक व्यवसायों में खोई जा रही है, को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और रोजगार की गारंटी प्रदान करके ही देश के विकास में भागीदार बनाया जा सकता है। केवल बातचीत से नहीं, बल्कि ऐसी जनपक्षधर नीति से ही युवाओं के विदेश पलायन की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है।
दूसरे, जन हितैषी विचारधारा पर चलने वाले और जिनके पीछे बड़ी संख्या में निगरानी रखने वाले लोग हों, ऐसे परिपक्व राजनेताओं की सत्ता में भागीदारी से ही भ्रष्टाचार का मुद्दा कुछ हद तक हल हो सकता है। नौकरशाही का निजीकरण इसलिए किया जाता है ताकि सत्तारूढ़ गुट और लूट मचाने वाले वर्गों की रक्षा करने वाले विपक्षी दल धन इक_ा करने के लिए सरकारी तंत्र का खुलकर दुरुपयोग कर सकें। ऐसे समाज में बढ़ती अराजकता और कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को रोक पाना असंभव है। जनता के प्रति सच्ची, ईमानदार और जवाबदेह सरकार की स्थापना के बिना और स्वार्थों के लिए नौकरशाही के नौकरशाहीकरण को रोके बिना कोई सुरक्षित समाज का सपना भी नहीं देख सकता। किसी घटना के लिए उसकी ‘जिम्मेदारी’ सिर्फ नौकरशाही के कारण तय नहीं होती। पंजाब को एक समय महिलाओं और गैर-पंजाबियों सहित प्रांत के सभी निवासियों के लिए एक बहुत ही सुरक्षित स्थान माना जाता था। अब यह स्थिति सपना बन गई है।-मंगत राम पासला