हमारे स्वार्थी हित हमें विनाश की ओर धकेल रहे

Edited By ,Updated: 18 Oct, 2024 05:18 AM

our selfish interests are pushing us towards destruction

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने पिछले सप्ताह अपने वार्षिक विजयदशमी संबोधन में दावा किया कि विश्व मंच पर भारत की छवि, शक्ति, प्रसिद्धि और स्थिति लगातार सुधर रही है। ‘लेकिन मानो हमारे संकल्प की परीक्षा लेने के लिए, हमारे...

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने पिछले सप्ताह अपने वार्षिक विजयदशमी संबोधन में दावा किया कि विश्व मंच पर भारत की छवि, शक्ति, प्रसिद्धि और स्थिति लगातार सुधर रही है। ‘लेकिन मानो हमारे संकल्प की परीक्षा लेने के लिए, हमारे सामने कुछ भयावह षड्यंत्र सामने आए हैं जिन्हें ठीक से समझने की आवश्यकता है। देश को अशांत और अस्थिर करने के प्रयास हर तरफ से जोर पकड़ते दिख रहे हैं।’ ये एक जिम्मेदार राजनीतिक व्यक्तित्व की ओर से आने वाली गंभीर चेतावनियां हैं। भागवत ने अपने संबोधन की शुरूआत इस बात से की कि, ‘‘हर कोई महसूस करता है कि पिछले कुछ सालों में भारत एक राष्ट्र के रूप में दुनिया में अधिक मजबूत और सम्मानित हुआ है और इसकी विश्वसनीयता भी बढ़ी है।’’ हालांकि, उन्होंने जल्दी ही कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों की सूची बना दी, जो न केवल भारत के उत्थान बल्कि इसकी एकता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा हैं। 

भाषण व्यापक है, जिसमें पारिवारिक मूल्यों, महिला सशक्तिकरण और जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों को शामिल किया गया है। भागवत ने कहा, ‘‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी की मदद से हमने जीवन को बेहद आरामदायक बना दिया है,’’ ‘‘दूसरी ओर, हमारे स्वार्थी हितों के टकराव हमें विनाश की ओर धकेल रहे हैं।’’ संक्षेप में, भागवत ने एक घिरे हुए भारत का चित्रण किया है। भारत गणतंत्र की स्थापना के बाद से ही इनमें से अधिकांश चुनौतियों से जूझ रहा है। 1960 के दशक के मध्य में एक समय ऐसा भी था जब पश्चिमी विद्वानों ने आश्चर्य व्यक्त किया था कि क्या भारत विखंडित हो जाएगा। 

यहां तक कि 1990 के दशक में, जब यूगोस्लाविया टूट गया, तब भी भारत की एकता के लिए इसी तरह के खतरे के बारे में सवाल उठाए गए थे। लगभग आधी सदी तक, आर.एस.एस. ने इन चुनौतियों से ठीक से निपटने में विफल रहने और भारत के शासन को गड़बड़ाने के लिए सरकारों को दोषी ठहराया। भागवत विशेष रूप से ‘सीमावर्ती क्षेत्रों’ में अशांति के बारे में ङ्क्षचतित हैं। पिछले एक साल में आखिर ऐसा क्या हुआ कि आर.एस.एस. प्रमुख को अपनी ही सरकार को इतनी कड़ी चेतावनी देनी पड़ रही है? पिछले एक दशक से भी ज़्यादा समय से नई दिल्ली और कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, जिनमें सीमावर्ती क्षेत्र भी शामिल हैं, की सरकारें ऐसे नेताओं द्वारा चलाई जा रही हैं, जिन्होंने आर.एस.एस. और भाजपा से प्रेरणा ली है।

अव्यवस्था और खराब शासन की तस्वीर : देश भर में अव्यवस्था और खराब शासन की जो तस्वीर भागवत ने पेश की है, वह ङ्क्षचताजनक है और उन दिनों की याद दिलाती है, जब आर.एस.एस. ने दिल्ली की सरकारों पर देश के सामने आने वाले खतरों से निपटने में कमजोर और कायराना होने का आरोप लगाया था। निश्चित रूप से, मोदी सरकार को इन घरेलू राजनीतिक और सुरक्षा चुनौतियों, खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में, का प्रबंधन न कर पाने की अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए। क्या दिल्ली दरबार की हुकूमत अब इतनी दूर तक नहीं चलती?लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता वाले देश ‘जो उदार, लोकतांत्रिक और विश्व शांति के लिए प्रतिबद्ध होने का दावा करते हैं, उनकी सुरक्षा और स्वार्थ का सवाल उठते ही गायब हो जाते हैं।’ यह कोई नई शिकायत नहीं है। दुनिया भर के कम्युनिस्ट दशकों से ऐसा कहते आ रहे हैं। तो भागवत अब उन आशंकाओं को क्यों दोहरा रहे हैं? 

उन पंक्तियों को पढ़ते हुए मुझे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कई भाषणों में बार-बार आने वाली एक थीम याद आ गई, जब वे जोर देते थे, ‘‘दुनिया चाहती है कि भारत अच्छा करे, हमारी चुनौतियां हमारे देश में हैं।’’ यह सूत्रीकरण इस आकलन पर आधारित था कि चीन और पाकिस्तान को छोड़कर दुनिया के अधिकांश देश भारत के लिए शुभकामनाएं देते हैं।  कुछ समय पहले तक, यह महसूस किया जाता था कि पूरी दुनिया और निश्चित रूप से पश्चिम और पूर्व के उदार लोकतंत्र भारत के उदय को वैश्विक सार्वजनिक भलाई के रूप में देखते हैं। जब चीन के उदय ने पश्चिम को परेशान कर दिया, तो अमेरिका भी ‘उदार, लोकतांत्रिक, बहु सांस्कृतिक और बहुल भारत’ के उदय को अनुकूल रूप से देखने लगा। तो फिर, हाल के दिनों में ऐसा क्या हुआ कि भागवत बाहरी माहौल को अवसर से ज्यादा चुनौती के तौर पर देख रहे हैं? अब, घेराबंदी की यह भावना क्यों? क्या भारत इतनी तेजी से इतना शक्तिशाली बन गया है कि वह बड़ी शक्तियों के लिए खतरा बन गया है? क्या भागवत का यह सुझाव सही है कि पश्चिमी ‘उदार लोकतंत्र’ भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं और ‘झूठ या अर्धसत्य के आधार पर भारत की छवि को धूमिल करने की जानबूझकर कोशिश की जा रही है?’ 

अगर ऐसा है, तो 3000 डॉलर से कम प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. वाले भारत ने ऐसा क्या किया है कि उसे उससे 5 और 10 गुना आय वाले देशों का गुस्सा झेलना पड़ रहा है? भागवत का गंभीर दृष्टिकोण मौजूदा व्यवस्था की नीतियों, विकसित भारत के अमृत काल के परिणामस्वरूप भारत के उभरने की कहानी के साथ अच्छी तरह से मेल नहीं खाता है।भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। ग्लोबल साऊथ के नेता और एक से अधिक प्रमुख शक्तियों के ‘वैश्विक और रणनीतिक साझेदार’।भागवत ने स्पष्ट किया कि ‘स्थिति का उनका वर्णन डराने,धमकाने या लड़ाई को भड़काने के लिए नहीं है। हम सभी ऐसी स्थिति का अनुभव कर रहे हैं। इस देश को एकजुट, खुशहाल, शांतिपूर्ण, समृद्ध और मजबूत बनाना सभी की इच्छा और कत्र्तव्य है। हिंदू समाज की इसमें बड़ी जिम्मेदारी है...’ ठीक है। तो क्या मोदी सरकार कार्रवाई में गायब दिख रही है?(लेखक 1999-2001 तक भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य तथा 2004-08 तक भारत के प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे हैं।)-संजय बारू

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