पंचायतें ही भारत के लोकतंत्र का आधार

Edited By ,Updated: 23 Oct, 2024 05:43 AM

panchayats are the basis of indian democracy

यही सत्य है, यही लोकतंत्र है कि ग्राम-पंचायतों के चुनाव निष्पक्ष हों और राजनीति को पंचायती चुनावों से अलग रखा जाए। यदि केंद्र सरकार सचमुच लोकतंत्र हितकारी है तो उसे प्रत्येक गांव तक अपना अस्तित्व दिखाना पड़ेगा और हर वयस्क जो गांव में रहता है, उस तक...

यही सत्य है, यही लोकतंत्र है कि ग्राम-पंचायतों के चुनाव निष्पक्ष हों और राजनीति को पंचायती चुनावों से अलग रखा जाए। यदि केंद्र सरकार सचमुच लोकतंत्र हितकारी है तो उसे प्रत्येक गांव तक अपना अस्तित्व दिखाना पड़ेगा और हर वयस्क जो गांव में रहता है, उस तक सच्चे लोकतंत्र को ले जाना होगा। आजादी के इतने वर्षों के बीत जाने पर भी हमारे गांव उपेक्षित, वंचित और गरीबी रेखा से नीचे स्तर का जीवन जी रहे हैं। सरकारों को बापू गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू के ‘ग्राम स्वराज’ के सपनों को पूरा करना होगा। विनोबा भावे और जय प्रकाश के ‘ग्राम चलो’ नारे को साकार करना होगा। लोकतंत्र के आधार को गांव तक पहुंचाना होगा। 

आज पंडित जवाहर लाल नेहरू का वह भाषण याद आ रहा है, जो उन्होंने पंजाब के राजपुरा (पटियाला) में 1960 को दिया था। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि नया भारत तीन क्रांतियों की ओर अग्रसर है। पहली क्रांति भारत में शिक्षा का प्रसार, दूसरी क्रांति कृषि सुधार, तीसरी क्रांति ‘पंचायती राज’। तीनों क्रांतियां भारत के लोकतंत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाएंगी। देहात के दबे-कुचले लोगों को अपना राज मिलेगा। उन्हें अपना शासन आप चलाना आएगा। लोकतंत्र के प्रति गांव के लोगों का विश्वास बनेगा। परन्तु नेहरू के बाद की केंद्र सरकारों ने नेहरू के प्रगतिशील नारों से मुंह ही मोड़ लिया। 

दोस्तो, आपको नहीं लगता कि पंचायती चुनावों ने देहात के लोगों का जीवन बदल दिया। उन्हें अपना राज आप संभालने की आदत आने लगी। अब तो सरकारों ने महिलाओं के लिए पंचायत चुनाव में 33 प्रतिशत आरक्षण भी लागू कर दिया है। दलित, अनुसूचित और वंचित समाज के लिए आरक्षण बढ़ा दिया गया है। पढ़ी-लिखी युवा पंच-सरपंच महिलाएं तो अपने-अपने गांवों को ‘माडल ग्राम’ बनाने में लग जाएंगी। चुने गए पंच-सरपंच अब जात-बिरादरी के झगड़ों को छोड़ भारत के लोकतंत्र का आनंद उठाएंगे। पंच-सरपंच गांव के विकास की राह को आसान बनाते चलेंगे। पंच-सरपंच याद रखें कि पंजाब में पंचायती चुनाव 10 साल बाद हुए हैं। पांच साल की ग्राम विकास योजनाएं बनाकर आगे बढ़ते चलें। अब जात-पात के बंधनों से अपने को मुक्त करो। भारत के लोकतंत्र को और मजबूती दो। गांव के विकास के लिए राजनेताओं पर निर्भर न रहो। राजनीति छोड़ अपने गांव के भाग्य विधाता बनें, यही तुम्हारे और तुम्हारे गांव के हित में होगा। 

असल स्थानीय सरकार तो पंचायत ही है। ग्राम पंचायत क्षेत्र, जनसंख्या और वित्तीय साधन जुटाने में सबसे छोटी और सबसे कारगर इकाई है। बलवंत राय कमेटी का सुझाव था कि शासन का विकेंद्रीकरण किया जाए। केंद्र सरकार के बाद राज्य सरकार, फिर जिला सरकार, फिर तहसील स्तर पर सरकार फिर ब्लाक समिति सरकार और फिर सबसे नीचे पंचायत सरकार। यह है सत्ता का विकेंद्रीकरण। ग्राम पंचायत अंतिम सरकार है। उद्देश्य सरकारों का बस इतना कि अंतिम व्यक्ति भी सत्ता में भागीदार बने। दलित, प्रताडि़त, घोर गरीब, वंचित तक सरकारी पहुंच हो जाए। पंचायती राज स्वशासन (यानी अपना शासन) की ओर पहला ठोस कदम है। संविधान के 73वें संशोधन में पंचायत के संगठन, कार्यों तथा शक्तियों का वर्णन किया गया है। 

भारत में इस समय 2,25,832 से अधिक पंचायतें हैं। पंजाब में 200  आबादी वाले, हरियाणा में 500 आबादी वाले, हिमाचल में 1000 आबादी वाले गांवों को पंचायत माना जाता है। यदि किसी गांव की आबादी इससे कम हो तो अन्य गांवों को जोड़ कर पंचायत बना दी जाती है। गांव पंचायत का आकार इसकी सदस्यता के अनुसार 5 से 31 तक बनाया जाता है। हरियाणा में 6 से 20 तक, पंजाब व हिमाचल प्रदेश में 5 से 13 तक, उत्तर प्रदेश में 16 से 31 तक सदस्य संख्या रखी जा सकती है।  पंचायतों के चुनाव ग्राम सभा गुप्त मतदान द्वारा करवाती है। प्रत्येक वोटर को दो वोट डालने पड़ते हैं। एक सरपंची के लिए और दूसरा वोट पंच के लिए। कई पंचायतें मिल-बैठ कर सर्वसम्मति से पंचों और सरपंच का चुनाव कर लेती हैं। राज्य सरकार किसी भी वैधानिक ढंग से चुनी हुई पंचायत को भंग नहीं कर सकती। 

पंचायत दो प्रकार के कार्य करती है : (क) न्यायिक (ख) प्रशासनिक। पंचायत को अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी सम्पत्ति संबंधी झगड़़ों में आरोपी पक्ष को 100 रुपए का जुर्माना लगा सकती है। पंचायत के ऐसे फरमानों के विरुद्ध आगे किसी भी ‘कोर्ट आफ लॉ’ में अपील नहीं हो सकती। पंचायत अपने किसी भी नागरिक को सम्पत्ति का अवैध उल्लंघन करने पर दंडित कर सकती है। छोटे-मोटे अपराध जैसे जुआ खेलना, कम तोलना, उचित दाम के स्थान पर अनुचित पैसे लेना, पशुओं पर अत्याचार करना, वृक्षों को नष्ट करना, बच्चों को नशा करने और गांव में उपद्रव और मनमानी करने वालों को रोकना इत्यादि काम करने होते हैं। इनके अलावा अपने गांव में खेती और उद्योगों की लघु इकाइयों को प्रोत्साहन देना, हानिकारक कीड़े-मकौड़ों से ग्राम वासियों को मुक्ति दिलाना, गलियों-नालियों के सीवरेज सिस्टम को ठीक रखना, सड़कों और पुलों की मुरम्मत करवाना, गांववासियों और पशुओं के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करना, गांव में सांस्कृतिक और भौतिक सुविधाओं के अवसर देना, कब्रिस्तान तथा श्मशानों के लिए स्थान उपलब्ध करवाना, मेले लगाना, बाग-बगीचों को हरा-भरा रखना, युवाओं के लिए खेल के मैदान, मनोरंजन के साधन उपलब्ध करवाना, लाइब्रेरी या पुस्तकालय का प्रबंध करना इत्यादि शामिल होते हैं। 

पंचायतों को राज्य सरकार या जिले के डी.सी. से पैसा मिलता है। गांव से वसूले गए टैक्स भी ग्राम पंचायतों को धन उपलब्ध करवाते हैं। कूड़ा-कर्कट तथा मृतक पशुओं की बिक्री से आय होती है, कई गांवों में बड़े-बड़े तालाबों में मछली पालने से भी पंचायत को आय होती है। पंचायत की अपनी लैंड भी होती हैं जिससे भी आमदन होती है। पंचायतों को लोग दान भी देते हैं। चूल्हा टैक्स और जुर्माने से भी पंचायत की आय में वृद्धि होती है। परन्तु पंचायतों में राजनीति का बोलबाला बहुत ज्यादा है। क्षेत्र का एम.एल.ए. और सांसद तो पंचायतों को अपना वोट बैंक समझते हैं। जिले का डिप्टी कमिश्रर तो पंचों-सरपंचों को आज भी अपना दास समझता है। सरकारी अधिकारी पंचायती फंडों को अपना माल समझते हैं। भ्रष्टाचार सरकारी कर्मचारी करते हैं, भुगतान पंच-सरपंच को करना पड़ता है। इसके लिए पंचायती एक्ट में सुधार लाजिमी है।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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