वोट बैंक के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं दल

Edited By ,Updated: 09 Jul, 2024 05:22 AM

parties can stoop to any level for vote bank

राजनीतिक दलों का पूरा प्रयास रहता है कि वोट बैंक एकजुट रहना चाहिए, इसके लिए बेशक तमाम कायदे-कानून और नैतिकता को ताक पर क्यों न रखना पड़े। इसका नया उदाहरण तमिलनाडु की डी.एम.के. की सरकार ने दिया है। वोट बैंक की खातिर मुख्यमंत्री स्टालिन की सरकार ने...

राजनीतिक दलों का पूरा प्रयास रहता है कि वोट बैंक एकजुट रहना चाहिए, इसके लिए बेशक तमाम कायदे-कानून और नैतिकता को ताक पर क्यों न रखना पड़े। इसका नया उदाहरण तमिलनाडु की डी.एम.के. की सरकार ने दिया है। वोट बैंक की खातिर मुख्यमंत्री स्टालिन की सरकार ने पिछले दिनों तमिलनाडु में अवैध जहरीली शराब पीने से मरने वालों के आश्रितों को 10-10 लाख रुपए की मुआवजा राशि देने की घोषणा तक कर डाली। जनहित याचिका के जरिए यह मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए पूछा कि गैर-कानूनी काम करने वालों को इतना ज्यादा मुआवजा किस आधार पर देने का निर्णय लिया गया है। 

अदालत ने कहा कि दुर्घटना के मामले में मुआवजा दिया जा सकता है किन्तु अवैध शराब से मौत के मामले में ऐसा नहीं किया जा सकता। याचिका में कहा गया कि मजे के लिए अवैध शराब पीकर मरने वालों के परिजनों को मुआवजा देना उन्हें ऐसे गैर-कानूनी कामों के लिए प्रोत्साहित करना है। जहरीली शराब से मरने वाले स्वतंत्रता सेनानी या समाज सेवक नहीं थे, इन्होंने अपनी जान आम लोगों के भले के लिए नहीं दी, बल्कि अपने मजे लेने के कारण उनकी मौत हुई है। अदालत ने कहा कि सरकार को अपने फैसले पर पुर्नविचार करना चाहिए। आश्चर्य यह कि स्टालिन सरकार से गठजोड़ करने वाली कांग्रेस ने इस पर एक बार भी आपत्ति नहीं जताई। 

तमिलनाडु विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान ए.आई.ए.डी.एम.के. के सदस्यों ने कल्लाकुरिची जहरीली शराब कांड के मुद्दे को लेकर सवाल किए थे। इसके कारण पहले इन सदस्यों को एक दिन के लिए निलंबित किया गया था लेकिन अगले दिन हंगामे की स्थिति उत्पन्न होने के कारण उनको विधानसभा के पूरे सत्र से ही निलंबित कर दिया गया। स्टालिन सरकार की सहयोगी इंडिया गठबंधन की प्रमुख घटक कांग्रेस इस पर भी चुप्पी साधे रही। यह वही कांग्रेस है जिसने मणिपुर ङ्क्षहसा के मुद्दे पर संसद ठप्प करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। संसद की कार्रवाई में गतिरोध उत्पन्न करने के कारण विपक्षी दल के 140 सांसदों को निष्कासन झेलना पड़ा था। इस पर विपक्ष ने खूब शोर-शराबा मचाया था। निष्कासन को लोकतंत्र और संविधान के लिए खतरा बताया गया। 

यह दोहरा मानदंड साबित करता है कि राजनीतिक दलों का स्वार्थ सिर्फ सत्ता तक सीमित है। राजनीतिक दल दिखावे के लिए ही लोगों की भलाई का दंभ भरते हैं। हकीकत यह है कि उन्हें वोट बैंक से मतलब है, इसके लिए बेशक किसी की जान जाए, खराब प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिले या देश का नुकसान हो। सत्ता प्राप्ति के इस खेल में हर तरह का समझौता शामिल है, बस यह एहसास होना चाहिए कि वोट बैंक का फायदा मिल सकता है। सत्ता के लिए ऐसे ढेरों उदाहरण मौजूद हैं। इसका दूसरा बड़ा और निर्लज्ज उदाहरण उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के शासन के दौरान देखने को मिला था। मुख्यमंत्री अखिलेश की सरकार ने टाडा के आतंकियों से मुकद्दमा इसलिए वापस ले लिया कि इससे अल्पसंख्यकों के वोट को रिझाया जा सके। देश तोडऩे वाली इस हरकत पर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों को तो मानो सांप सूंघ गया था। सबकी नजरें अल्पसंख्यकों के वोट बैंक पर लगी हुई थीं। 

राजनीतिक दल सरेआम इस तरह की देशद्रोही हरकत भी कर सकते हैं, बशर्ते सत्ता मेें आने के लिए वोट मिलने चाहिएं। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के शासन के दौरान उत्तर प्रदेश में अपराध चरम पर था। सरेआम माफियाओं का बोलबाला था। दोनों ही दल माफियाओं को मंत्री तक बनाने में भी पीछे नहीं रहे। राजनीतिक दलों की माफियाओं से नजदीकी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की मौत पर सपा प्रमुख अखिलेश फातिहा तक पढऩे चले गए। इसी तरह कुख्यात माफिया अतीक अहमद के पुलिस हिरासत के दौरान मारे जाने पर समाजवादी पार्टी ने लोकतंत्र खतरे में बताया था। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी अतीक की मौत का मातम मनाया था। 

सत्ता की महत्वाकांक्षा में क्षेत्रीय राजनीतिक दल की खाल इतनी मोटी हो चुकी है कि अदालतों की फटकार और सरकार के फैसले निरस्त होने के बावजूद ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति जारी है। दरअसल क्षेत्रीय दलों को लगता है कि सस्ते और लोकप्रिय निर्णय लेकर सत्ता में बने रहा जा सकता है। इसी वजह से तमिलनाडु की सरकार ने गैर कानूनी काम करने से मरे मृतकों के आश्रितों को 10-10 लाख रुपए देने का निर्णय लिया। मतदाताओं को विकास के जरिए आकर्षित करना आसान नहीं है। चेन्नई में हर साल बारिश से आम जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। जनहित की ऐसी समस्याओं का स्थायी समाधान तमिलनाडु सरकार के बूते से बाहर है। यही हाल दूसरे राज्यों का भी है। बुनियादी आधारभूत जरूरतों की पूर्ति करने में अक्षम सरकारें अपना उल्लू सीधा करने के लिए आसान रास्ते तलाशती हैं।-योगेन्द्र योगी 
 

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