दूर का सपना है मणिपुर में ‘शांति’!

Edited By ,Updated: 20 Nov, 2024 05:36 AM

peace in manipur is a distant dream

7 नवंबर : मणिपुर का एक छोटा सा शांत जिरीबाम जिला, जहां पर संदिग्ध कुकी उपद्रवियों द्वारा 3 मैतेई महिलाओं और 3 बच्चों का अपहरण किया जाता है और उसके बाद 1 महिला और 2 बच्चों की हत्या की जाती है तथा उनके शव जिरीबाम नदी में मिलते हैं जिसके बाद वहां विरोध...

7 नवंबर : मणिपुर का एक छोटा सा शांत जिरीबाम जिला, जहां पर संदिग्ध कुकी उपद्रवियों द्वारा 3 मैतेई महिलाओं और 3 बच्चों का अपहरण किया जाता है और उसके बाद 1 महिला और 2 बच्चों की हत्या की जाती है तथा उनके शव जिरीबाम नदी में मिलते हैं जिसके बाद वहां विरोध प्रदर्शन, हत्याएं, आगजनी की घटनाएं होती हैं, भीड़ द्वारा राज्य के कई मंत्रियों और विधायकों के घर जलाए जाते हैं। 

केन्द्र सुरक्षा एवं कानून-व्यवस्था की चुनौतीपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए केन्द्रीय बलों की 70 कंपनियां भेजता और कफ्र्यू लगाता है। गृह मंत्री शाह अपने महाराष्ट्र के चुनावी दौरे को बीच में ही छोड़कर दिल्ली आते हैं और राज्य के 6 पुलिस स्टेशनों में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (अफस्पा)पुन: लागू कर देते हैं। इस कदम से अविश्वास बढ़ता है और एक तरह से असंभव स्थिति पैदा हो जाती है। 

मणिपुर में मुख्यत: हिन्दू मैतेई बहुसंख्यक और ईसाई कुकी समुदाय के बीच 19 माह से जातीय संघर्ष चल रहा है और इसका कारण मैतेई समुदाय द्वारा आरक्षण सहित अनुसूचित जनजाति का दर्जा करने की मांग करना है। कुकी जोमी द्वारा इसका विरोध करने के चलते हुए संघर्ष में 250 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 60 हजार लोग विस्थापित हो गए। केन्द्रीय बलों द्वारा दोनों समुदायों के बीच शांति स्थापित करने और उपद्रवी तत्वों पर अंकुश लगाने का कार्य किया गया है, किंतु मणिपुर पुलिस द्वारा उनके कार्यों में अड़चनें पैदा की गईं और उन्हें समस्या के अंग के रूप में देखा जाता है। केन्द्र ने वर्ष 2008 में मुख्यत: पहाड़ी क्षेत्रों के 25 उपद्रवी गुटों के साथ कार्रवाई निलंबन समझौता किया था और वह इस समझौते को बनाए रखने के लिए बाध्य है ताकि उपद्रवियों के विरुद्ध कार्रवाई से जो लाभ मिले, उसे संचित किया जा सके और जमीनी स्तर पर स्थिति और जटिल न बने। 

समस्या को एक बात और बढ़ाती है कि दोनों पक्षों के गुटों ने अपने आपको ग्राम रक्षा स्वयंसेवी के रूप में संगठित कर लिया है। पुलिस पर्वतीय क्षेत्रों के स्वयंसेवियों को आतंकवादी कह रही है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों के गुट घाटी के लोगों को क्रांतिकारी कह रहे हैं। सबसे दुखद तथ्य यह है कि राज्य सरकार की कार्रवाई केवल खोखली बातों, बाहरी लोगों को दोष देने, इंटरनैट पर प्रतिबंध लगाने और बातचीत के वायदे करने तक सीमित रह गई है। केन्द्र द्वारा दोनों पक्षों को वार्ता के लिए सहमत कराने के प्रयास भी सफल नहीं हुए। इसके साथ ही पिछले वर्ष सुरक्षा बलों से जिन 5000 हथियारों को लूटा गया था, वे अभी भी गायब हैं। राज्य सरकार अभी भी इस समस्या को काननू-व्यवस्था की दृष्टि से देखती है। उसके संकीर्ण दृष्टिकोण से सुरक्षा बलों की कठिनाइयां बढ़ी हैं और पड़ोसी बंगलादेश में राजनीतिक उथल-पुथल के चलते स्थिति और उलझी है। 

मणिपुर आज मौत की घाटी के रूप में बदल रहा है। लोगों की परेशानी दूर करने के लिए केन्द्र ने क्या कदम उठाए हैं? या केन्द्र अभी तक केवल बातें और फोटो ङ्क्षखचवाने तक सीमित है। साइन बोर्डों पर सामाजिक पहचान लिखी जा रही है, फिर भाईचारे के संवैधानिक सिद्धान्त का क्या हुआ? दुर्भाग्यवश सभी पाॢटयां इस स्थिति का दोहन कर रही हैं। किंतु सब लोग इस बात से सहमत हैं कि मणिपुर में जो संघर्ष और खून-खराबा चल रहा है, वह बीरेन सिंह द्वारा अपनी कुर्सी बचाने का एक राजनीतिक खेल है। वह 2 दशक से राजनीति में हैं और मैतियों के एक बड़े नेता हैं तथा उनका झुकाव हिन्दुत्व की ओर है। उनका एजैंडा है कि अपने समुदाय के लिए अधिकतम राजनीतिक अधिकार प्राप्त किए जाएं, जो अपने हिन्दुत्व ब्रांड के माध्यम से केन्द्र से अपने कार्य करवाएं। 

असम के मुख्यमंत्री हिमन्ता बिस्व सरमा, जो नार्थ ईस्ट डैमोक्रेटिक अलायंस के प्रमुख हैं और वर्तमान में हिन्दुत्व के पोस्टर ब्वॉय हैं, का कहना है कि मणिपुर में जनसंख्या का वितरण इस तरह है कि 70 प्रतिशत लोगों के पास 30 प्रतिशत भूमि है। कुकी और नागा घाटी में आ सकते हैं किंतु मैतेई पहाड़ों पर नहीं जा सकते। यही स्थिति बोडोलैंड के बारे में असम में भी है। पूर्व सेनाध्यक्ष नरवणे ने कहा कि मणिपुर में विदेशी हस्तक्षेप की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि चीन कई वर्षों से मणिपुर में विभिन्न उपद्रवी समूहों की सहायता कर रहा है और इसके अलावा सीमा पार मादक द्रव्यों का व्यापार खूब फल-फूल रहा है। फिर आगे की रूपरेखा क्या है? कुछ भी नहीं। केन्द्र द्वारा गठित शांति समिति विफल हो गई है क्योंकि कुकी और मैतेई दोनों समूहों का कहना है कि वे इसकी बैठकों में भाग नहीं लेंगे। अब तक इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री की चुप्पी और सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह किस प्रकार इस स्थिति का समाधान करेगी। लगता है इस बारे में किसी को कोई अंदाजा नहीं है। इससे यह मामला और उलझा है। 

केन्द्र और राज्य दोनों को यह स्वीकार करना होगा कि चर्चा और बहस में बढ़त से टी.वी. एंकरों को लाभ मिलेगा किंतु इससे समस्या और जटिल होगी तथा मणिपुर के घावों पर और नमक छिड़का जाएगा जो अच्छा नहीं है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिकायतें और प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के लिए एक तंत्र बनाया जाए। यह आवश्यक है कि केन्द्र और राज्य सरकार राजनीतिक और प्रशासनिक विफलता का निराकरण करें और अफस्पा जैसे उपाय न अपनाएं। 
केन्द्र को बीरेन सरकार को निर्देश देना चाहिए कि वह कानून के शासन को स्थापित करे और प्रशासन को पटरी पर लाए तथा लोगों के घावों पर मरहम लगाए। नि:संदेह हमारा राजनीतिक नेतृत्व विफल हुआ है। हर कोई पानी पर लकीर खींचने और राजनीतिक बढ़त लेने का प्रयास कर रहा है और संसद भी इस मुद्दे का समाधान ढूंढने में विफल रही है क्योंकि विपक्ष और सत्तारूढ़ दल इस टकराव को समाप्त करने के लिए कदम उठाने के लिए सहमत नहीं हैं। 

हमारे नेताओं को सामूहिक रूप से मणिपुर में विभिन्न समुदायों के बीच पैदा हुई खाई को पाटने के लिए उपायों पर विचार करना चाहिए क्योंकि मणिपुर की अशांति का प्रभाव पड़ोसी राज्यों पर भी पड़ता है, जैसा कि मिजोरम में देखने को मिला है जहां पर एक स्थानीय गुट ने वहां स्थित मैतेई जनसंख्या को धमकी दी है। किंतु दुर्भाग्यवश अल्पकालिक टकराव की राजनीति के चलते सामूहिक प्रयास नहीं हो रहे, जो संकट के समय में हमारे नेताओं के उत्तरदायित्व और जिम्मेदारियों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। देश की जनता दिल्ली और इंफाल में सरकारों से कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहती है। मणिपुर की जनता हमारे राजनेताओं और शासकों से आश्वासन चाहती है। समय आ गया है कि विभिन्न समुदायों के उपद्रवी तत्वों और लोगों की परेशानियों और ङ्क्षहसा की राजनीति करने वाले लोगों पर अंकुश लगाया जाए। इतिहास निर्दोष लोगों के दमन को न तो कभी माफ करता है और न ही कभी भुलाता है।-पूनम आई. कौशिश
 

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