पाकिस्तान के साथ खेलने का मतलब आतंकवाद को कमजोर करना

Edited By ,Updated: 16 Nov, 2024 05:43 AM

playing with pakistan means weakening terrorism

1894 में अपनी शुरूआत से ही ओलिम्पिक आंदोलन का आदर्श वाक्य रहा है ‘शांति के लिए खेल’। नौवीं शताब्दी ईसा पूर्व में ओलिम्पिक युद्धविराम का इतिहास हमें बताता है कि इसका इस्तेमाल ग्रीस के युद्धरत राजाओं द्वारा वास्तविक संघर्ष के विकल्प के रूप में एथलीटों...

1894 में अपनी शुरूआत से ही ओलिम्पिक आंदोलन का आदर्श वाक्य रहा है ‘शांति के लिए खेल’। नौवीं शताब्दी ईसा पूर्व में ओलिम्पिक युद्धविराम का इतिहास हमें बताता है कि इसका इस्तेमाल ग्रीस के युद्धरत राजाओं द्वारा वास्तविक संघर्ष के विकल्प के रूप में एथलीटों के बीच शांतिपूर्ण प्रतिस्पर्धा की अनुमति देने के लिए किया गया था। खेल प्रतियोगिताओं में दर्शकों की भागीदारी की अनुमति देकर राजाओं ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि लोगों यानी गैर एथलीटों का भी शत्रुता को समाप्त करने, आपसी सद्भाव को बढ़ाने और शांति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान है। दुख की बात है कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट प्रतियोगिता की बात आती है, तो खेल रूपक रूप से युद्ध का मैदान बन जाता है। भारत सरकार स्पष्ट रूप से मानती है कि न तो एथलीटों और न ही गैर-एथलीटों की भारत-पाक शांति स्थापना में कोई भूमिका है।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बी.सी.सी.आई.) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आई.सी.सी.) को दिए गए इस निर्णय से यही अर्थ निकाला जा सकता है कि भारतीय क्रिकेट टीम को अगले साल की शुरूआत में 8 देशों की चैंपियंस ट्रॉफी में भाग लेने के लिए पाकिस्तान जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हालांकि अभी तक आधिकारिक रूप से स्पष्ट नहीं किए गए इस निर्णय के लिए नई दिल्ली के कारण परिचित लाइनों के समान है। पाकिस्तान भारत में आतंकवादी गतिविधियों का प्रायोजक बना हुआ है। इसलिए ‘आतंकवाद और खेल’ एक साथ नहीं चल सकते, जैसे कि ‘आतंकवाद और बातचीत’ एक साथ नहीं चल सकते। 

भारत सरकार का तर्क तथ्यों के आधार पर सही है, लेकिन इसके निष्कर्ष  त्रुटिपूर्ण हैं। आइए पहले तथ्यों पर नजर डालें। पाकिस्तान ने भारत में आतंक का निर्यात बंद नहीं किया है। पिछले महीने की शुरूआत में विधानसभा चुनावों के सफल समापन के बाद पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों ने जम्मू और कश्मीर में हमारे सुरक्षा बलों और नागरिकों पर कई हमले किए हैं। हालांकि, पाकिस्तान का आतंकवाद को समर्थन कोई नई बात नहीं है। इसकी शुरूआत 1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक की शुरूआत में हुई थी, जब इसने भारत को 2 मोर्चों पर नुकसान पहुंचाना शुरू किया खासकर पंजाब (खालिस्तानी संगठनों के माध्यम से) और कश्मीर में अलगाववादियों को बढ़ावा देकर और बाद में मुंबई, दिल्ली और अन्य जगहों पर भारतीय क्षेत्र में और भी गहराई तक हमला करके। 

घरेलू स्तर पर परिणामी अस्थिर परिस्थितियों और आतंकवाद के केंद्र के रूप में वैश्विक स्तर पर अर्जित बदनामी के कारण कई क्रिकेट खेलने वाले देशों ने पाकिस्तान का दौरा करने से परहेज किया। लेकिन क्या इससे यह निष्कर्ष निकालना सही है कि भारत को पाकिस्तान के साथ अपने सभी क्रिकेट संबंध तोड़ देने चाहिएं? नहीं, वास्तव में भारत ने 1993 में मुंबई पर हुए आतंकी हमलों और 2001 में संसद पर हुए हमले के बाद भी पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना जारी रखा। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के आशीर्वाद से पाकिस्तान और भारत दोनों की धरती पर टैस्ट सीरीज खेली गईं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी दोनों टीमें खेलती रही हैं, हालांकि यू.ए.ई. और श्रीलंका जैसे तीसरे देशों में। यह इस निष्कर्ष को ध्वस्त करता है कि ‘आतंकवाद और क्रिकेट एक साथ नहीं चल सकते’।

दूसरे निष्कर्ष के बारे में क्या कहा जाए कि भारतीय टीम के लिए पाकिस्तान में खेलना असुरक्षित है? खैर, पाकिस्तान सरकार ने आई.सी.सी.  सदस्यों को यह समझाने के लिए ठोस और सफल प्रयास किए हैं कि पाकिस्तानी धरती पर टैस्ट, वन-डे और टी20 सीरीज खेलना सुरक्षित है। हाल के वर्षों में, पाकिस्तान ने ऑस्ट्रेलिया, बंगलादेश, इंगलैंड, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और वैस्टइंडीज की टीमों की मेजबानी की है। इसकी राजनीति में असामान्यता की हद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके इतिहास के सबसे महान क्रिकेटर इमरान खान, जो इसके प्रधानमंत्री भी बने ,मामूली आरोपों में जेल में सड़ रहे हैं। जितनी जल्दी इस्लामाबाद आतंकवाद और धार्मिक कट्टरता से अपने सभी संबंध तोड़ लेगा उतना ही पाकिस्तान के लोकतंत्र, इसकी बेहद संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था और इसकी वैश्विक प्रतिष्ठा के लिए बेहतर होगा।

पाकिस्तानी लोगों के साथ दोस्ती और आपसी विश्वास के बंधन को मजबूत करके आतंकवाद को कमजोर करना बेहतर है। क्रिकेट, सिनेमा, व्यापार और हजारों सालों के सामाजिक-आध्यात्मिक भाईचारे के बंद दरवाजे खोलकर इसे सबसे बेहतर तरीके से हासिल किया जा सकता है। (लेखक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी सहयोगी थे) साभार एक्सप्रैस न्यूज-सुधींद्र कुलकर्णी

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