Edited By ,Updated: 08 Jun, 2024 05:26 AM
किसी भी देश की समृद्धि इस बात पर निर्भर है कि नागरिकों का खानपान कैसा है, वे कितने ऊर्जावान और स्वस्थ हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रति वर्ष 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस की शुरूआत सन् 2019 में की जिसका मुख्य उद्देश्य यही था कि लोग अपने शरीर की...
किसी भी देश की समृद्धि इस बात पर निर्भर है कि नागरिकों का खानपान कैसा है, वे कितने ऊर्जावान और स्वस्थ हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रति वर्ष 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस की शुरूआत सन् 2019 में की जिसका मुख्य उद्देश्य यही था कि लोग अपने शरीर की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पौष्टिक भोजन करें। इस वर्ष का थीम भी यही है। समस्या यह है कि इसे प्राप्त करने में आने वाली रुकावटों को कैसे दूर किया जाए?
खाद्य सुरक्षा का मतलब : इस विषय का महत्व केवल इसलिए नहीं है कि भोजन जीवित रहने के लिए सबसे पहली जरूरत है बल्कि एक ओर पौष्टिक भोजन तो दूसरी ओर तेजी से बढ़ते हुए हानिकारक विषाक्त खाद्य पदार्थों का उत्पादन है। यह बात मई 2024 में ब्रिटिश मैडीकल जर्नल की एक रिपोर्ट में उजागर हुई है। इसमें कहा गया है कि अल्ट्रा प्रोसैस्ड फूड यानी किसी वस्तु को बहुत अधिक समय तक खाने लायक बनाए रखने के लिए रसायनों के इस्तेमाल से बना भोजन अपने दुष्प्रभावों के कारण सीमित तथा कुछ मामलों में वर्जित होना चाहिए।
यदि आप रेल या हवाई यात्रा करते हैं और विदेशों में घूमने या किसी काम से जाते हैं तो आपके ले जाने के लिए दाल, सब्जी, परांठे, चावल, खिचड़ी, शाकाहारी, मांसाहारी सभी प्रकार के व्यंजन प्रस्तुत हैं जिन पर लिखी उनके इस्तेमाल करने की मियाद आपको संतुष्ट कर देती है कि खाने के मामले में कोई चिंता नहीं है। इन्हें तैयार करने में जिस सामग्री का इस्तेमाल हुआ है, वह कानून की मजबूरी के कारण छोटे शब्दों में लिखा जरूर होता है लेकिन उसे समझना टेढ़ी खीर है बस आप एक्सपायर होने की तारीख समझ पाते हैं।
ब्रिटिश मैडीकल जर्नल की रिपोर्ट में इसी भोजन के बारे में विस्तार से बताया गया है। बता दें कि यह रिपोर्ट 30 वर्षों के विश्लेषण और गहन अध्ययन का परिणाम है जो विश्वसनीय है। इसका भी उल्लेख है कि विकसित देशों तथा विकासशील और अविकसित देशों पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है और आगे भी पड़ेगा। एक ओर शानदार स्वास्थ्य सुविधाओं और धन की कमी न होने के कारण अमीर देश हैं और दूसरी ओर बाकी दुनिया है जो सबसे अधिक प्रभावित है।
विपरीत प्रभाव : असल में इन खाद्य पदार्थों को तैयार करने में जिन धातुओं और रसायनों का इस्तेमाल होता है, उनके दूरगामी परिणाम न केवल ङ्क्षचताजनक हैं बल्कि खतरनाक भी हैं। लंबी अवधि तक इन्हें खाते-पीते रहने से कैंसर, हृदय रोग, सांस संबंधी, मानसिक, पेट से जुड़ी बीमारियां और मृत्यु तक होने के आंकड़े दिए गए हैं। विडंबना यह है कि इनका उत्पादन रोका नहीं जा सकता क्योंकि ऐसा करने पर किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पहुंच सकती है। इसके अतिरिक्त पिछले दशकों में विज्ञान तथा टैक्नोलॉजी के इस्तेमाल से खाद्य पदार्थों का उत्पादन बहुत अधिक हुआ है। उसकी पूरी खपत होना कठिन है और गोदामों में भी कब तक रखा जा सकता है! इसलिए प्रोसैस्ड फूड का चलन और उसके लिए औद्योगिक इकाई लगाना प्राथमिकता हो गया है।
इसके अतिरिक्त खेत, खलिहान से लेकर कारखानों तक कच्चा माल पहुंचाने को ध्यान में रख कर सड़क परिवहन और आने जाने के साधनों का विकास हुआ है। पशु पालन, डेयरी उद्योग, जलीय जीवों को खाने योग्य बनाने और प्रोसैसिंग के जरिए उन्हें तरोताजा बनाए रखने के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल अनिवार्य है। यह सब विशाल पैमाने पर होता है। विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस पर इस रिपोर्ट को लेकर सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर समझने के लिए व्यापक बहस होना आवश्यक है। हमारे देश में तो यह और भी जरूरी हो जाता है क्योंकि हम आर्थिक दशा सुधारने के लिए अपने बढ़ते कदमों की गति नहीं रोक सकते, यह आत्मघाती होगा। लेकिन इसी के साथ यह भी सच है कि नागरिकों के स्वास्थ्य को लेकर कोई ढीलापन भी नहीं दिखा सकते। हमारी खेतीबाड़ी, फलों का उत्पादन और मुर्गी या मछलीपालन जैसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुके कुटीर उद्योगों में रोजगार की असीम संभावनाओं की अनदेखी नहीं की जा सकती।
अनुमान है कि हमारे शरीर की ताकत बनाए रखने के लिए साठ प्रतिशत ऊर्जा खानपान से प्राप्त होती है और शेष व्यायाम, प्रदूषण रहित वातावरण और सही जीवन शैली से मिलती है। अब इसमें डिब्बाबंद खाने-पीने यानी रैडी टू ईट चीजें बड़ी-बड़ी मशीनों से बनती हैं। उनमें रंग, फ्लेवर और एडिटिव मिलाए जाते हैं। इनमें सेहत के लिए नुकसानदायक रसायन भी शामिल हैं। यदि इसमें आजकल तेजी से बढ़ रहे डायटीशियन के व्यवसाय को जोड़ लिया जाए तो इन चीजों की खपत का आंकड़ा बहुत अधिक है।खाद्य सुरक्षा से जुड़ा एक और विषय है जो खाने-पीने की चीजों में की जाने वाली मिलावट से जुड़ा है। यह बहुत गंभीर है और समाज इसके प्रति अक्सर नर्म रुख अपनाता है क्योंकि उसे मिलावट करने वालों से जो कानूनी सुरक्षा मिलनी चाहिए, वह लगभग नदारद है। मिलावटियों को केवल साधारण जुर्माना या थोड़ी सी कैद दी जा सकती है जबकि यह इतना गंभीर अपराध है कि इन्हें मृत्यु दंड या आजीवन कारावास मिलना चाहिए।-पूरन चंद सरीन