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राजनीतिक दलों को संयम के साथ काम करना चाहिए

Edited By ,Updated: 19 Dec, 2024 05:16 AM

political parties must act with restraint

सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दलों के बीच राजनीतिक बयानबाजी और कटुता दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है और प्रत्येक पक्ष राजनीतिक विरोधियों पर कटाक्ष करने और उनका उपहास करने का कोई मौका नहीं छोड़ता। कई बार इससे विडंबनापूर्ण और आत्म-विरोधाभासी स्थितियां पैदा...

सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दलों के बीच राजनीतिक बयानबाजी और कटुता दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है और प्रत्येक पक्ष राजनीतिक विरोधियों पर कटाक्ष करने और उनका उपहास करने का कोई मौका नहीं छोड़ता। कई बार इससे विडंबनापूर्ण और आत्म-विरोधाभासी स्थितियां पैदा हो जाती हैं।

वे दिन चले गए जब संसद राजनीतिक विरोधियों के बीच ज्ञानवर्धक भाषणों और मैत्रीपूर्ण वार्ता का स्थान हुआ करती थी, जिसमें कभी कोई कटुता नहीं दिखती थी। पीलू मोदी, जिनका सैंस ऑफ ह्यूमर लाजवाब था, राम मनोहर लोहिया और जवाहरलाल नेहरू जैसे दिग्गज एक-दूसरे पर कटाक्ष करते थे, लेकिन ऐसा करते समय उनके बीच कटुता का कोई निशान नहीं था। अपनी बात जोर-शोर से और स्पष्ट रूप से रखते थे और बिना किसी रुकावट के अपनी बात कहने की अनुमति देते थे। नेता संसद के बाहर अक्सर मिलते थे और सामयिक मुद्दों पर चर्चा के लिए भोजन करते थे। आजकल स्थिति काफी विपरीत है, जिसमें स्पष्ट रूप से एक-दूसरे के प्रति कोई सम्मान नहीं है। कटुता आम बात हो गई है। संसद की कार्रवाई को रोकना सामान्य बात है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, क्योंकि यू.पी.ए. शासन के दौरान भाजपा के सदस्य भी ऐसा ही करते रहे हैं। 

जाहिर है कि संवाद की कमी है और नेता शायद ही कभी राजनीतिक विरोधियों से अनौपचारिक रूप से मिलते हैं। विडंबना यह है कि उन्हें यह एहसास ही नहीं होता कि वे जिन मुद्दों पर दूसरों की आलोचना करते हैं, उनमें से कुछ मुद्दों पर वे खुद भी इससे भी बदतर अपराधी रहे हैं! कांग्रेस, जो निस्संदेह संविधान का उल्लंघन करने के मामले में सबसे बड़ी अपराधी है, संविधान में संशोधन करने की कोशिश करने के लिए भाजपा की आलोचना करती रही है। राहुल गांधी सहित इसके नेता संविधान की एक प्रति लेकर देश भर में घूम रहे थे और दावा कर रहे थे कि भाजपा इसे बदलने के लिए तैयार है। प्रियंका गांधी और पार्टी के अन्य नेता भी भाजपा पर संविधान को खत्म करने की कोशिश करने का आरोप लगा रहे हैं। संयोग से उन्होंने लोकसभा से अपना अभियान जारी रखा, जहां इससे पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर कुछ लाभ मिल सकता था, यहां तक कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भी, जहां इस मुद्दे पर शायद ही कोई चर्चा हुई। 

संविधान के रक्षक के रूप में काम करने या करने की कोशिश करने वाली कांग्रेस यह भूल रही है कि यह इंदिरा गांधी ही थीं जिन्होंने आंतरिक आपातकाल लगाया था और लोगों के मौलिक अधिकार भी छीन लिए थे। इतना ही नहीं, केंद्र में पार्टी की सरकारें विपक्ष शासित राज्य सरकारों को बिना सोचे-समझे बर्खास्त कर रही हैं।

मौजूदा भाजपा सरकार पर मणिपुर में बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली अपनी ही पार्टी की सरकार को बर्खास्त न करने का आरोप लगाया जा सकता है, जो सरकार को बर्खास्त करने के लिए एक उपयुक्त मामला है। दूसरी ओर, भाजपा नेता जाति जनगणना की मांग करके कांग्रेस को विभाजनकारी पार्टी कह रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में पार्टी पर राजनीतिक लाभ के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.) को विभाजित करने का प्रयास करने का आरोप लगाया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ओ.बी.सी. समुदाय के प्रभाव को कम करने के लिए इसे छोटे जाति समूहों में विभाजित करके इसकी एकीकृत पहचान को खत्म करने की कोशिश कर रही है।

इससे पहले उन्होंने कांग्रेस और उसके सहयोगियों पर एक जाति को दूसरी जाति के खिलाफ खड़ा करने का आरोप लगाया था और लोगों से एकजुट रहने की अपील करते हुए कहा था, ‘एक है, तो सुरक्षित है।’ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस सप्ताह संसद में कहा कि कांग्रेस विभाजनकारी है क्योंकि वह धर्म आधारित कोटा लाने के लिए 50 प्रतिशत की सीमा को तोडऩा चाहती थी। 

कांग्रेस पर विभाजनकारी होने का आरोप लगाना और उस पर समाज में दरार पैदा करने का आरोप लगाना वास्तव में बहुत ही विडंबनापूर्ण है। यह आरोप भाजपा के लिए और भी सही है, जिसने हिंदू-मुस्लिम कथा को अपने अभियान का हिस्सा बना लिया है और समाज में 2 समुदायों के बीच जहर घोल दिया है, जिससे आपसी संदेह पैदा हो रहा है। दूसरी ओर, पार्टी कांग्रेस पर बहुसंख्यक समुदाय की कीमत पर अल्पसंख्यकों को खुश करने का आरोप लगाती है। ये बर्तन को काला कहने के क्लासिक उदाहरण हैं। अब समय आ गया है कि राजनीतिक नेता बेबुनियाद आरोप लगाकर अपना हित साधने से बचें और अक्सर मिलकर अनौपचारिक रूप से मुद्दों पर चर्चा करके आपसी संवाद को बेहतर बनाएं।-विपिन पब्बी
 

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