Edited By ,Updated: 14 Nov, 2024 05:30 AM
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बढ़ती जागरूकता और साक्षरता के प्रसार के साथ, देश की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाएं तेजी से अपनी पहचान बना रही हैं और पुरुष परिवार के सदस्यों के हुक्म का पालन करने की पुरानी प्रवृत्ति के विपरीत, राजनीतिक विकल्प बनाने सहित निर्णय ले...
बढ़ती जागरूकता और साक्षरता के प्रसार के साथ, देश की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाएं तेजी से अपनी पहचान बना रही हैं और पुरुष परिवार के सदस्यों के हुक्म का पालन करने की पुरानी प्रवृत्ति के विपरीत, राजनीतिक विकल्प बनाने सहित निर्णय ले रही हैं।कोई आश्चर्य नहीं कि विभिन्न राजनीतिक दल अब नकद लाभ, सबसिडी और महिला मतदाताओं को लक्षित कई कल्याणकारी योजनाओं का वादा करके एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करते हैं। इनमें लाडली बहना, लखपति दीदी और महालक्ष्मी योजना जैसी योजनाएं शामिल हैं। महिलाओं को हर महीने नकद राशि देने का वादा करना नवीनतम प्रवृत्ति है।
इस तरह की योजनाओं पर ध्यान पहली बार तमिलनाडु में सफलतापूर्वक लागू किया गया था, जहां पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने महिलाओं को बर्तन और सबसिडी वाले गैस सिलैंडर दिए थे। इससे उनकी पार्टी को लाभ हुआ और अब सभी दल चुनाव की पूर्व संध्या पर महिलाओं के लिए विशेष योजनाएं लेकर आते हैं। यह रुझान कम से कम 2 प्रमुख कारकों की पुष्टि करता है जो राजनीतिक दलों पर भारी पड़ते हैं- कि अब पाॢटयां महिला मतदाताओं को एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली वोट बैंक के रूप में पहचानती हैं और दूसरी बात यह, कि महिला मतदाताओं का विशाल बहुमत अब पुरुषों द्वारा उन पर थोपे गए विकल्पों पर नहीं चलता।
महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए निस्संदेह उन्हें सस्ते ऋण सहित उत्पादक सुविधाएं प्रदान करना आवश्यक है, लेकिन अधिकांश पार्टियां जो कर रही हैं, वह मुफ्त सुविधाएं प्रदान करना है। यह न तो राष्ट्र के लिए अच्छा है और न ही महिलाओं के लिए। यह उनके आत्मसम्मान को नहीं बढ़ाता या राष्ट्र निर्माण में योगदान नहीं देता लेकिन राजनेता अन्य निहितार्थों के बारे में सोचने की बजाय उचित और अनुचित तरीकों से सत्ता में आने के लिए अधिक उत्सुक हैं।
नेताओं और उनकी पार्टियों का पाखंड महिलाओं को दिए जाने वाले वास्तविक प्रतिनिधित्व में परिलक्षित होता है, जब उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का समय आता है। तब ‘जीतने की क्षमता’ कारक खेल में आता है और बहुत कम महिला उम्मीदवारों को चुनाव लडऩे के लिए चुना जाता है। महाराष्ट्र विधानसभा के आगामी चुनावों में दोनों गठबंधनों, भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन और कांग्रेस के नेतृत्व वाले महा विकास अघाड़ी (एम.वी.ए.) ने महिलाओं को ढेर सारी मुफ्त सुविधाएं देने की घोषणा की है।
महायुति गठबंधन ने लाडली बहना योजना के तहत मासिक भत्ते में वृद्धि का वादा किया है, जबकि एम.वी.ए. ने घरों के लिए 100 यूनिट तक बिजली बिल माफी, महालक्ष्मी योजना के तहत 3,000 रुपए, लड़कियों के लिए मुफ्त गर्भाशय ग्रीवा कैंसर टीकाकरण और सरकारी कर्मचारियों के लिए हर महीने 2 दिन की मासिक धर्म छुट्टी का आश्वासन दिया है। फिर भी दोनों गठबंधनों ने कुल 288 विधानसभा क्षेत्रों में सिर्फ 56 महिलाओं को मैदान में उतारा है। यह आंकड़ा पिछले चुनावों की तुलना में थोड़ा बेहतर है, जहां सभी दलों ने मिलकर सिर्फ 46 महिलाओं को मैदान में उतारा था, लेकिन यह काफी कम है।
यह जमीनी हकीकत है और लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने पर सर्वसम्मति के विपरीत है, जिसके लिए संसद में एक विधेयक पारित किया गया था। जाहिर है कि ये पार्टियां कानून का विरोध करके महिला मतदाताओं को परेशान नहीं करना चाहतीं, लेकिन उन्हें प्रतिनिधित्व देने से पीछे हट जाती हैं। स्पष्ट रूप से ये पार्टियां महिलाओं के वोट हासिल करना चाहती हैं, लेकिन उन्हें अधिक प्रतिनिधित्व देकर उन्हें सशक्त बनाने के लिए तैयार नहीं हैं। यह स्पष्ट है कि नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं को शामिल करने की आवश्यकता के बारे में बात करने के बावजूद, कोई भी पार्टी उन्हें ऐसी भूमिकाओं के लिए तैयार करने का प्रयास नहीं कर रही।
दुर्भाग्य से संयुक्त राज्य अमरीका जैसे उन्नत देश में भी महिलाओं को राजनीति में अभी भी एक सीमा पार करनी है। कमला हैरिस की हालिया हार का कारण यह है कि लिंग के मुद्दे के कारण अधिकांश पुरुषों ने ट्रम्प के पक्ष में मतदान किया क्योंकि उन्हें लगा कि एक महिला दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति बनने के लिए पर्याप्त रूप से योग्य नहीं है। इससे पहले हिलेरी किं्लटन भी राष्ट्रपति चुनाव हार गई थीं। इस तरह से भारत का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर है क्योंकि इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं, लेकिन फिर भी आलोचक यह इंगित करेंगे कि उन्हें वह पद विरासत में मिला जो देश के पहले प्रधानमंत्री के पास था। राष्ट्रीय स्तर पर भी, सभी प्रमुख राजनीतिक दल राजनीति में महिलाओं को बहुत कम प्रतिनिधित्व देते हैं। अब समय आ गया है कि राजनीतिक दल अपनी बात पर अमल करें और महिलाओं के वास्तविक सशक्तिकरण के लिए काम करें।-विपिन पब्बी