विकास में बाधक है अराजकता की राजनीति

Edited By ,Updated: 22 Aug, 2024 05:30 AM

politics of anarchy is an obstacle to development

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में कहा कि आज का दिन आजादी के संघर्ष को याद करने का है। यह दिन सैंकड़ों साल की गुलामी और संघर्षों का रहा है। फिर चाहे युवा हों, बुजुर्ग, महिला, आदिवासी या दलित हों, ये लोग गुलामी के...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में कहा कि आज का दिन आजादी के संघर्ष को याद करने का है। यह दिन सैंकड़ों साल की गुलामी और संघर्षों का रहा है। फिर चाहे युवा हों, बुजुर्ग, महिला, आदिवासी या दलित हों, ये लोग गुलामी के खिलाफ लड़ते रहे। मुझे गर्व है कि हमारी रगों में हमारे पूर्वजों का खून है।

इस दौरान पी.एम. मोदी ने कहा कि 2047 विकसित भारत सिर्फ शब्द नहीं है बल्कि 140 करोड़ देशवासियों का सपना है। उन्होंने कांग्रेस और पूर्व की उसकी सरकारों पर भी जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि पहले लोग बदलाव चाहते थे, लेकिन हम राजनीति का गुणा-भाग करके काम नहीं करते। हम नेशन फस्र्ट को ध्यान में रखकर काम करते हैं। आजादी के वक्त भारत की आबादी सिर्फ 34 करोड़ थी लेकिन आज हम चीन को पीछे छोड़ दुनिया में सर्वाधिक आबादी वाला देश बन चुके हैं। उस वक्त देश का सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) भी करीब अढ़ाई लाख करोड़ रुपए था जो अब करीब 300 लाख करोड़ के पास पहुंच रहा है। तब की 12 फीसदी साक्षरता से आज हम 75 फीसदी के आंकड़े को भी पार कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त फोब्र्स की हालिया रिपोर्ट में स्वर्ण भंडार रखने वाले शीर्ष 20 देशों की सूची में भारत को सऊदी अरब, ब्रिटेन और स्पेन जैसे देशों से आगे रखना देश की अर्थव्यवस्था के प्रति वैश्विक भरोसे का ही प्रतीक है। 

भारत अभी दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्द ही इसके तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है। इन उपलब्धियों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 11वीं बार लाल किले से राष्ट्र को संबोधित किया। इसके साथ ही देश को आगे ले जाने का रोडमैप प्रस्तुत किया। पिछले करीब एक दशक में देश के लगभग 25 करोड़ लोगों का बहुआयामी गरीबी से बाहर आना, एक बड़ी उपलब्धि है। दुर्भाग्य से हमारे देश में आजादी के बाद लोगों को एक प्रकार के माई-बाप कल्चर से गुजरना पड़ा- सरकार से मांगते रहो, सरकार के सामने हाथ फैलाते रहो, लेकिन सरकार ने गवर्नैंस के इस माडल को बदला। आज सरकार खुद लाभार्थी के पास जाती है। 

आज सरकार खुद उसके घर तक गैस का चूल्हा, पानी, बिजली और आर्थिक मदद पहुंचाती है। आज सरकार खुद नौजवानों के स्किल डिवैल्पमैंट के लिए अनेक कदम उठा रही है। पिछले कुछ समय से देश में संविधान को लेकर चल रही बहसें राजनीति का घटिया उदाहरण हैं। इसलिए विकसित भारत की ओर बढऩे के साथ राह में आने वाली चुनौतियों को हराने और अधिकारों के साथ कत्र्तव्यों के प्रति सजग रहने का संकल्प लेने का भी अवसर होना चाहिए। आज सामाजिक एकता पर बल देने की आवश्यकता इसलिए और बढ़ गई है क्योंकि देश को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चुनौतियां आंतरिक मोर्चे पर भी हैं और बाहरी मोर्चे पर भी। हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि आज विश्व में किस तरह उथल-पुथल हो रही है। 

चूंकि उथल-पुथल हमारे पड़ोस में भी हो रही है, इसलिए हमें कहीं अधिक सचेत रहना चाहिए। पड़ोसी देश बंगलादेश में जो कुछ हो रहा है, उससे हमें केवल चिंतित ही नहीं, बल्कि सजग भी रहना चाहिए। संभवत: बंगलादेश के अस्थिरता और अराजकता से घिरने के कारण ही राष्ट्रपति ने भी स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर विभाजन की विभीषिका की ओर देश का ध्यान आकर्षित किया। दुर्भाग्य से आज कई दलों के नेताओं ने सत्ता को सिर्फ राजनीति का खेल समझ लिया है। उनके पास देश के विकास का कोई एजैंडा नहीं है। वे देशी उद्यमियों के खिलाफ झूठी बातें फैलाते हैं। खुद विदेशों से चंदा लेते हैं। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे कई राजनेता अपने बचाव के लिए कुछ भी करने को तैयार दिखाई देते हैं। 

आज भ्रष्टाचार नेताओ को शर्मसार नहीं करता है  बल्कि वे बड़ी आक्रामक मुद्रा में जांच एजैंसियों पर हमला कर रहे हैं। राजनीति पतन की उस पराकाष्ठा पर पहुंच गई है जहां भ्रष्ट नेता देश में अराजकता फैलाने से भी बाज नहीं आते हैं। चिंता की बात यह है कि ऐसे नेता धन-बल और जातीय उन्माद फैलाकर अपना बचाव कर रहे हैं। इसलिए यह इस देश की जागरूक जनता का भी कत्र्तव्य है कि वह ऐसे चेहरे को पहचाने और चुनाव में उन्हें सबक सिखाएं। यदि हम जातिवाद के नाम पर भ्रष्ट और बेईमान नेताओं को भी अपना हीरो मानते रहेंगे तो इस देश की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार माने जाएंगे। देश के नव-निर्माण और लोकतंत्र को मजबूत बनाने में जनता की सबसे बड़ी भूमिका होती है। 

आज देश की प्रगति के रास्ते में अराजकता की राजनीति सबसे बड़ा रोड़ा है। फ्रांस, श्रीलंका, बंगलादेश और पाकिस्तान में इस अराजक राजनीति का हश्र हम सभी देख रहे हैं। इसलिए देश और समाज में झूठी बातें फैलाकर अराजकता की राजनीति करने वाले नेताओं से जनता को सदैव सावधान रहना चाहिए।  ऐसे नेता अपने कार्यक्रमों और एजैंडे की जगह झूठी बातें फैलाकर फिर चुनाव जीतने की कोशिश कर सकते हैं।-निरंकार सिंह  
 

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