Edited By ,Updated: 07 Dec, 2024 05:23 AM
मणिपुर में रह-रह कर कुछ अंतराल के बाद हो रही बर्बर हिंसा शर्मसार कर देती है। बीते बरस 3 मई से शुरू हुई इस हिंसा को रोकने में नाकामयाबी पर भले ही जो राजनीतिक बयानबाजी हो लेकिन मणिपुर में मचे हैवानियत के नंगे नाच से दुनिया भर में कहे-अनकहे जो भी...
मणिपुर में रह-रह कर कुछ अंतराल के बाद हो रही बर्बर हिंसा शर्मसार कर देती है। बीते बरस 3 मई से शुरू हुई इस हिंसा को रोकने में नाकामयाबी पर भले ही जो राजनीतिक बयानबाजी हो लेकिन मणिपुर में मचे हैवानियत के नंगे नाच से दुनिया भर में कहे-अनकहे जो भी संदेश जा रहा है वह ठीक नहीं है। मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जारी स्थानीय जातीय हिंसा में अब तक 258 लोगों ने जान गंवा दी। उससे भी ज्यादा दुखद यह कि कई घटनाओं ने देश-दुनिया को शर्मसार किया। जिरीबाम जिले के बोरोबेकरा क्षेत्र से 3 महिलाओं और 3 बच्चों का 11 नवंबर को अपहरण हुआ।
15 से 18 नवंबर के बीच उनके शव जिरी नदी और असम के कछार में बराक नदी में मिले। इस दौरान अपहृतों के साथ हैवानियत की ऐसी हदें पार की गईं कि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर भी सिहर गए। बच्चे के चेहरे पर गोलियां मारीं फिर भी जी नहीं भरा तो पूरे शरीर पर हमला किया। बच्चे की आंखें तक निकाल लीं। छाती पर काटने के निशान मिले। पसलियां टूटी हुई थीं। बाकियों का भी कमोबेश यही हाल रहा। गोलियों से दिल, फेफड़े और पसलियां कट गईं। पेट फट गए। बांहें चीथड़ों में बदल गईं। खोपड़ी को वजन से कुचला गया। हड्डियां चूर-चूर की गईं और मस्तिष्क को क्षत-विक्षत। इसे पुलिस स्टेशन और विधायकों के आवासों पर बड़ा हमला माना गया।
भुक्तभोगियों की आपबीती सुनने पर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। लोग खेतों या सुनसान इलाकों में छिपकर जान बचाते रहे तो हमलावर गाडिय़ों में भर-भरकर आते और अंधाधुंध गोलियां बरसा कर जो भी मिलता है मारते, बर्बरता करते और अपहरण कर साथ ले जाते। यह उस मणिपुर की मौजूदा हकीकत है जहां मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग पर 3 मई से जारी ङ्क्षहसा थमने का नाम नहीं ले रही है।
मणिपुर की लड़ाई जातिगत है जो जनसंख्या आधारित वर्चस्व की भी है। मौजूदा विधानसभा में 60 में 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं और 20 विधायक नागा-कुकी जनजाति से। राजनीतिक लाभ-हानि और प्रभुत्व की लड़ाई में कौन भारी दिखे असल लड़ाई यही है। नागा-कुकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोधी हैं। इनका तर्क है कि पहले ही 60 में से 40 विधानसभा सीटें मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में अनुसूचित जनजाति वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकार भी बंट जाएंगे।
मैतेई समुदाय की धारणा है कि जब वह बहुसंख्यक हैं तो क्षेत्रीय अखंडता से कैसे समझौता कर लें? वह सोचते हैं कि अपने लिए अगर अलग प्रशासन और व्यवस्थाओं की नीयत रखते हैं तो बुरा क्या है? वहीं कुकी समुदाय भी राजनीतिक प्रभुत्व के वशीभूत होकर मनमाफिक प्रशासन चाहते हैं। मणिपुर की जनसंख्या लगभग 38 लाख है। प्रमुख रूप से तीन समुदाय हैं। मैतेई, नागा और कुकी। मणिपुर में ज्यादातर मैतई हिंदू हैं जिनकी जनसंख्या लगभग 52 से 64.6 प्रतिशत के बीच है। नागा-कुकी ज्यादातर ईसाई धर्म को मानते हैं और अनुसूचित जनजाति वर्ग में आते हैं। इनकी जनसंख्या लगभग 34 प्रतिशत है।
लगभग 10 प्रतिशत इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई बहुल तो नागा-कुकी जनसंख्या राज्य के करीब 90 प्रतिशत इलाके में है। हकीकत में आंकड़ों में दिख रही वर्चस्व की यही लड़ाई वहां गुटीय होकर आपसी हिंसा में तबदील हो गई है। उदाहरण हैं कि केन्द्र ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर हर कहीं विद्रोह, विद्रोहियों, नक्सलवाद, आतंकवाद की कमर तोड़ी है। चाहे पंजाब, जम्मू-कश्मीर का आतंकवाद हो या बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, दक्षिण भारत सहित पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों का नक्सलवाद जिसने ऐसी जड़ें जमाई थीं कि तमाम राज्य सरकारों की नाक में दम कर रखा था।
हां, मणिपुर हिंसा की तुलना नक्सलवाद, अर्बन नक्सलवाद या उग्रवाद से करना बेमानी होगी। सच्चाई स्वीकारनी होगी कि इसे समझने में या तो देरी हुई या समझ कर भी अनजान रहे? भले ही कहें कि मणिपुर की समस्याएं विरासत में मिली हैं लेकिन हैं तो नासूर। कम से कम पूरे देश में अपना परचम फहराने की मंशा रखने और लगभग कामयाबी हासिल करने वाले दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल भाजपा को जरूर सोचना होगा कि डबल इंजन की ताकत और 60 में से 37 विधायक होने के बावजूद मणिपुर क्यों सुलग रहा है? -ऋतुपर्ण दवे