Edited By ,Updated: 07 Aug, 2024 05:30 AM
सैंट्रल टैक्स पूल से राज्यों को टैक्स बंटवारे में भेदभाव चिंताजनक है। कुछ राज्यों तक सीमित न रहते हुए ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास व सबका प्रयास’ की भावना साकार करने को ‘फिस्कल फैडरलिज्म’ यानी राजकोषीय संघवाद में केंद्र व राज्यों के बीच...
सैंट्रल टैक्स पूल से राज्यों को टैक्स बंटवारे में भेदभाव चिंताजनक है। कुछ राज्यों तक सीमित न रहते हुए ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास व सबका प्रयास’ की भावना साकार करने को ‘फिस्कल फैडरलिज्म’ यानी राजकोषीय संघवाद में केंद्र व राज्यों के बीच न्यायसंगत राजस्व बंटवारे के लिए बड़े सुधारों की जरूरत है।
साल 2024-25 के केंद्रीय बजट से देश के संपूर्ण विकास के लिए 5 साल का एक व्यापक आर्थिक एजैंडा तय होने की उम्मीद थी, पर राजनीतिक समर्थन के बदले बिहार को 26,000 करोड़ रुपए व आंध्र प्रदेश को 15,000 करोड़ रुपए के विशेष पैकेज के परिणामस्वरूप बाकी राज्यों में वित्तीय असंतुलन पैदा होना स्वाभाविक है। लैंड लॉक्ड बॉर्डर स्टेट पंजाब व आर्थिक रूप से पिछड़े दूसरे राज्यों को भी पैकेज बारे विचार किया जाना चाहिए। कई चुनौतियों का सामना कर रहे इन राज्यों को भी अपने नागरिकों को बेहतर बुनियादी सुविधाएं देने के लिए पर्याप्त फंड की जरूरत है।
कभी समृद्ध व खुशहाल राज्य रहा पंजाब आज अपनी संकटग्रस्त खेती व ठहरे औद्योगिक विकास के कारण बेलगाम बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है। बीते 5 वर्षों के दौरान 3.6 प्रतिशत औद्योगिक विकास दर ने पंजाब को औद्योगिक विकास के मामले में राज्यों में 12वें स्थान पर पहुंचा दिया है, जबकि पड़ोसी राज्य हरियाणा की औद्योगिक विकास दर 6 प्रतिशत के पार रही है। जी.डी.पी. यानी आर्थिक हालत के मामले में साल 1981 में पहले व 2004 में चौथे नंबर पर रहने वाला पंजाब वित्त वर्ष 2023-24 में 6.98 लाख करोड़ रुपए की जी.डी.पी. के साथ 16वें स्थान पर लुढ़क गया है, जबकि 12वें स्थान पर रहे पड़ोसी राज्य हरियाणा की जी.डी.पी. 11.20 लाख करोड़ रुपए रही।
कभी ‘बीमारू’ (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान व उत्तर प्रदेश) की श्रेणी में रहा बिहार 8.59 लाख करोड़ रुपए की जी.डी.पी. से तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले राज्यों में शुमार हो गया। इधर असंतुलित आर्थिक विकास व बेरोजगारी के चलते संवेदनशील पंजाब अपराध, ड्रग्स व कानून व्यवस्था के मोर्चे पर कई समस्याओं से जूझ रहा है। बढ़ी बेरोजगारी के कारण पंजाब से बड़े पैमाने पर कनाडा जैसे देशों में बेहतर करियर की चाह में पलायन के बाद गुमराह हुए कई पंजाबी नौजवानों की भारत विरोधी गतिविधियों पर तुरंत ध्यान देने व समाधान की जरूरत है। पाकिस्तानी सीमाओं से सटा होने का असर भी पंजाब की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। सीमा पार से ड्रोन के जरिए ड्रग्स व हथियारों का आतंक पंजाब की कानून-व्यवस्था व सामाजिक ताने-बाने के लिए गंभीर खतरा है। इन तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए पंजाब को भी लंबे समय से केंद्र सरकार के विशेष राहत पैकेज की दरकार है।
टैक्स बंटवारे में सुधार की दरकार : सैंट्रल टैक्स पूल से टैक्स बंटवारे में हो रहा भेदभाव भी एक गंभीर मुद्दा है। सैंट्रल टैक्स पूल में दिए गए प्रत्येक 1 रुपए के बदले पंजाब को केवल 51 पैसे मिलते हैं, जबकि बिहार जैसे राज्य को 1.20 रुपए। ऐसे में पंजाब व आर्थिक रूप से पिछड़े दूसरे राज्यों की सामाजिक-आर्थिक दशा में सुधार के लिए सैंट्रल टैक्स पूल से राजस्व बंटवारे की प्रणाली में सुधार की दरकार है। सैंट्रल टैक्स पूल में पंजाब का योगदान लगभग 3 प्रतिशत है, जबकि 15वें वित्त आयोग द्वारा 2022-23 के दौरान राज्यों को बांटे गए 8,16,649 करोड़ रुपयों में से केवल 1.8 प्रतिशत पंजाब को प्राप्त हुए।
वहीं भौगोलिक क्षेत्र व जनसंख्या के आधार पर उत्तर प्रदेश को सबसे अधिक 18 प्रतिशत व बिहार को 10 प्रतिशत की दूसरी सबसे बड़ी हिस्सदारी केंद्रीय कर पूल से मिली है। केंद्र के खजाने में अधिक योगदान के बावजूद उचित हिस्सा दिए जाने की पंजाब व अन्य राज्यों की मांग जायज है। वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान सैंट्रल टैक्स पूल में सी.जी.एस.टी., इंकम टैक्स, कार्पोरेट टैक्स, वैल्थ टैक्स, यूनियन एक्साइज ड्यूटी, कस्टम डयूटी और सर्विस टैक्स के रूप में 32,800 करोड़ रुपए देने वाले पंजाब को बदले में सिर्फ 14,756 करोड़ रुपए मिले। इस मसले को 16वें फाइनांस कमीशन के सामने उठाते हुए पंजाब ने कहा कि वह केंद्र के लिए जुटाए टैक्स में उचित हिस्सेदारी का हकदार है।
केंद्र व राज्यों के बीच टैक्स बंटवारे की सिफारिश करने वाले फाइनांस कमीशन ने राज्यों को नैट टैक्स का 41 प्रतिशत हिस्सा देने की सिफारिश केंद्र सरकार से की थी। बावजूद इसके, राज्यों की हिस्सेदारी 2015-16 में 35 प्रतिशत व 2023-24 में घटाकर 30 प्रतिशत कर दी गई। जुलाई, 2017 से लागू हुए जी.एस.टी. कानून ने भी केंद्र को अधिक आर्थिक शक्तियां दी हैं, जबकि राज्यों की केंद्र पर आॢथक निर्भरता बढ़ा दी है। 16वें फाइनांस कमीशन के चेयरमैन डा. अरविंद पनगढिय़ा को हाल ही में दिए ज्ञापन में पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने जी.एस.टी. लागू होने के बाद से राज्य को होने वाले नुकसान बारे बताया कि ‘वित्त वर्ष 2024-25 के लिए पंजाब के अनुमानित बजट में 25,750 करोड़ रुपए जी.एस.टी. की तुलना में वैट लागू रहने की स्थिति में 45,000 करोड़ रुपए से अधिक टैक्स हासिल होता। वैट लागू रहता तो 2030-31 तक पंजाब को 95,000 करोड़ रुपए के अनुमानित टैक्स की तुलना में केंद्र से जी.एस.टी. से हिस्से के रूप में 47,000 करोड़ रुपए मिलने का अनुमान है’।
आगे की राह : सैंट्रल टैक्स पूल में राज्यों की हिस्सेदारी सही करने के लिए व्यापक सुधारों की जरूरत है। केंद्र व राज्यों के बीच राजस्व संसाधनों के प्रबंधन में निष्पक्षता व जवाबदेही तय हो, इसके लिए फाइनांस एक्ट में संशोधन का लंबे समय से इंतजार है। बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर व बुनियादी सुविधाओं की बेहतरी के लिए राज्यों को और अधिक आर्थिक आजादी चाहिए। (लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एवं प्लाङ्क्षनग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं)-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)