Edited By ,Updated: 10 Aug, 2023 05:47 AM
रणजीत सागर डैम पावर प्रोजैक्ट गांव ‘थीन’ के निकट रावी दरिया की घाटी में स्थित है। नदी के बाईं ओर पंजाब राज्य में और दाईं ओर का क्षेत्र जम्मू-कश्मीर राज्य में पड़ता है। रणजीत सागर डैम 147 मीटर ऊंचा अर्थकोर -कम ग्रेवल शैल डैम है। इस डैम में 150...
रणजीत सागर डैम पावर प्रोजैक्ट गांव ‘थीन’ के निकट रावी दरिया की घाटी में स्थित है। नदी के बाईं ओर पंजाब राज्य में और दाईं ओर का क्षेत्र जम्मू-कश्मीर राज्य में पड़ता है। रणजीत सागर डैम 147 मीटर ऊंचा अर्थकोर -कम ग्रेवल शैल डैम है। इस डैम में 150 मैगावाट सामथ्र्य के 4 यूनिटों वाले 600 मैगावाट का पावर प्लांट लगाया गया है।
इंजीनियर आर.के. भगत जोकि उप-मुख्य अभियंता रणजीत सागर डैम शाहपुर कंडी हैं, के अनुसार पंजाब के प्रसिद्ध शासक महाराजा रणजीत सिंह के नाम पर रणजीत सागर झील का नाम है। झील की कुल भंडारण क्षमता 3280 मिलियन क्यूसिक मीटर है। रावी नदी जिस पर रणजीत सागर डैम निर्मित है, सिंधु बेसिन की 5 प्रमुख नदियों में से एक है और यह धौलाधार पहाडिय़ों से हिमाचल प्रदेश में से निकलती है। इसका करीब 730 किलोमीटर का घेरा हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर तथा पंजाब में पड़ता है।
रावी नदी के ऊपर के पहाड़ी क्षेत्रों में अचानक आई बाढ़ का पानी इसके रास्ते तथा किसी भी उचित स्टोरेज डैम की कमी में पानी का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था। यह पठानकोट, गुरदासपुर और अमृतसर जिलों में बाढ़ के कारण जमीन की तबाही और नुक्सान पहुंचाने के अलावा व्यर्थ में चला जाता था। इसलिए रावी दरिया पर स्टोरेज डैम के निर्माण की जल्द ही जरूरत महसूस की गई ताकि इसमें मौजूद पनबिजली और सिंचाई सामथ्र्य का इस्तेमाल किया जा सके। रावी नदी जोकि धौलाधार रेंज से हिमाचल प्रदेश से निकलती है, के लिए प्रोजैक्ट की कल्पना यू.एस. ब्यूरो ऑफ रिक्लेमेशन के सलाहकार इंजीनियर ए.जे. विली की ओर से वर्ष 1926-27 के दौरान की गई। 1920 में विली कमेटी ने स्टोरेज डैम के निर्माण के लिए गांव थीन के निकट जगह का प्रसार किया। भारत और पाकिस्तान के मध्य 1960 में एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए जिसे ‘सिंधु जल संधि’ कहा जाता है।
इस संधि के अनुसार सतलुज-ब्यास और रावी का जल सिर्फ भारत को ही दिया जाना था। 1964 में एक बहु उद्देशीय योजना की कल्पना करने वाली विस्तृत प्रोजैक्ट रिपोर्ट का प्रस्ताव रखा गया था और यह रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी गई। अक्तूबर 1970 में इस प्रोजैक्ट के निर्माण का कार्य शुरू करने का निर्णय लिया गया और अंत में अप्रैल 1982 में भारत सरकार की ओर से इस परियोजना की मंजूरी दे दी गई। पंजाब स्टेट पावर कार्पोरेशन लिमिटेड (पी.एस.पी.सी.एल.) के प्रमुख हाईडल अभियंता इंजी. अरनदीप सिंह के अनुसार इस परियोजना का नींव पत्थर 6 नवम्बर 1985 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की ओर से रखा गया था। रणजीत सागर डैम के निर्माण का कार्य दिसम्बर 1999 में पूरा हुआ और इस डैम से अगस्त 2000 से बिजली का उत्पादन शुरू हो गया।
रणजीत सागर डैम पावर प्रोजैक्ट के पहले यूनिट से बिजली का उत्पादन 12 अगस्त 2000 को, दूसरे यूनिट से 12 अक्तूबर 2000, तीसरे यूनिट से 20 अगस्त 2000 तथा प्रोजैक्ट के 4 नंबर यूनिट से 15 सितम्बर 2000 को बिजली का उत्पादन शुरू हो गया था। रणजीत सागर डैम पावर प्रोजैक्ट 4 मार्च 2001 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से देश को समर्पित किया गया। इस प्रोजैक्ट पर करीब 3800 करोड़ रुपए खर्च आया है। इसके बाद रणजीत सागर डैम के पूरे होने से प्रत्येक वर्ष माधोपुर हैडवक्र्स से नीचे पाकिस्तान को जाने वाला पानी लोगों की सेवा के लिए इस्तेमाल में लाया जा रहा है।
पी.एस.पी.सी.एल. के प्रमुख हाईडल अभियंता इंजी. अरनदीप सिंह के अनुसार 23 जुलाई 2023 को रणजीत सागर डैम हाईडल प्रोजैक्ट की ओर से एक दिन में अपनी अभी तक की सबसे ज्यादा 157.89 लाख यूनिट बिजली उत्पादन करके एक और अपना रिकार्ड तोड़ा। रणजीत सागर डैम ने पिछले वर्ष 23 अगस्त 2022 को बनाए गए 151.49 लाख यूनिट के अपने पुराने रिकार्ड को पार किया है। इस प्रोजैक्ट से बिजली की पैदावार शुरू होने से लेकर 3 अगस्त 2023 तक 355390 लाख यूनिट बिजली की पैदावार की गई है।
पंजाब, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर की नीम पहाडिय़ों में निर्मित 600 मैगावाट बहुमूल्य परियोजना रणजीत सागर डैम प्रोजैक्ट के इर्द-गिर्द का खूबसूरत परिदृश्य पर्यटन को कई मौके प्रदान करता है। रावी दरिया में फैली रणजीत सागर झील के विशाल और शांत पानी और इसके पीछे दिखाई देने वाली हिमालय की बर्फ से ढंकी पहाडिय़ां एक मनोरम दृश्य पेश करती हैं।-मनमोहन सिंह (उपसचिव लोकसंपर्क, पी.एस.पी.सी.एल.)