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पंजाब की पहली कृषि नीति हो सकती है महत्वपूर्ण

Edited By ,Updated: 20 Sep, 2024 05:27 AM

punjab s first agriculture policy can be important

देश को खाद्यान्न संकट से बचाने वाला हरित क्रांति का सिरमौर पंजाब आज अपनी खेती-किसानी बचाने के लिए जूझ रहा है। हरित क्रांति की सहायक नीतियां महत्व खो चुकी हैं ऐसे में पंजाब सरकार की पहली प्रस्तावित कृषि नीति किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक...

देश को खाद्यान्न संकट से बचाने वाला हरित क्रांति का सिरमौर पंजाब आज अपनी खेती-किसानी बचाने के लिए जूझ रहा है। हरित क्रांति की सहायक नीतियां महत्व खो चुकी हैं ऐसे में पंजाब सरकार की पहली प्रस्तावित कृषि नीति किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है। हालांकि पिछली सरकारों द्वारा भी 2013 व 2018 में पंजाब की कृषि नीति के 2 मसौदों को तैयार किया गया था लेकिन मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में उन्हें कभी लागू नहीं किया जा सका।

पंजाब स्टेट फार्मर एंड फार्म वर्कर्स कमीशन ने 2018 के कृषि नीति मसौदे में 10 एकड़ से अधिक भूमि वाले किसानों व आयकरदाताओं को खेती सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली पर रोक की सिफारिश की थी। कृषि अर्थशास्त्री विशेषज्ञों के एक समूह ने भी यह खुलासा किया था कि मुफ्त बिजली से बड़े किसानों को ही फायदा हुआ है। आने वाली कृषि नीति में मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति व तर्कसंगत उपायों के साथ छोटे किसानों व ठेके पर खेती करने वाले किसानों के लिए बिजली सबसिडी, इंसैंटिव व कृषि संबंधी अन्य सेवाओं को अधिक प्रभावशाली बनाने की जरूरत है ताकि पंजाब की खेती को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सके। 

बिजली सबसिडी में सुधार : मुफ्त बिजली, खाद, बीज व कीटनाशक पर सबसिडी और यहां तक कि कर्ज माफी भी छोटे किसानों (कुल किसानों का 87 प्रतिशत) के लिए खेती को टिकाऊ रूप से लाभदायक नहीं बना सकी। सब्सिडी की त्रासदी यह है कि इसका दुरूपयोग हो रहा है। उदाहरण के लिए पंजाब में किसानों को मुफ्त बिजली पर सरकारी सबसिडी बिल सालाना लगभग 10,000 करोड़ रुपए बैठता है जिसमें पंजाब राज्य बिजली निगम बिजली चोरी भी शामिल करता है, क्योंकि 14.50 लाख ट्यूबवैलों में बिजली खपत जांचने के लिए मीटरिंग सिस्टम नहीं है इसलिए सिंचाई के लिए बिजली की सटीक खपत का पता लगाने के लिए बिजली निगम के पास सटीक आंकड़े भी नहीं हैं। 

घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट मुफ्त बिजली की स्कीम से सरकार ने वर्तमान व पूर्व सांसदों एवं विधायकों, मेयर, सरकारी कर्मचारियों (चौथी श्रेणी छोड़कर), पैंशनभोगियों (10,000 रुपए से अधिक) और आयकरदाताओं को बाहर रखा है इसी तर्ज पर कृषि बिजली सबसिडी में सुधार की जरूरत है। 2018 में कृषि अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा तब की कांग्रेस सरकार को सौंपी गई एक रिपोर्ट मुताबिक पंजाब के किसानों के लिए शुरू की गई कृषि बिजली सबसिडी का एक बड़ा हिस्सा बड़े व मझौले किसानों को मिल रहा है। इसमें 56 प्रतिशत कृषि बिजली सबसिडी का लाभ 3.62 लाख बड़े (25 एकड़ से अधिक जमीन)व मझौले (10 एकड़ से अधिक) किसान उठाते हैं जबकि 7.29 लाख छोटे व सीमांत किसान (10 एकड़ तक)44 प्रतिशत मुफ्त बिजली का लाभ पाते हैं। 

पंजाब सरकार द्वारा खेती के लिए 1997-98 में शुरू की गई मुफ्त बिजली पर सबसिडी की शुरूआत में सालाना 693 करोड़ रुपए का बोझ बीते 25 वर्ष में 1445 प्रतिशत बढ़कर 10,000 करोड़ रुपए सालाना हो गया है। भूजल स्तर में 500 से 700 फुट तक की गिरावट भविष्य की खेती के लिए गंभीर खतरा है। इस खतरे से निपटने के लिए किसी एक बड़े किसान को कई बिजली कनैक्शनों की बजाय केवल एक कनैक्शन दिया जाए। इसके अलावा हरेक खेत को नहरी पानी से जोडऩे की जरूरत है। नीति निर्माताओं को किसान की सही परिभाषा भी स्पष्ट करनी चाहिए। खेत में बुआई करने वाला ही वास्तविक किसान है या कोई एन.आर.आई, या बड़ा जमींदार ही किसान होता है जो खुद खेती न करके दूसरों को खेती के लिए जमीन लीज पर देता है और सरकारी सबसिडी का लाभ उठाता है, जबकि लीज पर ली जमीन में खेती करने वाला एक छोटा किसान सबसिडी से वंचित रहता है। इसके लिए लैंड लीज कानून में सुधार की दरकार है। 

एक्सपोर्ट के लिए तालमेल : सरकारी एजैंसियों द्वारा गेहूं व धान की एम.एस.पी पर खरीद के कारण पंजाब में खेती का ‘डायवर्सिफिकेशन’ सिरे नहीं चढ़ सका। करीब 85 प्रतिशत रकबे में इन दो फसलों की बुआई घटा कर किसानों को अन्य नकदी फसलों की ओर बढऩा चाहिए। ‘आपूर्ति-संचालित’ से ‘मांग-संचालित’ कृषि मॉडल विकसित करने की पंजाब में अपार क्षमता है। दुनिया के बाजार में डेयरी, पोल्ट्री, मछली, फल-सब्जियां और अन्य उच्च मूल्य वाली फसलों की मांग बढ़ रही है। नीतिगत सुधारों की मदद से पंजाब देश के भोजन कटोरे से आगे ‘एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट हब’ बन सकता है। 

इन्नोवेशन अपनाया जाए : बिजली,पानी जैसे संसाधनों का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए पंजाब के किसानों को कृषि-तकनीक क्रांति का लाभ उठाना चाहिए। ‘मोर क्रॉप,पर ड्रॉप’ यानी हर बूंद पानी से अधिकतम फसल एक नया मंत्र है। पानी,मिट्टी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की सही संभाल व जलवायु-स्मार्ट टैक्नोलॉजी जैसे जीरो-टिलेज, ड्रिप सिंचाई और सूखे, बाढ़, गर्मी, ठंड और कीट प्रतिरोधी फसलों की किस्में अपनाने की जरूरत है। 

आगे की राह : छोटे किसानों के लिए खेती को फायदेमंद बनाने के लिए कृषि क्षेत्र में सुधारों की तत्काल जरूरत है। मिट्टी की उर्वरता में गिरावट, जल स्तर व जलवायु में बदलाव जैसी चुनौतियों के समाधान के लिए भी ठोस कदम उठाए जाने चाहिएं। खेती को लाभदायक बनाने के लिए किसानों की युवा पीढ़ी बड़ी उम्मीद के साथ सरकार की ओर देख रही है। इसलिए पंजाब की पहली एग्रीकल्चर पॉलिसी को अंतिम रूप देने से पहले इसमें किसानों के सुझावों को शामिल करना महत्वपूर्ण है। (लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एंव प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं)-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)
 

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