असभ्य नेताओं के बिगड़े बोलों पर लगे लगाम

Edited By ,Updated: 10 Jan, 2025 05:32 AM

put a check on the foul language of uncivilized leaders

चुनावी सभा हो या संसद सदन जब भी नेताओं के बोल बिगड़ते हैं तो सुर्खियां बनते देर नहीं लगती। परंतु सोचने वाली बात यह है कि जहां एक ओर हमारे देश में राजनेताओं की एक जमात ऐसी थी जो नैतिकता का पालन करती थी, वहीं दूसरी ओर बीते कुछ वर्षों से राजनेताओं के...

चुनावी सभा हो या संसद सदन जब भी नेताओं के बोल बिगड़ते हैं तो सुर्खियां बनते देर नहीं लगती। परंतु सोचने वाली बात यह है कि जहां एक ओर हमारे देश में राजनेताओं की एक जमात ऐसी थी जो नैतिकता का पालन करती थी, वहीं दूसरी ओर बीते कुछ वर्षों से राजनेताओं के बयानों में आपको अभद्रता के कई उदाहरण मिलेंगे। दल चाहे कोई भी हो नेताओं की जुबान फिसलते देर नहीं लगती। फिर वह चाहे किसी पुरुष नेता का महिला के संदर्भ में दिया गया बयान हो, किस धर्म या जाति विशेष के लोगों के खिलाफ दिया गया बयान हो या किसी महिला नेता का किसी आम आदमी को धमकाने वाला बयान हो। नेता अपनी कुर्सी की गर्मी और अहंकार के चलते सभी हदें पार कर देते हैं। 

बीते कुछ दिनों में अलग-अलग दलों के नेताओं द्वारा जिस तरह की बयानबाजी देखने को मिली है उससे यह बात तो साफ है कि नेता सुर्खियों में बने रहने के लिए किसी भी स्तर पर जा सकते हैं। ऐसे में देखना यह है कि राजनीतिक दलों का शीर्ष नेतृत्व ऐसे बेलगाम नेताओं के खिलाफ क्या कार्रवाई करता है। यदि कोई भी दल इस बात की दुहाई दे कि वे महिला सम्मान के प्रति कटिबद्ध है और वहीं उसी के दल के नेता किसी जनसभा में किसी सड़क की तुलना विपक्षी दल की किसी महिला नेता के ‘गालों’ से करता है तो यह बात न सिर्फ निदंनीय होनी चाहिए बल्कि ऐसे नेता को उसके शीर्ष नेतृत्व से कड़ी फटकार और सजा भी मिलनी चाहिए जिससे कि अन्य नेताओं को सबक मिले। परंतु क्या ऐसा हुआ या ऐसा होता है? यदि इसका उत्तर ‘नहीं’ है तो यह बात स्पष्ट है कि ऐसे अनैतिक नेताओं को उनके शीर्ष नेतृत्व की पूरी हमदर्दी और आशीर्वाद प्राप्त है। 

पिछले दिनों में जहां एक दल के नेता ने एक महिला नेता और एक महिला मुख्यमंत्री के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया वहीं एक अन्य दल के नेता ने एक सभा में अपने क्षेत्र के वोटरों को ही दोषी ठहराया। इतना ही नहीं उनकी तुलना ‘वैश्या’ से भी कर डाली। उसी राज्य में एक अन्य दल के वरिष्ठ नेता ने भी अपने वोटरों को इस तरह धमकाया कि यह बयान भी सुर्खियों में छा गया। इस वरिष्ठ नेता ने तो यहां तक कह डाला कि सिर्फ इसलिए कि आपने वोट दिया इसका मतलब यह नहीं है कि आप मेरे मालिक हैं।

क्या आपने मुझे अपना नौकर बना लिया है? यह बात तो जग-जाहिर है कि चुनावी दिनों में हर नेता अपने वोटरों के आगे-पीछे घूमते हैं। उन्हें रिझाने के लिए क्या-क्या नहीं करते। परंतु जैसे ही वे सत्ता में आते हैं तो अपना असली रंग दिखाने में पीछे नहीं हटते। ऐसे में कबीर दास जी का यह दोहा याद आता है, ‘ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।’ जो हमें बचपन से ही सिखाता आया है कि चाहे कुछ भी हो हमें ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को आनंदित करे। जहां मीठे वचन सुनने वालों को सुख देते हैं, वहीं हमारे मन को भी आनंदित करते हैं। परंतु क्या हमारे द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि इसका अनुसरण कर रहे हैं? या सत्ता के अहंकार में आपा खो रहे हैं।एक समय था जब नेता अपने क्षेत्र की जनता को सिर-आंखों पर बिठा कर रखते थे। उनकी हर छोटी-बड़ी समस्या का हल निकालने के लिए हर कदम उठाते थे। अपने क्षेत्र के वोटर के खुशी और गम में भी परिवार की तरह ही शामिल हुआ करते थे। परंतु आजकल कुछ नेताओं को छोड़ कर ऐसे नेता आपको ढूंढे नहीं मिलेंगे। 

पुरानी पीढ़ी के नेता जिस सादगी से चुनाव के पहले रहते थे, चुनावों में जीतने के बाद भी वे उसी सादगी से ही नजर आते थे। परंतु आजकल के नेता चुनावों में जितनी भी सादगी दिखाएं, चाहे चुनाव जीतने के बाद सादगी से रहने के जितने भी वादे क्यों न करें, चुनाव जीतते ही अपने किए वादों से मुकरने में क्षण भर भी नहीं लगाते। वे जनता को अपनी मुट्ठी में रखने का झूठा एहसास बनाए साथ रहते हैं। भारत जैसे देश के लिए कहा जाता है कि ‘चार कोस पर बदले पानी आठ कोस पर वाणी’ यानी हमारे देश में विविधताओं का होना प्राचीन युगों से चला आ रहा है। भारत में अनेक धर्मों, जातियों, विचारों, संस्कृतियों   और मान्यताओं से संबंधित विभिन्नताएं हैं। किन्तु उनके मेल से एक खूबसूरत देश का जन्म हुआ है, जिसे हम भारत कहते हैं। भारत की ये विविधताएं एकता में बदल गई हैं, जिसने इस देश को विश्व का एक सुन्दर और सबल राष्ट्र बना दिया है। हमारे द्वारा चुने गए नेता, चाहे किसी भी दल के क्यों न हों, चुनाव जीतते ही यदि अपनी असभ्यता का परिचय देने लग जाएं और उनके दल द्वारा उन्हें किसी भी तरह दंड न दिया जाए तो अगली बार जब भी ऐसे नेता जनता के सामने याचक बन कर आएं तो वोटरों द्वारा ऐसे नेताओं का बहिष्कार कर उन्हें आईना जरूर दिखाया जाए।-रजनीश कपूर 
 

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