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परीक्षाओं की स्पष्टता पर सवाल

Edited By ,Updated: 12 Jan, 2025 05:53 AM

question on clarity of exams

बिहार प्रशासनिक सेवा आयोग यानी बीपीएससी की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा शनिवार 4 जनवरी को दोबारा कराई गई। इससे पहले बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा 13 दिसम्बर को यह परीक्षा कराई गई थी। उस समय पटना के बापू परीक्षा केन्द्र पर इस परीक्षा में हंगामा हुआ...

बिहार प्रशासनिक सेवा आयोग यानी बीपीएससी की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा शनिवार 4 जनवरी को दोबारा कराई गई। इससे पहले बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा 13 दिसम्बर को यह परीक्षा कराई गई थी। उस समय पटना के बापू परीक्षा केन्द्र पर इस परीक्षा में हंगामा हुआ था। इस परीक्षा के कई वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुए थे। छात्रों ने आरोप लगाया था कि इस परीक्षा में गड़बड़ी हुई है। 16 दिसम्बर को इस मुद्दे पर बी.पी.एस.सी. ने एक प्रैस वार्ता आयोजित की। इस प्रैस वार्ता में बी.पी.एस.सी. के अध्यक्ष परमार रवि मनुभाई ने यह कहा था कि आयोग की तरफ से  कोई लापरवाही नहीं हुई है। उन्होंने कहा था कि बिहार में 912 केन्द्रों पर यह परीक्षा आयोजित की गई थी। इनमें से बापू परीक्षा केन्द्र में हुई परीक्षा को रद्द किया गया। 

छात्र मांग कर रहे थे कि सभी परीक्षा केन्द्रों पर यह परीक्षा दोबारा हो। लेकिन सरकार और बिहार प्रशासनिक सेवा आयोग ने छात्रों की मांग न मानते हुए शनिवार 4 जनवरी को सिर्फ पटना के बापू परीक्षा केन्द्र के छात्रों के लिए यह परीक्षा दोबारा आयोजित कराई। पटना के 22 केन्द्रों पर इस परीक्षा का आयोजन कराया गया। पटना में अभी भी छात्र इस मुद्दे पर आंदोलन कर रहे हैं।  बी.पी.एस.सी. की परीक्षाओं में पहले भी कई बार गड़बड़ी की शिकायतें मिली हैं। पिछले साल शिक्षक भर्ती परीक्षा को पेपर लीक होने के कारण रद्द करना पड़ा था। बिहार में परीक्षाओं में पेपर लीक होने की शिकायतें पहले भी मिलती रही हैं। इससे पहले अमीन भर्ती, सामुदायिक स्वास्थ्य पदाधिकारी, सिपाही भर्ती जैसी कई परीक्षाओं के पेपर लीक होने की घटनाएं प्रकाश में आई हैं। पिछले कुछ वर्षों में प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं में धांधली की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड में अनेक प्रतियोगी परीक्षाएं इसलिए रद्द करनी पड़ीं क्योंकि उनके पेपर पहले ही लीक हो चुके थे। कुछ समय पहले नीट की परीक्षा में कथित तौर पर धांधली का मामला सामने आया था। 

मैडीकल कॉलेजों में धांधली की शिकायतें पहले से ही मिलती रही हैं। इन शिकायतों को दूर करने के लिए ही नैशनल टैस्टिंग एजैंसी यानी एन.टी.ए. के माध्यम से प्रवेश परीक्षा कराने का निर्णय लिया गया था। लेकिन एन.टी.ए. भी सवालों के घेरे में आ गई थी। नीट परीक्षा में धांधली के बाद यू.जी.सी. नैट परीक्षा में भी धांधली की खबर प्रकाश में आई थी। इस दौर में परीक्षाओं में धांधली आम हो गई है। एक तरफ भारत में नए-नए विश्वविद्यालय बन रहे हैं तो दूसरी तरफ लगातार विभिन्न परीक्षाओं के पेपर लीक हो रहे हैं। बड़े-बड़े दावे पेश करने वाली सरकारें यदि परीक्षाओं के पेपर भी ठीक तरह से न करवा पाएं तो ऐसे विकास का क्या लाभ है।

जब परीक्षाएं भी ठीक तरह से न हो पाएं तो सरकार द्वारा लगातार पेश की जाने वाली उपलब्धियों का क्या औचित्य है? एक अनुमान के अनुसार पिछले 7 वर्षों में परीक्षाओं में धांधली और पेपर लीक होने के कारण डेढ़ करोड़ से ज्यादा छात्र प्रभावित हुए हैं। विकास-विकास चिल्लाने वाली सरकारों को यह समझना चाहिए कि इस दौर में जिस तरह से परीक्षाओं के पेपर लीक हो रहे हैं, उससे हमारा देश कई साल पीछे चला गया है। सवाल यह है कि लगातार विकास होने और संसाधन बढऩे का छात्रों को क्या लाभ मिल रहा है? हालांकि पटना के बापू परीक्षा केन्द्र के छात्रों के लिए बी.पी.एस.सी. की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा शनिवार 4 जनवरी को दोबारा कराई गई लेकिन छात्र इस पूरी परीक्षा को रद्द कर दोबारा कराए जाने की मांग को लेकर अभी भी आंदोलन कर रहे हैं। 

छात्रों की मांग का समर्थन कर रहे और इस मुद्दे को लेकर अनशन पर बैठे जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने कहा है कि जब तक मुख्यमंत्री परीक्षार्थियों से संवाद नहीं करते, वह अनशन नहीं तोड़ेंगे। प्रशांत किशोर इस मुद्दे को लेकर गुरुवार से अनशन पर बैठे हुए हैं। प्रशांत किशोर का कहना है कि सरकार को समझना होगा कि जनता की ताकत से बड़ी कोई ताकत नहीं होती। जनता को धर्म और जाति के दायरे से बाहर निकलकर अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना होगा। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस मुद्दे पर बिहार के मुख्यमंत्री चुप भी हैं। अपने स्वार्थ के लिए तो हमारे राजनेता कुछ भी बोलने लगते हैं लेकिन जनसरोकार से जुड़े मुददों पर वे चुप्पी साध लेते हैं। 

इससे दुखद क्या होता है कि जब ऐसे मुद्दों पर छात्र सड़कों पर आ जाते हैं तो छात्रों पर ही विभिन्न तरह के आरोप लगा दिए जाते हैं। छात्रों पर ही राजनीति करने का आरोप भी लगा दिया जाता है। क्या सैंकड़ों छात्र सर्दी के मौसम में राजनीति करने सड़कों पर उतरेंगे? जब छात्र दुखी होते हैं तो उनके पास सड़कों पर उतरने के सिवाय क्या चारा रह जाता है? हो सकता है कि कुछ राजनेता अपनी राजनीति चमकाने के उद्देश्य से छात्रों के प्रदर्शन में शामिल हो जाते हों लेकिन यदि सरकार ऐसे मुद्दों पर ईमानदार है तो वह जल्दी से जल्दी इन मुद्दों को हल कर राजनेताओं को राजनीति करने से रोक सकती है। असली सवाल यह है कि छात्रों की समस्या का हल कैसे हो। क्या एक परीक्षा केन्द्र के छात्रों के लिए दोबारा परीक्षा करा देना ही इस समस्या का हल है? जिन छात्रों को इस परीक्षा की शुचिता पर संदेह है, उनका क्या होगा? हर सरकार छात्रों के बेहतर भविष्य की कामना करती है लेकिन क्या यह कामना सिर्फ राजनीति करने तक ही सीमित है? कोई भी सरकार राजनीति से अलग हटकर सच्चे अर्थों में क्यों नहीं सोचती है? इस दौर में राजनीति की शुचिता के साथ ही परीक्षा की शुचिता भी बरकरार रहनी चाहिए, तभी हमारा देश वास्तविक रूप से तरक्की कर पाएगा।-रोहित कौशिक 
 

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