सेना में महिलाओं की भागीदारी पर उठते सवाल

Edited By ,Updated: 08 Dec, 2024 05:59 AM

questions arise on participation of women in army

पिछले कुछ दिनों से सैन्य कल्याण और महिला सैनिकों से संबंधित 2 बड़ी खबरें पढऩे को मिलीं। पहली 26 नवम्बर को एक जनरल आफिसर कमाडिंग इन चीफ (जी.ओ.सी. इन सी.) की ओर से पंजाब के मुख्यमंत्री को प्रकाशित की गई चिट्ठी थी।

पिछले कुछ दिनों से सैन्य कल्याण और महिला सैनिकों से संबंधित 2 बड़ी खबरें पढऩे को मिलीं। पहली 26 नवम्बर को एक जनरल आफिसर कमाडिंग इन चीफ (जी.ओ.सी. इन सी.) की ओर से पंजाब के मुख्यमंत्री को प्रकाशित की गई चिट्ठी थी। दूसरी खबर 1 दिसम्बर को एक कोर कमांडर की ओर से अपने जी.ओ.सी. इन सी. को लिखी चिट्ठी से संबंधित थी जो चर्चा का विषय बनी। सेना के आरंभिक प्रशिक्षण के समय हमें यह दृढ़ निश्चय करवाया जाता है कि हथियार को खोलते या फिर उसे जोड़ते समय जो हिस्सा बाद में खुलता है वह पहले जुड़ता है। दोनों पहलू सेना के साथ संबंधित होने के कारण मेरी कलम महिलाओं की सेना में भागीदारी की ओर चल पड़ी। हो सकता है कि पहले विषय को कुछ दिनों बाद कलमबद्ध किया जाए। 

लैफ्टिनैंट जनरल राजीव पुरी जी.ओ.सी. पानागढ़ कोर कमांडर ने अपनी पूर्वी कमान के जी.ओ.सी. इन सी. लै. जनरल राम चंद्र तिवाड़ी को महिला कमांङ्क्षडग अधिकारियों (सी.ओ.) के बारे में ङ्क्षचता जाहिर करते हुए एक डी.ओ. लैटर लिखा। कोर कमांडर ने अपनी कमांड के अंतर्गत 8 कमांडिंग अधिकारियों (महिलाओं) की कारगुजारी के बारे में की गई समीक्षाओं के आधार पर जो तथ्य मुख्य रूप से सामने आए उनका जिक्र करते हुए कुछ इस तरह लिखा गया, ‘‘महिला सी.ओज. के कमांड करने वाली योग्यता, ड्रिलों में परस्पर हुनर और सम्पर्क की कमी।’’

यहां तक कि यूनिट हित में निर्णय  लेने के समय वरिष्ठ पुरुष अधिकारियों को भी भरोसे में न लेना तानाशाह वाला रवैया दर्शाता है। बढ़ा-चढ़ा कर शीर्ष अधिकारियों को शिकायत करने वाली प्रवृत्ति अनाधिकृत तौर पर पद की धौंस और उसके इस्तेमाल जैसे कुछ अन्य तथ्य भी सामने आए हैं। सवाल पैदा यह होता है कि इस किस्म की स्थिति क्यों पैदा हुई और इसका समाधान क्या है?

भूमिका : भारत सरकार ने वर्ष 1992 में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए महिलाओं को स्पैशल स्कीम के अंतर्गत लड़ाकू सेना को सहायता प्रदान करने वाली शाखाएं जैसे कि सप्लाई, आर्डीनैंस, शिक्षा, सिग्रल, न्याय प्रणाली, इंजीनियर, इंटैलीजैंस जैसे विभागों में शार्ट सॢवस कमिशन्ड अधिकारियों के तौर पर भर्ती करनी शुरू कर दी। वर्ष 1993 के प्रथम बैच में 25 महिला अधिकारियों ने कमिशन प्राप्त किया। पिछले कुछ समय से सेना में महिलाओं की भूमिका को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है। विशेष तौर पर जब वर्ष 2003 में कुछ महिला अधिकारी यह मामला हाईकोर्ट में ले गईं और उन्होंने यह वकालत की कि उन्हें पुरुष सैन्य अधिकारी, नर्सों तथा मैडीकल अधिकारियों की तरह स्थायी कमिशन दिया जाए और सेना में भेदभाव बंद हो। 

हाईकोर्ट ने उनकी दलील मंजूर कर ली। इस फैसले के उपरांत सेना ने वर्ष 2012 में सुप्रीमकोर्ट में एक हल्फनामा दायर कर यह कहा कि सैद्धांतिक तौर पर सेना में महिलाओं की भागीदारी वाली बात अच्छी तो लगती है मगर वास्तविक रूप में यह अनुभव भारतीय सेना में सफल नहीं हुआ और हमारा समाज विशेष तौर पर युद्ध के दौरान महिलाओं को लड़ाकू रूप में प्रवान करने के लिए तैयार नहीं। खैर, सुप्रीमकोर्ट ने मार्च 2020 को भेदभाव खत्म करने के नजरिए से हथियारबंद सेनाओं में महिलाओं को स्थायी कमिशन उपलब्ध करवाने के साथ-साथ कमांड संभालने का रास्ता साफ करते हुए सरकार को आदेश दिया कि वह इस निर्णय को लागू करे। 

जानकारी के अनुसार इस समय सेना में 1740, वायु सेना में 1600, नौसेना में 530 और आर्मी मैडीकल कोर (ए.एम.सी.) में 6430 के करीब महिला अधिकारी हैं। वर्ष 2023 में 108 महिला शार्ट सॢवस कमिशंड अधिकारियों को लैफ्टिनैंट कर्नल तक की पदोन्नति दे दी गई जिनमें से कुछ को यूनिट कमांड करने के लिए चुना गया। अब जबकि जनरल राजीव पुरी ने अपनी कमांड के अंतर्गत 8 महिला सी.ओ. के बारे में फीड बैक अपने शीर्ष अधिकारियों को दिया फिर मीडिया को और क्या चाहिए था? मीडिया को एक सैन्य मुद्दा भी मिल गया। वास्तव में एक राष्ट्रीय स्तर वाला टी.वी. चैनल तो 26 नवम्बर वाली मुख्यमंत्री को दी चिट्ठी के बारे में मेरा इंटरव्यू भी ले गया। 

बाज वाली नजर : महिलाओं को सश सेनाओं में स्थायी कमिशन और पदोन्नति प्राप्त करने के उपरांत यूनिट कमांड के साथ युद्ध के मैदान में भी उतारने की तैयारी है जोकि एक संवेदनशील मुद्दा है। अब तो महिलाओं के लिए आर्मी एविएशन, एयर डिफैंस और वर्तमान में तोपखाना जोकि लड़ाकू सेना का हिस्सा है, उसने भी महिलाओं के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। सेना में एक अधिकारी कर्नल रैंक तक पदोन्नति का हकदार तो हो सकता है मगर पल्टन की कमांड करने वाले मापदंड अलग होते हैं।

पुरुष अधिकारी को कमांड सौंपने से पहले उसकी सख्त ट्रेनिंग, देखभाल, विभिन्न पदों पर तैनाती, पल्टन/कंपनी की कमांड के समय उपलब्धियां, सैंकड़ों की गिनती में अधिकारियों और जवानों के अंदर तालमेल कायम करके युद्ध के मैदान में नेतृत्व करने की क्षमता आदि होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि अब जबकि सैनिक स्कूल और एन.डी.ए. में एंट्री के लिए लड़कियों का रास्ता सही हो गया है तो यह बेहतर होगा कि अगर पुरुषों की तरह बिना किसी भेदभाव से उनके लिए संयुक्त मापदंड तय करके पुरुषों की तरह ट्रेनिंग और योग्यता के आधार के अनुसार कमांड के लिए चयन किया जाए। -ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)

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