Edited By ,Updated: 22 Jun, 2024 06:43 AM
अक्सर कहते-सुनते और देखते-पढ़ते यह बात सामने आती है कि मौसम के तेवर बदल रहे हैं। भयंकर गर्मी, भयानक सर्दी, विनाशकारी बाढ़, बेमौसम बरसात और बर्फबारी तथा जमीन खिसकने जैसी घटनाएं अपने देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में चिंता और बहस का विषय बन रही...
अक्सर कहते-सुनते और देखते-पढ़ते यह बात सामने आती है कि मौसम के तेवर बदल रहे हैं। भयंकर गर्मी, भयानक सर्दी, विनाशकारी बाढ़, बेमौसम बरसात और बर्फबारी तथा जमीन खिसकने जैसी घटनाएं अपने देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में चिंता और बहस का विषय बन रही हैं। इस सब के मूल में केवल एक बात प्रमुख है और वह है बड़े पैमाने पर और अंधाधुंध तरीके से वन विनाश होना और वन संरक्षण का हवा-हवाई हो जाना। ग्लोबल वाॄमग का कारण यही है।
वर्षा वन दिवस : आज हम विश्व वर्षा वन दिवस मना रहे हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों को यह अजीब लगे लेकिन जब इसे मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई थी, तब तक संसार के आधे से अधिक वन साम्राज्य पर अपना मतलब साधने के लिए तैयार लोगों का कब्जा हो चुका था। यह सौ से अधिक वर्ष पहले आरंभ हुआ और अब इस सदी में कुछेक साल पहले अचानक ध्यान आया कि मानव जाति उस प्रकृति का कितना नाश कर चुकी है जो हमारा संरक्षण करती है।
अमरीका, यूरोप, एशियाई देश इसकी चपेट में सबसे अधिक आए हैं जहां सड़कों, भव्य इमारतों के निर्माण, विशाल क्षेत्र में खेतीबाड़ी और बड़े-बड़े उद्योग लगाने के लिए सबसे आसान तरीका अपनाया गया। यह सोच थी कि जहां भी रुकावट हो, उसे जड़ से समाप्त कर दो। अवरोध करने वाले और कोई नहीं, हमारे जंगल थे, वनीय उपज थी और उनमें रहने वाले वनवासी या आदिवासी थे। विरोध के स्वर उठे, बहुत हाहाकार हुआ, आंदोलन हुए, अत्याचार सहे लेकिन सब व्यर्थ क्योंकि अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने वाले को कौन रोक सकता है? आज सभी देशों से जलवायु परिवर्तन के संदेश आ रहे हैं। भारत इससे अछूता नहीं है और हमारी पूरी आबादी इसे महसूस कर रही है।
सामान्य जंगल तो सबने जीवन में कभी न कभी देखे होंगे। आजकल जंगल सफारी का चलन है और वहां पाए जाने वाले पशु-पक्षियों को निकट से देखने का मोह बढ़ रहा है। मैदानी इलाकों से निकलकर वन प्रदेशों में घूमना-फिरना, झरनों का सौंदर्य निहारना और नदियों तथा तालाबों में जलीय जीवों की अठखेलियां देखना कभी न भूल सकने वाला अनुभव है। बहुत से संरक्षित यानी जिन जीवों का शिकार नहीं किया जा सकता, उन्हें हाथ से छूना रोमांचक हो जाता है। उनकी सिहरन और हाथ से फिसलने का कौतुक बहुत समय तक महसूस होता रहता है। इन जंगलों में आधुनिक सुविधाओं, इंटरनैट और रहने तथा मौज-मस्ती करने के साधनों का विस्तार हो रहा है। ईको टूरिज्म के नाम पर दूर-दराज की बस्तियों में आराम और खानपान के प्रबंध धन कमाने का जरिया बन चुके हैं।
चलिए एक वर्षा वन जैसे स्थान की सैर करते हैं। मेघालय में पवित्र गुफाएं या सैक्रेड ग्रोव के रूप में विशाल वनस्थली है। वहां की खासी जाति इसका संरक्षण करती है। बहुत पहले यहां के निवासियों ने इसका विकास शुरू किया। खेती की झूम प्रथा अर्थात जरूरत के अनुसार जंगल काटकर उस जगह को समतल बनाना और वहां खेती करना और जब जमीन उपजाऊ न रहे तो उसे छोड़कर अगली जगह के जंगल काटकर खेती करना। दोबारा उसी जगह खेती करने का चक्र 40-50 साल बाद आता था और तब तक वहां जंगल फिर से पनप जाते थे जिन्हें काटकर उपजाऊ जमीन मिल जाती थी और खेतीबाड़ी होती थी। जनसंख्या के दबाव के कारण यह अवधि 2-4 वर्ष की रह गई जिसका परिणाम पूरे नार्थ ईस्ट में देखा जा सकता है।
प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाती है। जीवनदायिनी नदियां विनाश लीला करती हैं। अनेक सदियों पहले यहां के लोगों ने अनुमान लगा लिया होगा कि क्या होने वाला है, इसलिए वन संरक्षण के ऐसे उपाय किए कि वन सुरक्षित रहें। उन्होंने एक बहुत बड़े क्षेत्र का चुनाव किया जहां हर समय वर्षा होती रहती थी और इसे पवित्र गुफा का नाम दिया ताकि यहां से कोई एक पत्ता तक न ले जा सके। वर्षा वन की तीन परतें होती हैं। सबसे पहले घना प्रदेश जहां घुप अंधेरा रहता है। यहां जलवायु में उमस और गर्मी रहती है जिससे विभिन्न वनस्पतियां पनपती हैं। एक बहुत बड़ी कैनोपी बन जाती है। घास, पात और पेड़ों से लिपटी लताएं झुंडों में बढ़ती हैं। प्राकृतिक जल स्रोत उपलब्ध हैं और कलकल ध्वनि से संगीत का आनंद आता है।
पूजा स्थल भी हैं जहां स्थानीय देवता की पूजा होती है। लोग ऊपर से झांक रही सूर्य की किरणों के प्रकाश में विधि विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। आसपास जो फफूंद है उसे बनने में सैंकड़ों वर्ष लगे हैं। वनस्पति विज्ञान के शोधार्थी अध्ययन करते हैं। उल्लेखनीय है कि इन्हें एक झटके में नष्ट किया जा सकता है। कुदरत की मेहनत का पल भर में सर्वनाश हो सकता है।
उपयोगिता और वास्तविकता : वर्षा वन और इनमें बसे जीवों की उपयोगिता के बारे में इतना ही कहना काफी होगा कि विश्व की लगभग आधी औषधियां इन्हीं की बदौलत प्राप्त हुई हैं। यहां की हर्बल संपदा अनेक गंभीर रोगों के उपचार में काम आती है। दुर्भाग्य से इस कुदरती खजाने पर डाका पड़ रहा है। तस्करी के धंधे में लगे लोग चोरी कर रहे हैं और अमीर देशों को बेच रहे हैं। वर्षा वन की दूसरी परत एक विशाल छाते की तरह है और तीसरी 60 से 80 मीटर तक के ऊंचे वृक्ष हैं। पेड़ों का अद्भुत संसार दिखाते ये वर्षा वन अपने आप में अनमोल ही नहीं, पीढिय़ों की धरोहर हैं, आगामी पीढ़ी के रक्षक हैं। आज पेड़ काटकर और फिर उनके स्थान पर नए लगाने का नाटक बहुत हो गया। केवल इतना ही कर लें कि जंगलों की बहुत कम कटाई करते हुए सड़कें बनाएं, कह सकते हैं कि सिर्फ छंटाई करें तो भी वन विनाश पर रोक लग सकती है। विकास का कोई विरोध नहीं है।
आज अमरीका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसे महाद्वीप ऐसी जीवन शैली अपना रहे हैं जो अफ्रीका जैसी है जहां जंगलों को साथी मानकर उन्हें अपनाया जाता है, उनके अनुसार स्वयं को ढाला जाता है। प्रकृति को असंतुलित होने से रोकना है तो भविष्य की ऐसी भयावह कल्पना करनी होगी जिसमें चारों ओर मरुस्थल, बंजर भूमि, अधिक या कम वर्षा से बाढ़ और सूखाग्रस्त धरती और आसमान से बरसती आग तथा पृथ्वी पर जल प्लावन के दृश्य होंगे। यदि इसे सच में घटित होने से रोकना है तो आज ही कदम उठाने हैं वर्ना कौन जाने, कल क्या होगा?-पूरन चंद सरीन