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राजा वीरभद्र सिंह सही मायनों में जनता के नेता थे

Edited By ,Updated: 09 Jul, 2021 06:42 AM

raja virbhadra singh was the leader of the people in the true sense

वीरभद्र सिंह के निधन से हमने सच में एक मार्गदर्शक, आईकॉन खो दिया। राजा साहिब न केवल राज्य के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनीतिज्ञ थे बल्कि अपने विनम्र खुश पर्वतीय राज्य के सच्चे प्रतिनिधि

वीरभद्र सिंह के निधन से हमने सच में एक मार्गदर्शक, आईकॉन खो दिया। राजा साहिब न केवल राज्य के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनीतिज्ञ थे बल्कि अपने विनम्र खुश पर्वतीय राज्य के सच्चे प्रतिनिधि भी थे। उनका 6  बार मुख्यमंत्री बनने, 5 बार सांसद तथा 9 बार विधायक बनने का एक ऐसा रिकार्ड है जिसकी बराबरी नहीं की जा सकती और एक ऐसी राजनीतिक विरासत जो उनकी वास्तविक लोकप्रियता का केवल एक संकेत है। उनके जैसा नेता होना असंभव है और निश्चित तौर पर कोई भी उनके जैसा विनीत होगा। 

उनको राजनीति में कोई और नहीं बल्कि जवाहर लाल नेहरू लाए थे जिन्होंने वीरभद्र सिंह में आग, कुशाग्रता तथा कौशल देखा था जब वह दिल्ली के सेंट स्टीफन कालेज में महज एक छात्र थे। 25 वर्ष की आयु में शुरू हुई उनकी अटूट राजनीतिक यात्रा जीवन भर जारी रही। कई प्रभावशाली विजयों के बावजूद यह प्रिय व्यक्ति अपने अंतिम दिन तक एक लड़ाकू था। हि मत हार देना कभी भी एक विकल्प नहीं था। स्पष्ट तौर पर अपने मन की बात सीधे कह देना उनके प्यारे व्यक्तित्व का मात्र एक पहलू था। 

मेरे बचपन से ही, जब राजा साहिब मेरे दिवंगत पिता के एक सहयोगी थे, वह हमेशा ही सहायता करने तथा राहत देने वाले व्यक्ति थे। उनके इस लगाव तथा जुड़ाव ने मुझे एक विशेष एहसास करवाया कि मैं हिमाचल की एक बेटी हूं। गर्मजोशी से स्वागत करने वाले, वह हमेशा आपकी पसंद तथा नापसंद को ध्यान में रखते थे। उनके आवास  ‘होली लॉज’ में भोजन करना हमेशा मजेदार होता था तथा व्यक्ति वहां से हमेशा मुद्दों बारे नया दृष्टिकोण लेकर लौटता था। मैं जहां भी होती थी वह मात्र एक कॉल दूर होते थे। 

विशेष अवसर उनके आए बिना पूर्ण नहीं होते थे। उनके कामकाज के भारी-भरकम शैड्यूल तथा जि मेदारियों के बावजूद उनके काम करने का तरीका ऐसा था कि उनके आधी उम्र के अथवा महत्वपूर्ण लोग शरमा जाएं। वह ऐसे व्यक्ति थे जो देने में विश्वास करते थे। उनकी अपनी कभी कोई मांग नहीं थी। मुझे याद है कि कई बार वह अपनी कुर्सी किसी बुजुर्ग व्यक्ति अथवा गांव के किसी असल विनीत व्यक्ति को दे देते थे। उनमें कभी भी अहंकार की भावना नहीं थी। मृदुभाषी, वह हमेशा अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों की जीवन गुणवत्ता में सुधार करने के तरीके खोजते रहते थे। उनके लिए इसका मतलब पूरा हिमाचल था।  वह अपने प्रतिस्पॢधयों को माफ करने वाले और हमेशा खुले दिल वाले थे। 

उनका घर हमेशा एक ओपन हाऊस मोड में रहता था। वहां कोई घंटे, बंद होने के दिन नहीं थे तथा निश्चित तौर पर कभी भी गर्माहट की कमी नहीं थी। आज उन्हें खोकर मैंने एक पिता तुल्य व्यक्ति खो दिया है जिनकी याद हमेशा दिल में समाई रहेगी। मगर मेरे पास वह ऐसी यादें छोड़ गए हैं जिन्हें मैं हमेशा मन में संजो कर रखूंगी। वह हिमाचली भोजन से प्रेम करते थे और उनके पास वर्तमान तथा अतीत की कहानियां सुनाने का कौशल था। उनके हंसमुख स्वभाव, हंसी-मजाक की आदत तथा आंखों में खुशी ने परिवार के साथ सांझी की गई हमारी बहुत-सी शामों को यादगार तथा अनमोल बना दिया। 

ध्यान रखने तथा प्रेम के ये तत्व उनके व्यक्तित्व का एक हिस्सा थे। राजा शाही से होने के बावजूद वह वास्तव में लोगों के व्यक्ति थे और अपने लोगों के बीच होने से अधिक कुछ भी उन्हें खुश नहीं रखता था। वह करुणामय थे तथा हमेशा उन लोगों पर ध्यान देते थे जो जरूरतमंद, गरीब तथा दर-किनार किए गए होते थे। उनके जाने से आज सारा राज्य गम में डूबा हुआ है। एक गौरवपूर्ण लड़ाका, जो अपने तथा अपने लोगों के लिए आखिर तक लड़ता था। जननेता, जिसने राज्य में कड़े निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ा तथा अपनी सीट के साथ-साथ स्थानीय लोगों के दिलों को जीता। कितना सच है कि ‘यह राजा नहीं फकीर हैं, हिमाचल की तकदीर हैं’। प्रतिभा तथा उनके बच्चों के साथ मेरी गहरी संवेदनाएं।-देवी एम.चेरियन

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