Edited By ,Updated: 17 Oct, 2024 05:54 AM
खरगोश के साथ दौडऩा और शिकारी कुत्तों के साथ शिकार करना एक मुहावरा है जो पाकिस्तान के धार्मिकता के साथ निरंतर संबंध को सारांशित करता है। जैसा कि इसके कायदे-आजम मुहम्मद अली जिन्ना ने विडंबनापूर्ण ढंग से प्रतिपादित किया था कि आप किसी भी धर्म या जाति...
खरगोश के साथ दौडऩा और शिकारी कुत्तों के साथ शिकार करना एक मुहावरा है जो पाकिस्तान के धार्मिकता के साथ निरंतर संबंध को सारांशित करता है। जैसा कि इसके कायदे-आजम मुहम्मद अली जिन्ना ने विडंबनापूर्ण ढंग से प्रतिपादित किया था कि आप किसी भी धर्म या जाति या पंथ से संबंधित हो सकते हैं, इसका इस मूल सिद्धांत से कोई लेना-देना नहीं है कि हम सभी ‘पवित्र भूमि’ या पाकिस्तान में एक राज्य के नागरिक और समान नागरिक हैं, जो दुनिया का एकमात्र देश है जो धर्म के नाम पर बनाया गया है। चूंकि जिन्ना के शब्द धार्मिक उत्साह से भरे थे, इसलिए 11 अगस्त 1947 को संविधान सभा में दिए गए इस प्रसिद्ध भाषण की रिकॉॄडग सुविधाजनक रूप से ‘खो गई’। करकुल टोपी (जिसे ‘जिन्ना कैप’ के नाम से जाना जाता है) पहने एक उदास दिखने वाले जिन्ना की औपचारिक तस्वीर करंसी नोटों के अलावा सरकारी दफ्तरों पर दिखाई देती है। धर्मनिरपेक्ष होने की चाहत के अंतर्निहित विरोधाभास बिखर गए हैं, क्योंकि पाकिस्तान एक धार्मिक टिंडरबॉक्स है जो फटने की धमकी देता है।
इस्लामी राष्ट्रवाद पर आधारित दोषपूर्ण ‘दो-राष्ट्र सिद्धांत’ द्वारा छोड़े गए जिन्न को नियंत्रित करने से इन्कार कर दिया गया है, और अब यह नियंत्रण से बाहर हो गया है। पाकिस्तान की कमर तोडऩे वाली सामाजिक-आर्थिक परेशानियां धार्मिक उग्रवाद और आतंकवाद पर उसके दोहरे रुख से जुड़ी हुई हैं, क्योंकि वह अपने पड़ोसियों को भी इसे ‘निर्यात’ करना जारी रखना चाहता है, जबकि घर पर चुनिंदा रूप से इससे लड़ रहा है। यह एक कठिन प्रयास है जो बुरी तरह विफल रहा है, क्योंकि धार्मिक उग्रवाद पाकिस्तानी समाज को अंदर से खा रहा है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने याद दिलाया कि हमने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में भारी कीमत चुकाई है। 80 हजार बहादुर सैनिक और नागरिक शहीद हुए हैं। ए.पी.एस. स्कूल पर हमले की कड़वी यादें अभी भी ताजा हैं। हमारी अर्थव्यवस्था को 150 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। कोई ताॢकक रूप से यह मान सकता है कि इस तरह की परीक्षा और आग से खेलने (यानी धार्मिक उग्रवाद) के परिणामों के बाद, पाकिस्तानी राज्य ने सबक सीखा होगा।
इस्लामाबाद ने एक बार फिर भारत में जन्मे इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक के लिए लाल कालीन बिछाकर धार्मिकता के अपने पेटैंट लीवर को लचीला बनाने का विकल्प चुना, जो आतंकवाद के वित्तपोषण, घृणा फैलाने वाले भाषण, सांप्रदायिक विद्वेष को भड़काने आदि के आरोपों में भारत में वांछित एक भगौड़ा है। यह सुझाव देना कि जाकिर नाइक व्यक्तिगत रूप से हथियार नहीं रखता है (वह ऐसा निहित रूप से करता है),ऐसी बातें स्पष्ट रूप से सुझाव देती हंै कि यह उसकी शिक्षाओं का अंतॢनहित वर्चस्ववाद, संशोधनवाद और कट्टरवाद है जो असहिष्णुता, बहिष्कार और कट्टरता को जन्म देता है।
ऐसे विचारकों द्वारा भड़काए गए हिंसक आतंकवाद में फंसे राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह एक और आतंकवाद को बढ़ावा देने से बेहतर जानता हो। धार्मिक तनाव, उग्रवाद और असहिष्णुता को देखते हुए जाकिर नाइक का आधिकारिक स्वागत पाकिस्तान के गहरे रूप से खंडित और घायल समाज की कैसे मदद कर सकता है, यह समझ से परे है। अपने संकीर्ण विचारों के अनुरूप, उपदेशक ने अनाथ लड़कियों का समर्थन करने वाले एक एन.जी.ओ. के कार्यक्रम के दौरान मंच से उतरकर विवाद खड़ा कर दिया। उनका चौंकाने वाला स्पष्टीकरण यह था कि लड़कियां ‘न-महरम’ (अविवाहित महिलाएं जो खून की रिश्तेदार नहीं हैं) थीं। यह बात बेशर्मी से महिलाओं के प्रति घृणा का प्रदर्शन था।
उन्होंने अनाथों को ‘बेटियां’ कहने वाले उद्घोषक को भी फटकार लगाई और कहा, ‘‘आप उन्हें छू नहीं सकते या उन्हें अपनी बेटियां नहीं कह सकते।’’ ऐसे ‘राज्य अतिथियों’ के उपदेशों के बाद पाकिस्तानी महिलाओं के भविष्य के बारे में केवल कल्पना ही की जा सकती है। आखिरकार, यह एक ऐसा राष्ट्र है जो जाकिर नाइक का महिमामंडन करता है, लेकिन नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफैसर अब्दुस सलाम या मलाला यूसुफजई जैसे उपलब्धियां हासिल करने वालों का नहीं। शाहबाज शरीफ ने विवादास्पद उपदेशक के लिए अपनी व्यक्तिगत प्रशंसा व्यक्त की और कहा कि उन्हें उनके उपदेशों से व्यक्तिगत रूप से लाभ हुआ है। इतिहास गवाह है कि अपने कथित उदारवाद और यहां तक कि धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता के बावजूद, पाकिस्तान में सत्तारूढ़ तिकड़ी के सभी तत्व यानी शरीफ परिवार की पी.एम.एल.-एन., भुट्टो परिवार की पी.पी.पी. और पाकिस्तानी ‘प्रतिष्ठान’ (सेना) धार्मिक उग्रवाद के साथ संदिग्ध संबंध रखते हैं।
शरीफ परिवार की राजनीतिक शुरूआत जिया-उल-हक के मध्ययुगीन और धर्मतंत्रीय आवेगों से हुई है, जबकि जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग और धार्मिक दलों के साथ गठबंधन अच्छी तरह से प्रलेखित है। इसी पृष्ठभूमि में जाकिर नाइक का स्वागत इसकी अनूठी और अचूक कथा को आकार देने (या बनाए रखने) के रूप में देखा जाना चाहिए। जाकिर नाइक का महीने भर का कार्यक्रम बहिष्कारपूर्ण धार्मिक बयानबाजी से भरा होगा, जो एक ऐसे देश में धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए बाध्य है जो स्पष्ट रूप से धार्मिक चरमपंथ और उसके साथ आतंकवाद के साथ युद्ध में है। (लेखक लैफ्टिनैंट जनरल पी.वी.एस.एम., ए.वी.एस.एम. (सेवानिवृत्त) और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और पुड्डुचेरी के पूर्व लैफ्टिनैंट गवर्नर हैं)-भूपिंदर सिंह