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दीवाली पर राजौरी के शहीदों को भी याद कर लें

Edited By ,Updated: 31 Oct, 2021 04:29 AM

remember the martyrs of rajouri on diwali

रोशनी का पवित्र त्यौहार दीपावली केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में दूर-दूर तक जहां-जहां भारतीय संस्कृति और सभ्यता पनपती है, बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। घरों-बाजारों में दीपमाला की जाती है। रामायण के यज्ञ से लेकर एक पर्व के रूप में मनाया जाता...

रोशनी का पवित्र त्यौहार दीपावली केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में दूर-दूर तक जहां-जहां भारतीय संस्कृति और सभ्यता पनपती है, बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। घरों-बाजारों में दीपमाला की जाती है। रामायण के यज्ञ से लेकर एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। दीवाली अंधेरे और उजाले की लड़ाई, अंधेरे पर उजाले की जीत का पर्व है। लेकिन राजौरी निवासियों के लिए आज से पहले इन अंधेरों का इतिहास बहुत ही भयावह है। आहों और आंसुओं से भरा है, जिसमें रोना ही रोना था। बहुत सी सुहागिनों की मांगों का सिंदूर इस अंधेरे ने हमेशा के लिए पोंछ दिया। 

जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती जिला राजौरी के साथ अनोखी दास्तान जुड़ी हुई है। राज्य के स्वर्गीय महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ विलय कर दिया और 27 अक्तूबर को हिंदुस्तानी सेना का पहला जत्था कर्नल राय की अगुवाई में श्रीनगर हवाई पट्टी पर उतरा। फिर पाकिस्तान ने सदियों से इक_े रहने वाले भाई से भाई को लड़ाया और साम्प्रदायिकता का ऐसा जहर घोला कि उन्हें एक-दूसरे का दुश्मन बना कर अमन व शांति को भंग कर दिया। 

जब राजौरी के लोग दीपावली मनाने की तैयारी में लगे थे, एक रात पहले कबाइलियों ने 12 बजे अचानक नगर पर हमला कर दिया। स्थानीय तहसीलदार उस रात को डोगरा फौज की टुकड़ी को अपने साथ लेकर जम्मू की ओर भाग गया। जब यह खबर शहर वालों को मिली तो गम और गुस्से के बावजूद सैंकड़ों नौजवान बहुत कम साधनों से आक्रमणकारियों के साथ बीसियों घंटे तक लड़ते रहे। जब असले खत्म हुए तो बहुत से लोग अपने-अपने घरों से निकल कर मैदान और अपने मकानों की छतों पर हजारों इंसानों की भीड़ की शक्ल में जमा हो गए। 

जब किसी भी ओर से सुरक्षा की नाउम्मीदी नजर आई तब लोगों में खलबली मच गई। आक्रमणकारियों ने चारों ओर से लोगों को घेर कर गोलियों की बौछार कर दी और आग से नगर जलने लगा। तब राजौरी की हजारों वीर नारियों ने अपनी इज्जत और अपना सम्मान बचाने के लिए अपनी प्राणों की आहूतियां देकर दीवाली के शुभ दिवस पर अपने खून के दीपक जलाए। महिलाओं ने अपनी जीवन लीला समाप्त करने से पहले अपने पति के दिए हुए तमाम आभूषण उतार कर फैंक दिए, ताकि दुश्मन के नापाक हाथ उनके शरीर को न छू सकें। इन घटनाओं ने एक बार फिर राजस्थान की याद ताजा कर दी। फिर क्या था, राजौरी का मैदान लाशों से भर गया और खून के फव्वारे चलने लगे। धरती का रंग भी लाल हो गया। 

आक्रमणकारियों ने बहुत सी जगहों को आग के हवाले किया, जिनके शोले आसमान को छूने लगे। लोगों ने इधर-उधर भागना शुरू कर दिया। लगभग 200 लोगों ने एक मंदिर में शरण ले रखी थी। आक्रमणकारियों ने बाहर से आग लगाकर उनको जिंदा जला दिया। कुछ लोग जम्मू की ओर भागने में सफल हो गए। 10 हजार निर्दोष लोगों को पाकिस्तानी दरिंदों ने बहुत बेरहमी से कत्ल कर दिया। बच्चों और बूढ़ों को भी नहीं बख्शा। उनके इस वहशीपन से मानवता कांप उठी। तब ऐसे धार्मिक प्रवृत्ति के मुसलमान भी थे जिन्होंने हिंदू परिवारों की रक्षा की। उन लोगों में मुंशी जमाल-उद-दीन और चौधरी इस्लाह मोहम्मद जैसे इंसानी रूप में फरिश्ते थे, जिन्होंने तन,मन, धन से उनकी सुरक्षा की। 

कितना भयानक समय था। ऐसे समय में किसी को खबर नहीं थी कि बच्चे और मां-बाप कहां हैं। बेगुनाहों की चीखें आज भी कानों में गूंज रही हैं। ऐसा लगता था आक्रमणकारी इंसान नहीं भेडि़ए हैं। इतिहास में इस दर्दनाक घटना का प्रमुख स्थान है, जिसकी धारा में बह कर हजारों वतन परस्तों ने देश के दुश्मनों के साथ डट कर मुकाबला किया। वह दृश्य भी हमारी नजरों के सामने घूम रहा है जब मुजफ्फराबाद में किशनगंगा के पुल से छलांगें लगाकर हजारों मासूम नारियों ने अपनी इज्जत बचाने के लिए दरिया की पवित्र लहरों में पनाह ली और अपने शरीर को दुश्मन के नापाक पंजों से सुरक्षित किया।-कुलदीप राज गुप्ता

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