राष्ट्र विकास का प्रमुख स्तंभ है ‘अक्षय ऊर्जा’

Edited By ,Updated: 20 Aug, 2024 06:26 AM

renewable energy is the main pillar of national development

पूरी दुनिया में पारम्परिक ऊर्जा के मुकाबले अक्षय ऊर्जा की मांग लगातार तेजी से बढ़ रही है। दरअसल वर्तमान में पूरी दुनिया पर्यावरण संबंधी गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है और पारम्परिक ऊर्जा स्रोत इस समस्या को और ज्यादा विकराल बनाने में सहभागी बन रहे हैं,...

पूरी दुनिया में पारम्परिक ऊर्जा के मुकाबले अक्षय ऊर्जा की मांग लगातार तेजी से बढ़ रही है। दरअसल वर्तमान में पूरी दुनिया पर्यावरण संबंधी गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है और पारम्परिक ऊर्जा स्रोत इस समस्या को और ज्यादा विकराल बनाने में सहभागी बन रहे हैं, जबकि अक्षय ऊर्जा इन गंभीर चुनौतियों से निपटने में कारगर साबित हो सकती है। यही कारण है कि भारत में भी अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा इत्यादि का उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़ी-बड़ी परियोजनाएं स्थापित की जा रही हैं। विभिन्न अवसरों पर प्रधानमंत्री सौर ऊर्जा को ‘श्योर, प्योर और सिक्योर’ बताते हुए अक्षय ऊर्जा के महत्व को स्पष्ट रेखांकित कर चुके हैं। अक्षय ऊर्जा उत्पादन के मामले में भारत की यह बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है कि भारत दुनियाभर में अक्षय ऊर्जा उत्पादन में चौथे स्थान पर पहुंच चुका है। देश में अक्षय ऊर्जा को लेकर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से ही वर्ष 2004 से प्रतिवर्ष 20 अगस्त को अक्षय ऊर्जा दिवस मनाया जाता है। 

प्रदूषणकारी और सीमित मात्रा में उपलब्ध पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों की बजाय अक्षय ऊर्जा से ही ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए अब देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित की जा रही हैं। इन परियोजनाओं से उत्पादित होने वाली बिजली के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में प्रतिवर्ष लाखों टन की कमी आएगी। यह संतोषजनक स्थिति ही है कि भारत नई-नई अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के साथ तेजी से इस दिशा में आगे बढ़ रहा है। कर्नाटक के पावगाड़ा में 2000 मैगावाट से अधिक क्षमता के सोलर पार्क सहित रीवा से भी ज्यादा सौर ऊर्जा का उत्पादन कर रहे कुछ और सोलर पार्क भी देश में अक्षय ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। 

बहरहाल, यह जानना बहुत जरूरी है कि अक्षय ऊर्जा आखिर है क्या और इसके स्रोत कौन से हैं? अक्षय ऊर्जा असीमित और प्रदूषणरहित है, या वह ऊर्जा है जिसका नवीकरण होता रहता है। ऊर्जा के ऐसे प्राकृतिक स्रोत, जिनका क्षय नहीं होता, अक्षय ऊर्जा के स्रोत कहे जाते हैं। अक्षय ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्रोतों में सूर्य, जल, पवन, ज्वार-भाटा, भू-ताप इत्यादि प्रमुख हैं। उदाहरण के लिए सौर ऊर्जा को ही लें। सूर्य सौर ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, जिसकी रोशनी स्वत: ही पृथ्वी पर पहुंचती रहती है। यदि हम सूर्य की इस रोशनी को सौर ऊर्जा में परिवर्तित नहीं भी करते हैं, तब भी यह रोशनी तो पृथ्वी पर आती ही रहेगी लेकिन चूंकि सूर्य से प्राप्त होने वाली इस असीमित ऊर्जा के उपयोग से न तो यह ऊर्जा घटती है और न ही इससे पर्यावरण को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचती है, इसीलिए सूर्य से प्राप्त होने वाली इस ऊर्जा को अक्षय ऊर्जा कहा जाता है।

ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन से बचाव के दृष्टिगत ही आज अक्षय ऊर्जा को अपनाना समय की सबसे बड़ी मांग है। दरअसल पूरी दुनिया इस समय पृथ्वी के बढ़ते तापमान और ग्लोबल वाॄमग के कारण बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं को लेकर बेहद चिंतित है, इसीलिए कोयला, गैस, पैट्रोलियम पदार्थों जैसे ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों की बजाय अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है। भारत सहित कई प्रमुख देशों में अब थर्मल पावर प्लांटों में कोयले के इस्तेमाल को कम करते हुए सौर ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्रोतों का उपयोग किया जाने लगा है। 

दरअसल आज स्वच्छ वातावरण के लिए कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांटों की बजाय क्लीन और ग्रीन एनर्जी की पूरी दुनिया को जरूरत है और इन्हीं जरूरतों को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ‘वन वल्र्ड, वन सन, वन ग्रिड’ की बात करते हुए इस ओर पूरी दुनिया का ध्यान आकॢषत कर चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता कई गुना बढ़ चुकी है। इसके अलावा करीब साढ़े 3 दशक पूर्व पवन ऊर्जा से ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की शुरू की गई पहल के बाद से देश की पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता भी काफी बढ़ चुकी है। चीन, अमरीका और जर्मनी के बाद भारत अब पवन ऊर्जा उत्पादन के मामले में भी चौथे स्थान पर है। 

फिलहाल जिस प्रकार देश में शुद्ध, सुरक्षित और भरोसेमंद ऊर्जा की ओर तेजी से कदम बढ़ाए जा रहे हैं, उससे लगता है कि अगले कुछ दशकों में देश की कोयला, गैस इत्यादि प्रदूषण पैदा करने वाले स्रोतों से ऊर्जा पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2030 तक देश की अक्षय ऊर्जा स्थापित क्षमता को 500 गीगावाट तक विस्तारित करने का लक्ष्य रखा गया है और 2030 तक देश के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करने, दशक के अंत तक देश की अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत से कम करने तथा वर्ष 2070 तक नैट-जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। हाल ही में मूडीज रेटिंग्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करना है और भारत को 2030 तक इस अक्षय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने के लिए 385 बिलियन डॉलर का निवेश करना होगा। 

मूडीज के अनुसार, भारत हालांकि 2022 तक 175 गीगावाट के अपने लक्ष्य से चूक गया था लेकिन 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत की गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता को प्रतिवर्ष 50 गीगावाट बढ़ाने की योजना है और मूडीज के अनुमान के मुताबिक 44 गीगावाट की वार्षिक क्षमता वृद्धि भी लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगी। मूडीज का कहना है कि 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को आगामी 6-7 वर्षों में 190-215 बिलियन डॉलर तथा ट्रांसमिशन और वितरण पर 150-170 बिलियन डॉलर खर्च करने होंगे। मूडीज के मुताबिक, भारत के मजबूत नीतिगत समर्थन ने वित्त वर्ष 2023-24 में अपनी बिजली उत्पादन क्षमता में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी को करीब 43 प्रतिशत तक बढ़ा दिया, साथ ही निजी क्षेत्र के निवेश को भी आकर्षित किया है। नवीकरणीय ऊर्जा में लगातार वृद्धि भी देखी जा रही है लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला अगले 10 वर्षों तक बिजली उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 

मूडीज का कहना है कि उसे उम्मीद है कि भारत अगले 5-6 वर्षों में कोयला आधारित क्षमता में प्रतिवर्ष 40-50 गीगावाट जोड़ेगा, जिससे बिजली की मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी, जो इस अवधि में 5-6 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढऩे की संभावना है। बहरहाल, आने वाले वर्षों में अक्षय ऊर्जा क्षमता को तेजी से बढ़ाने के लिए इस दिशा में काफी कार्य करना होगा क्योंकि माना जा रहा है कि डेढ़ दशक बाद भारत में सौर ऊर्जा की मांग 7 गुना तक बढ़ सकती है। आज न केवल भारत, बल्कि सारी दुनिया के समक्ष बिजली जैसी ऊर्जा की महत्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करने के लिए सीमित प्राकृतिक संसाधन, साथ ही पर्यावरण असंतुलन और विस्थापन जैसी गंभीर चुनौतियां भी हैं। इन गंभीर समस्याओं और चुनौतियों से निपटने के लिए अक्षय ऊर्जा ही ऐसा बेहतरीन विकल्प है, जो पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के साथ-साथ ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने में भी कारगर साबित होगी। अक्षय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने से हमारी ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर कम होता जाएगा और इससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक जीवन स्तर में भी सुधार होगा।-योगेश कुमार गोयल
 

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