Edited By ,Updated: 31 Dec, 2024 05:57 AM
देश में नेताओं की फितरत में शामिल हो चुका है किसी न किसी वजह से विवादों को जन्म देना। इसके लिए किसी का जन्म-मरण भी नहीं देखा जाता। विवादों के चलते राजनीति इतने निचले स्तर पर जा चुकी है कि दिवंगत विभूतियों को भी नहीं बख्शा जाता। इसमें नेताओं का अहम...
देश में नेताओं की फितरत में शामिल हो चुका है किसी न किसी वजह से विवादों को जन्म देना। इसके लिए किसी का जन्म-मरण भी नहीं देखा जाता। विवादों के चलते राजनीति इतने निचले स्तर पर जा चुकी है कि दिवंगत विभूतियों को भी नहीं बख्शा जाता। इसमें नेताओं का अहम और राजनीति आड़े आ जाती है। पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत मनमोहन सिंह भी इसी राजनीति का शिकार हो गए। सिंह की चिता की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई है कि उनके समाधि स्थल को लेकर केंद्र की भाजपा सरकार और कांग्रेस तथा विपक्षी दल एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लग गए। दिल्ली में सिंह के स्मारक के लिए जगह को लेकर कांग्रेस और सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया।
सिंह के स्मारक के मुद्दे पर पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा कि सरकार को देश के महान पुत्र और उनकी गौरवशाली कौम के प्रति आदर दिखाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि भारत माता के महान सपूत और सिख समुदाय के पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी का अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर करवाकर वर्तमान सरकार द्वारा उनका सरासर अपमान किया गया है। राहुल गांधी के मुताबिक आज तक सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों की गरिमा का आदर करते हुए उनके अंतिम संस्कार अधिकृत समाधि स्थलों में किए गए ताकि हर व्यक्ति बिना किसी असुविधा के अंतिम दर्शन कर श्रद्धांजलि दे पाए। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने आरोप लगाया कि मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए यथोचित स्थान उपलब्ध नहीं करा कर सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री के पद की गरिमा, उनकी विरासत और खुद्दार सिख समुदाय के साथ न्याय नहीं किया।
कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने दावा किया कि मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार में असम्मान और कुप्रबंधन देखने को मिला। उन्होंने कहा कि डी.डी. (दूरदर्शन) को छोड़कर किसी भी समाचार एजैंसी को अनुमति नहीं दी गई। डी.डी. ने मोदी और शाह पर ध्यान केंद्रित किया। सिंह के परिवार को बमुश्किल ही कवर किया। उन्होंने दावा किया कि सिंह के परिवार के लिए केवल 3 कुर्सियां सामने की पंक्ति में रखी गईं।
कांग्रेस नेताओं, सिंह की बेटियों और उनके परिवार के अन्य सदस्यों के लिए सीटों की व्यवस्था की खातिर जद्दोजहद करनी पड़ी। उन्होंने कहा कि इस महान राजनेता के साथ इस अपमानजनक व्यवहार से सरकार की प्राथमिकताओं और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उसकी असंवेदनशीलता उजागर होती है। खेड़ा ने दावा किया कि हैरानी की बात यह रही कि जब भूटान के नरेश खड़े हुए, तो प्रधानमंत्री मोदी खड़े नहीं हुए। अंतिम संस्कार की रस्में निभाने वाले पोतों को चिता तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ा तथा विदेशी राजनयिकों को कहीं और बैठाया गया और वे नजर नहीं आए। कांग्रेस के आरोपों पर भाजपा कैसे पीछे रह सकती थी। यह देखे बगैर कि इस मुद्दे पर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की भद्द पिटेगी, भाजपा पलटवार करने में पीछे नहीं रही।
भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कांग्रेस नेताओं पर प्रहार करते हुए कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के दुखद देहावसान पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस की इस घटिया सोच के लिए जितनी भी निंदा की जाए, कम है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को जीते-जी कभी भी वास्तविक सम्मान नहीं दिया, लेकिन अब उनके सम्मान के नाम पर राजनीति कर रही है। इस विवाद में आम आदमी पार्टी (‘आप’) भी कूद पड़ी।
‘आप’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी इस विषय को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यह खबर सुनकर मैं स्तब्ध हूं कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जी का अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर किया गया। इसके पूर्व भारत के सभी प्रधानमंत्रियों का अंतिम संस्कार राजघाट पर किया जाता था। केजरीवाल ने सवाल किया कि सिख समाज से आने वाले और पूरी दुनिया में ख्याति प्राप्त 10 वर्ष भारत के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार और समाधि के लिए भाजपा सरकार 1000 गज जमीन भी न दे सकी?
कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि सिंह का अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहां उनका स्मारक भी बन सके। इस पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा था कि सरकार पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए स्थान आबंटित करेगी। आश्चर्य यह है कि अतिविशिष्ट व्यक्तियों के स्मारक के बारे कायदे-कानून का फैसला मनमोहन सिंह की ही सरकार ने वर्ष 2013 में लिया था। इसके मुताबिक दिल्ली में वी.वी.आई.पी. के लिए अलग से कोई स्मारक नहीं होगा तथा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों जैसे दिवंगत राष्ट्रीय नेताओं के स्मारकों के लिए एक सांझा परिसर बनाने का फैसला किया था।
यू.पी.ए. सरकार ने राजघाट के पास अलग-अलग समाधियों के निर्माण पर रोक लगाने का फैसला लिया था। सिंह के समाधि स्थल को लेकर हाय-तौबा मचाने वाली कांग्रेस अपनी ही पार्टी के प्रधानमंत्री रहे नरसिम्हा राव की समाधि को लेकर किए गए बर्ताव को भूल गई।
कांग्रेस की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार राव के स्मारक के लिए 10 साल तक जगह नहीं दे पाई थी। साल 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई तब स्मारक बनाने का प्रस्ताव दिया गया। तत्कालीन केंद्रीय शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने इस पर तेजी से काम किया। केंद्र में सत्ता बदलने पर फिर ऐसे ही हास्यास्पद हालात पैदा हो सकते हैं। बेहतर यही होगा कि ऐसे मुद्दों पर तुच्छ राजनीति से परे राजनीतिक दलों को मिल-बैठ कर स्थायी हल ढूंढना चाहिए, ताकि दिवंगत की आत्मा को शांति मिले और ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर जगहंसाई से बचा जा सके।-योगेन्द्र योगी