सर्व शिक्षा अभियान सब पढ़ें सब बढ़ें प्रंतु कैसे ?

Edited By ,Updated: 04 May, 2017 02:25 PM

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शिक्षा को जीवन का मूल रूप से आधार माना जाता है। यह सत्य है इसी लिए प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा से जोड़ने के लिए ...

शिक्षा को जीवन का मूल रूप से आधार माना जाता है। यह सत्य है इसी लिए प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा से जोड़ने के लिए एक विशाल एवं बड़ा अभियान चलाया जा रहा है। जिसका नारा सब पढ़ें और सब बढ़ें तथा शिक्षा है अनमोल रतन, पढ़ने का सब करें जतन, का नाम दिया गया । अच्छी बात है शिक्षा के प्रति अभियान चलाना क्योंकि शिक्षित मानस एवं अनपढ़ मानस में काफी अधिक अंतर होता है। शिक्षित मानस पढ़ने तथा लिखने में सक्षम होता है। परंतु अनपढ़ मानस इसके ठीक विपरीत दिशा में होता है । क्योंकि अशिक्षित होने के कारण उसमें लिखने तथा पढ़ने का आभाव होता है । यह कटु सत्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता जिसे मानने से इंकार भी नहीं किया जा सकता । जो स्पष्ट रूप से समाज के धरातल नामक पटल पर सम्पूर्ण रूप से उभर कर साक्षात रूप में प्रकट हो जाता है।

समस्या यहीं समाप्त नहीं हो जाती क्योंकि अनपढ़ मानस के वार्तालाप एवं शिक्षित मानस के वार्तालाप में दीर्घ अंतर होता है। अनपढ़ मानस के द्वारा प्रयोग किए गए शब्दों कि तुलना शिक्षित मानस के द्वारा प्रयोग किए गए शब्दों से कदापि नहीं की जा सकती। क्योंकि दोंनों व्यक्तियों के द्वारा प्रयोग किए गए शब्दों में भिन्नता अधिक होती है। दोंनों व्यक्तियों के द्वारा किए गए वार्तालाप के दौरान प्रयोग में आए हुए शब्दों में समानता कदापि नहीं होती जो सदैव स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आकर साक्षात रूप से प्रकट हो जाती है। सरकार ने सबको शिक्षित बनाने हेतु सर्व शिक्षा अभियान तथा सब पढ़ें सब बढ़ें का नारा दिया। परंतु यह प्रश्न अत्यंत गम्भीर है। क्या इस देश की कतार में खड़े हुए सबसे अंतिम व्यक्ति के परिवार के बालक एवं बालिका को शिक्षा मिल रही है अथवा नहीं ।

दूसरा प्रश्न यह है कि यदि जो शिक्षा मिल रही है वह उन विद्यार्थियों को आज के इस आधुनिक युग में कितना बढ़ा पा रही है। इस लिए की नारा सब पढ़ें सब बढ़े का है कतार में खड़े हुए अंतिम विद्यार्थी को उनकी शिक्षा उन्हें कितना बढ़ा पा रही है कितनी ऊंचाईयों तक पहुंचा पा रही है। इस बिंदु पर बड़ी गम्भीरता से ध्यान देना अत्याधिक आवश्यक है। धरातल पर शिक्षा की तस्वीर का क्या रूप है। उन विद्यार्थियों के जीवन में उस शिक्षा का क्या योगदान है। जो गरीब एवं कंगाल परिवारों से निकलकर आते हैं। तथा दरिद्र एवं दुर्लभ परिस्थितियों से जूझते एवं संघर्ष करते हुए ग्राम के पास की पाठशाला में पहुंचते हैं। इसलिए कि जीवन की तंगहाली ने उन्हें जीवन का आभास भी करने से वंचित कर रखा है।


धन के आभाव के कारण उचित एवं प्रयाप्त शिक्षा प्राप्त कर पाना अत्यंत जटिल है। कोई विकल्प ही नहीं है। क्योंकि आज के समय में उचित शिक्षा प्राप्त करने हेतु धन का बहुत बड़ा योगदान है। यदि शब्दों की सत्यता को ध्यान में रखते हुए ईमानदारी से प्रस्तुत किया जाए तो अब शिक्षा धन पर ही आधारित दिखाई दे रही है । अच्छे स्कूल से लेकर अच्छे विद्यालय तक पहुंचने के लिए धन ही एक मात्र साधन है। जो अपने आपमें स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। शायद सत्य यही है कि धन की भूमिका विद्यार्थी के जीवन में उस पुल की भांति है। जो बड़ी गहरी खाँईं के दोनों छोरों को आपस में जोड़ने वाले पुल की भाँति है। जिसके माध्यम के बिना इस पार से उस पार जाना अत्यंत मुश्किल ही नहीं अपितु असंभव है।

शिक्षा हेतु जिन गरीब विद्यार्थियों को ऋण प्राप्त करने प्रावधान रखा गया है उनके मानक ही इतने जटिल हैं कि पँक्ति के अंतिम छोर पर खड़ा हुआ गरीब विद्यार्थी उन मानकों के बिंदुओं को पूरा नहीं कर पाता । तथा उसका ब्याज दर भी उन कार मोटर खरीदने वाले व्यक्तियों के ब्याज से भी अधिक है। जो अपनी सुख समृद्धि के लिए वाहन का कार्य करते हैं। तथा लम्बी चौड़ी गाड़ियों में बैठकर आनंद लेते हैं। उन वाहनों के ऋण से शिक्षा ऋण का ब्याज भी अधिक है। सोचिए, समझिए, तथा देखिए क्या सत्य है क्या नहीं। कार लोन ब्याज़ न्यूनतम से अधिकतम दर शिक्षा लोन ब्याज़ न्यूनतम से अधिकतम दर कार लोन ब्याज दर 9 .15%, 11.25% शिक्षा लोन ब्याज दर 16.25%,17.25% क्या यह उचित मानक है? जो कि प्रत्येक गरीब विद्यार्थियों को उचित शिक्षा दिलापाएगा अथवा गरीब एवं निर्बल विद्यार्थी आधुनिक शिक्षा से शिक्षित हो पाएगा अथवा नहीं?

क्या यह रूप रेखा कागज पर देखने एवं दिखाने हेतु मात्र बना तो नहीं दी गई है। अथवा यह कुछ खास व्यक्तियों को लाभ पहुंचाने के लिए तो नहीं है। इसलिए की धरातल की स्थित दिन प्रतिदिन दयनीय और दुर्लभ होती चली जा रही है। इसका कौन जिम्मेदार है। यह अत्यंत गम्भीर एवं जटिल प्रश्न है। जिसका उत्तर जनता को कौन देगा । और कब इस ओर भी ध्यान दिया जाएगा अथवा नहीं? क्या इनको इसी दुर्दशा में जीने के लिए मजबूर एवं विवश किया जाएगा । इसलिए की धरातल की तस्वीर और कागज पर खिंची हुई लम्बी लाईनों में अंतर अत्यंत अत्यधिक है। आकाश एवं पृथ्वी की दूरी की भाँति स्थित दिखाई दे रही है। यह बड़ी चिंता का विषय है। 
 
                                                                   आपका अनुकरण 
 

                                                                      तुच्छ कण  

                         यह लेखक के अपने विचार हैं, पंजाब केसरी इन विचारोम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से इतेफाक नहीं रखता ।   
    

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