Edited By ,Updated: 10 Sep, 2024 05:37 AM
तरो ताजा खबरों से विदित हो रहा है कि फ्रांस में करीब 200 माध्यमिक स्कूलों (कक्षा 6 से 8) ने क्लास में स्मार्टफोन लाने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। इसे डिजिटल ब्रेक का नाम दिया गया है। फिलहाल यह अभियान परीक्षण के चरण में है।
तरो ताजा खबरों से विदित हो रहा है कि फ्रांस में करीब 200 माध्यमिक स्कूलों (कक्षा 6 से 8) ने क्लास में स्मार्टफोन लाने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। इसे डिजिटल ब्रेक का नाम दिया गया है। फिलहाल यह अभियान परीक्षण के चरण में है। यह फैसला मोबाइल और इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों पर किशोरों का स्क्रीन टाइम (स्क्रीन देखने का समय) घटाने और उन्हें ऑनलाइन शोषण और साइबरबुङ्क्षलग से बचाने के लिए लिया गया है। अगर यह परीक्षण कामयाब होता है, तो 2025 तक इसे फ्रांस के सभी स्कूलों में लागू किया जा सकता है।
मोबाइल या सैलफोन आजकल हर व्यक्ति के जीवन में आधुनिक दूरसंचार का एक अभिन्न अंग बन गए हैं। कई देशों में, आधी से ज़्यादा आबादी मोबाइल फोन का इस्तेमाल करती है और मोबाइल फोन का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, सऊदी अरब खाड़ी क्षेत्र के देशों में सबसे ज्यादा मोबाइल उपयोगकत्र्ताओं के साथ पहले स्थान पर है। खाड़ी देशों में ओमान दूसरे स्थान पर है, उसके बाद कुवैत और यू.ए.ई. हैं। चूंकि दुनिया भर में अरबों लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं, इसलिए स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभावों की घटनाओं में थोड़ी-सी भी वृद्धि दीर्घकालिक आधार पर बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभाव डाल सकती है।
फ्रांस में शुरू किए जा रहे नए प्रयोग के अनुसार किशोर सुबह स्कूल आने पर अपना मोबाइल शिक्षकों को सौंप देते हैं। वे जब तक स्कूल में रहते हैं, उनके मोबाइल फोन बेहद सुरक्षित ब्रीफकेस में रखे जाते हैं। इसके लिए संबंधित स्कूलों ने खुद ही फंड इकट्ठा करके ब्रीफकेस जैसे स्टोरेज उपकरण खरीदे हैं। कई विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि किशोरों और बच्चों में स्मार्टफोन का बढ़ता चलन और सोशल मीडिया के प्रति रुझान, लत की हद तक बढ़ता जा रहा है। यह सेहत के लिए बड़े खतरे की तरह देखा जा रहा है। अपने देश में भी छात्रों द्वारा मोबाइल का अनियमित उपयोग उफान पर है। शिक्षा से जड़े अनेक लोग इस बिंदू पर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। छात्रों की मानसिक हैल्थ को बेहतर बनाने के लिए व्यवस्था से भी इस बिंदू पर सख्त गाइडलाइंस का इंतजार है। यह काम किसको करना होगा?
हमारे यहां तो मां-बाप 3 साल के बच्चे के हाथ में मोबाइल पकड़ा देते हैं ताकि बच्चा उनको बेवजह परेशान न करे। बच्चा मोबाइल पर कार्टून देखता रहे , चाहे मानसिक विकृति का शिकार हो जाए। हम समझ लें कि कम उम्र के बच्चों और छात्रों में सैलफोन से मस्तिष्क कैंसर होने का जोखिम वयस्कों की तुलना में अधिक होता है। उनका तंत्रिका तंत्र अभी भी विकसित हो रहा होता है और इसलिए कैंसर पैदा करने वाले कारकों के प्रति अधिक संवेदनशील है। क्या हमें इस ङ्क्षबदू को नजरअंदाज करना चाहिए?
क्यों न हम बच्चों, छात्रों और खुद भी मोबाइल और डिजिटल तकनीकों से दूर रहें। क्या छात्रों को मोबाइल गेम्स की बजाय बिना मोबाइल की गेम्स खेलने के लिए प्रोत्साहित करना बेहतर नहीं होगा? ऐसा न करने के कारण भी देसी खेलें विलुप्त होती जा रही हैं। कुल मिलाकर सिर्फ छात्र ही नहीं, हम सबके लिए, मोबाइल का संयमित प्रयोग करना हमारी लाइफ को मानसिक शांति से परिपूर्ण कर सकता है।-डा. वरिन्द्र भाटिया