Edited By ,Updated: 11 Sep, 2024 05:14 AM
मणिपुर में हिंसा के एक साल बाद भी शांति बहाली की उम्मीदें कम होती जा रही हैं। इंफाल घाटी में ड्रोन बमबारी और आर.पी.जी. के साथ हमले बढ़ रहे हैं।
मणिपुर में हिंसा के एक साल बाद भी शांति बहाली की उम्मीदें कम होती जा रही हैं। इंफाल घाटी में ड्रोन बमबारी और आर.पी.जी. के साथ हमले बढ़ रहे हैं। स्थानीय संगठन और सुरक्षा एजैंसियों द्वारा शांति बहाली की कोशिशें जारी हैं लेकिन मई 2023 में शुरू हुई हिंसा एक साल से अधिक समय होने के बावजूद संकट के समाधान के गंभीर प्रयास होते नजर नहीं आ रहे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले एक साल में हिंसा में दोनों तबकों के 227 लोगों की मौत और करीब 70,000 लोग विस्थापित हो गए। इनमें से करीब 59,000 लोग अपने परिवार या परिवार के बचे-खुचे लोगों के साथ साल भर से राज्य के विभिन्न स्थानों पर बने राहत शिविरों में रह रहे हैं। इनमें से कुछ लोगों ने पड़ोसी मिजोरम में शरण ले रखी है।
मणिपुर में जारी ङ्क्षहसा में अब तक पुलिस और सुरक्षा बलों के 16 जवान भी मारे जा चुके हैं। मैतेई और कुकी तबकों के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है, जिसका पाटना बहुत कठिन लगता है। इसी माहौल में राज्य की दोनों लोकसभा सीटों के चुनाव के दौरान भी हिंसा की घटनाएं हुईं। यह राज्य इतने बड़े पैमाने पर हिंसा झेल चुका है कि अब दो-चार लोगों की हत्या को मामूली घटना समझा जाने लगा है।यहां अनुमानित 3.3 मिलियन लोग रहते हैं। इनमें से आधे से अधिक लोग मैतेई हैं, जबकि लगभग 43 फीसदी कुकी और नागा हैं, जो प्रमुख अल्पसंख्यक जनजातियां हैं।
आखिर कैसे कोई राज्य सरकार अपने नागरिकों के बीच लगातार जारी हिंसा, विस्थापन तथा सामान्य जीवन पर उपजे संकट के बावजूद निष्क्रिय नजर आती है? सबसे ङ्क्षचता की बात यह है कि दोनों समुदायों के बीच संघर्ष का लाभ उग्रवादी तत्व उठाते नजर आ रहे हैं। उससे भी ज्यादा चिंताजनक यह कि वे अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ताजा घटनाक्रम में ङ्क्षहसा की आग में जल रहे मणिपुर के इंफाल वैस्ट जिले के कौत्रुक गांव में रिमोट नियंत्रित ड्रोन का इस्तेमाल करके 1 सितंबर को हमला किया गया था, जिसमें दो लोगों की मौत और 9 घायल हो गए थे। इससे अगले दिन करीब तीन किलोमीटर दूर सेंजाम चिरांग में फिर से ड्रोन का इस्तेमाल किया गया और इस हमले में तीन लोग घायल हुए। इस बीच, 7 सितंबर की रात को जिरिबाम में हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गई।
6 सितंबर को उग्रवादियों ने मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री मायरंबम कोइरेंग के घर पर भी रॉकेट से हमला किया। यह हमला मोइरांग में हुआ, जिसमें एक बुजुर्ग व्यक्ति की मौत और 5 घायल हो गए थे। निस्संदेह, मणिपुर की ङ्क्षहसा का देश-दुनिया में कोई अच्छा संदेश नहीं जा रहा। ऐसे में राज्य सरकार राजधर्म का पालन करती नहीं दिखती। सवाल पूछे जा रहे हैं कि जब मौजूदा मुख्यमंत्री हिंसा शुरू हुए सवा साल बीत जाने के बाद भी हालात पर काबू नहीं कर पा रहे हैं तो केंद्र ने उनकी जगह किसी सक्षम व्यक्ति को मौका क्यों नहीं दिया? दरअसल, मणिपुर के मुद्दे पर विपक्ष भी लगातार केंद्र सरकार, खासकर प्रधानमंत्री पर हमलावर रहा है। सड़क से लेकर संसद तक प्रधानमंत्री के मणिपुर न जाने पर सवाल उठाए जाते रहे हैं।
अब हालत यह है कि राज्य की दोनों प्रमुख जनजातियों यानी मैतेई और कुकी के बीच विभाजन की रेखा बेहद साफ नजर आती है। एक-दूसरे के इलाकों में सदियों से आपसी भाईचारे के साथ रहने वाले अब या तो जान से मार दिए गए हैं या अपने परिवार के साथ पलायन कर गए हैं। हाल की हिंसा के बाद मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने राज्य की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए केंद्र सरकार से कदम उठाने की मांग की है। इतना ही नहीं, उन्होंने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों सहित एकीकृत कमान का प्रभार राज्य सरकार को सौंपने की बात भी कही है। निश्चित रूप से मैतेई व कुकी समुदायों में जारी संघर्ष को समाप्त करने के लिए बातचीत शुरू करने की जरूरत है।
निश्चित रूप से हिंसा पर अंकुश लगाने व कानून का शासन बहाल करने के लिए केंद्र व राज्य को अपनी रणनीति में बदलाव करना चाहिए। साथ ही संघर्षरत पक्षों को बातचीत की मेज पर लाने की भी कोशिश नए सिरे से होनी चाहिए। विपक्ष को यह यथाशीघ्र समझने की आवश्यकता है कि यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है और इससे निपटने में हम सक्षम हैं। उन्हें दुनिया के सामने अपने ही देश को छोटा दिखाने का प्रयास बंद कर देना चाहिए। वे मणिपुर हिंसा में विदेशी शक्तियों की संलिप्तता को भी नकार नहीं सकते। विपक्ष को किसी भी मुद्दे को तूल देने से पहले, अपने राष्ट्रीय सरोकारों के विषय में विचार करना आवश्यक है। केंद्र सरकार को स्थिति की गंभीरता को समझते हुए इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और मणिपुर में शांति बहाली के स्थायी और ठोस कदम उठाने चाहिएं। असल में देश में शांति का माहौल होगा, कानून का शासन होगा तभी विकास की रफ्तार बढ़ेगी। -रोहित माहेश्वरी