Edited By ,Updated: 26 Aug, 2024 06:43 AM
पूरा देश श्री कृष्ण के जन्म के उत्सव में डूबा हुआ है। लेकिन क्या यह उत्सव ही श्री कृष्ण को समझने की कोशिश का एक मात्र मार्ग और लक्ष्य है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि दुनिया में श्री कृष्ण की भक्ति के साथ उनकी वाणी भगवद् गीता की महिमा भी बढ़ती जा रही...
पूरा देश श्री कृष्ण के जन्म के उत्सव में डूबा हुआ है। लेकिन क्या यह उत्सव ही श्री कृष्ण को समझने की कोशिश का एक मात्र मार्ग और लक्ष्य है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि दुनिया में श्री कृष्ण की भक्ति के साथ उनकी वाणी भगवद् गीता की महिमा भी बढ़ती जा रही है। यह सुखद है लेकिन इस अत्याधुनिक दौर की दुनिया में क्या श्री कृष्ण के मार्ग का अनुसरण हो पा रहा है। आज के संदर्भ में श्री कृष्ण का मार्ग सबसे ज्यादा अनुकरणीय है।
समाज में पाखंड बढ़ता जा रहा है। नारी स्वतंत्रता कहीं ज्यादा खतरे में है। दुनिया में युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं और शांति के नाम पर भेदभाव हो रहा है। पर्यावरण खतरे में है और तंत्र-मंत्र जादू-टोना करने वाले फल फूल रहे हैं। भगवान श्री कृष्ण का स्मरण होते ही पहले ब्रज याद आता है और फिर महाभारत काल। ब्रज की भूमि में वह प्रेम के पुजारी हैं। वह उस ब्रज रज में लौटते हैं जहां आज भी बार-बार यह विश्वास होता है यहीं तो हैं श्री कृष्ण। ऐेसी-ऐसी लीलाएं जिस पर संत और दुनिया भर से आने वाले भक्त न्यौछावर हैं। ऐसी दीवानगी कि रसखान ब्रज के ही हो गए। लेकिन ज्यों ही श्री कृष्ण ब्रज छोड़कर बाहर जाते हैं वह योगेश्वर श्री कृष्ण हो जाते हैं। वह अपने सखा अर्जुन को बीच कुरुक्षेत्र में उपदेश देते हैं और कहते हैं -
हे अर्जुन ! जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूं क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे मार्ग का अनुकरण करते हैं। श्री कृष्ण का स्मरण होते ही पहले ब्रज याद आता है और फिर महाभारत काल भी। वास्तव में ऐसे अलौकिक और अद्वितीय चरित्र दुनिया में कम ही देखने को मिलते हैं जैसा भगवान श्री कृष्ण का है। वह बाल गोपाल है। उनके नाम संकीर्तन पर नृत्य करते हैं झूमते हैं। रसखान भी उन पर न्यौछावर हो जाना चाहते हैं और सूरदास भी। उनका पूरा जीवन चरित्र रूढिय़ों को तोड़ता है। अंधविश्वासों को खत्म करता है। पाखंड को धिक्कारता है। पूरे ब्रजवासी जब इंद्र की पूजा की तैयारी में व्यस्त थे तब श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि किसकी पूजा कर रहे हो।
इंद्र देवता हैं इसलिए क्या उनकी पूजा उचित है। हम सब प्रकृति की पूजा क्यों नहीं करते। हम गाय की पूजा क्यों नहीं करते जो जीवन दायिनी है और उन्होंने इंद्र की जगह गिरीराज जी का पूजन कराया। इंद्र के स्थान पर गाय की पूजा हुई। विडंबना तो देखिए महाभारत टालने के प्रयास में श्री कृष्ण शांति दूत बनकर के धृतराष्ट्र के दरबार में चले जाते हैं और यह प्रस्ताव देते हैं कि शांति के लिए पांडव सिर्फ 5 गांव लेकर मान जाएंगे। क्या शांति का इससे बड़ा प्रस्ताव कभी दुनिया में देखा गया है। शायद नहीं लेकिन जब शांति की सारी संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं और कौरव और पांडवों की सेनाएं कुरुक्षेत्र में आमने-सामने खड़ी हो जाती हैं तब अर्जुन को मोह पैदा होता है। अपने परिवार के प्रति मोह के कारण ही वह शांति की बात करने लगते हैं लेकिन श्री कृष्ण इस प्रस्ताव को नहीं मानते और अर्जुन के शांति प्रस्ताव को कायरता बताते हैं। श्री कृष्ण के व्यक्तित्व की यही विराटता है कि वह देशकाल परिस्थिति के अनुसार ही निर्णय करते हैं। वह शांति के पुजारी हैं लेकिन जो लोग शांति के मार्ग में बाधक हैं उनको दंड भी दिलाना वह जानते हैं।
श्री कृष्ण नारी स्वतंत्रता के सबसे बड़े पैरोकार हैं। द्रौपदी उनके लिए नारी स्वतंत्रता की प्रतीक है जिसका भरी सभा में चीर हरण कर अपमान करने की कोशिश की गई। भीष्म पितामह उनके प्रिय हैं लेकिन जब रणभूमि में पितामह को सामने देख पितामह पर तीर चलाने में अर्जुन के हाथ कांपते हैं तो श्री कृष्ण उन्हें याद दिला देते हैं जब द्रौपदी का भरी सभा में अपमान हो रहा था तब पितामह शांत बैठे थे। चुपचाप बैठे थे। नारी के अपमान पर चुपचाप बैठे पितामह उतने ही दोषी हैं जितना अपमान करने वाले। सुभद्रा का विवाह जबरन दुर्योधन से कराया जा रहा था लेकिन सुभद्रा की इच्छा जानकर श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वह सुभद्रा को ले जाएं। श्री कृष्ण के इस निर्णय पर तमाम सवाल उठते हैं लेकिन श्री कृष्ण का एक जवाब था कि नारी की इच्छा के बिना परिवार उसका किसी से भी विवाह नहीं करा सकता। श्री कृष्ण का पूरा जीवन चुनौतियों और संघर्षों से भरा है। यह इसलिए क्योंकि वह पूरे समाज को यह सीख देना चाहते थे कि चुनौतियां कितनी ही बड़ी क्यों न हो शांत बैठने वाले कायर होते हैं।
गुजरात में समुद्र तट पर पहुंचकर द्वारिका नगरी बसाते हैं लेकिन द्वारिका में चैन से बैठ भी पाते कि महाभारत के युद्ध की आहट आने लगती है। वह शांति दूत बन हस्तिनापुर जाते हैं। हरसंभव प्रयास करते हैं कि महाभारत को रोका जाए लेकिन जब नहीं रुकता और वह अर्जुन के सारथी बनते हैं। महाभारत युद्ध समाप्त होता है और लौटकर द्वारिका में कुछ दिन भी चैन से नहीं बैठ पाते कि उनके परिवार में ही कलह शुरू हो जाती है। श्री कृष्ण एक दिन भी चैन से नहीं बैठे। वह सतत संघर्ष करते रहे, समाज को नई राह दिखाते रहे। वह सबसे बड़े उपदेशक हैं उस सत्य की राह के जिससे लोग भटक गए हैं।-बृजेश शुक्ल