इस चुनाव में श्रीराम को सर्वधर्म समभाव वाला राम न बना सके

Edited By ,Updated: 30 May, 2024 05:51 AM

shri ram could not be made ram who had equal respect for all religions

दुर्भाग्य कहिए कि राजनीति में हमने भगवान राम को एक पक्षीय बना दिया। राम भारतीय संस्कृति में हमारी अस्मिता हैं। तुलसी और वाल्मीकि की रामायणों के समभावी राम को हमने राजनीति की खातिर आगे कर दिया। 22 जनवरी, 2024 को राम की अयोध्या नगरी में उनकी...

दुर्भाग्य कहिए कि राजनीति में हमने भगवान राम को एक पक्षीय बना दिया। राम भारतीय संस्कृति में हमारी अस्मिता हैं। तुलसी और वाल्मीकि की रामायणों के समभावी राम को हमने राजनीति की खातिर आगे कर दिया। 22 जनवरी, 2024 को राम की अयोध्या नगरी में उनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर राम को हमने बांट लिया। भगवान राम ने भीलनी, निषाद राज घोह, वानर राज सुग्रीव जैसे अनुसूचित जाति के लोगों को अपने वात्सल्य से भर दिया। 

बड़े-बड़े शहंशाहों को उन्होंने अपनी आगोश में लिया। राम राज्य स्थापित कर आने वाले राजनेताओं के लिए एक आदर्श स्थापित किया। राम इस देश के ङ्क्षचतकों का ङ्क्षचतन और मनन हैं। ब्राह्मण और शूद्र के भेद को मिटा कर एक समरसतापूर्ण समाज की रचना की। मुसलमान समुदाय को तो राम के नाम को आगे लाना चाहिए था। क्या मुसलमान अपने को राम से अलग समझते हैं? सिखों और विशेषकर निहंग सिंहों ने न तो राम की खातिर अनेक बलिदान दिए। राम तो सबके हैं राम तो सब में हैं। राम राजनीति का विषय ही नहीं। राम तो एक अध्यात्मवाद हैं। रघुकुल भूषण राम तो सारे विश्व के हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव ने राम को एक समुदाय का बना दिया। 

समझ नहीं आता कि हमारे देश की विपक्षी पार्टियां राम को आगे लाना क्यों भूल गईं? अलबत्ता विपक्ष ने राम को नरेंद्र मोदी को सौंप दिया। मोदी साहिब ने राम का सहारा लेकर अपनी राजनीतिक नाव को पार लगा लिया। विपक्ष यही सोचता रहा कि राम हमारे भी थे। विपक्ष को अपनी राजनीति को राममय बनाने से किसने रोका था? विपक्ष चूक गया परन्तु इस देश के विचारकों को चिंता हुई कि राम को चुनावी राजनीति से दूर रखना चाहिए था। मोदी ने धर्म को राजनीति से जोड़ दिया। चलो अच्छा किया कि राजनीति को मोदी ने राममय बना दिया। देखना अब यह है कि तीसरी बार मोदी प्रधानमंत्री बन कर राजनीति में कितनी नैतिकता और शुद्धता लाते हैं? राम के आदर्श को केंद्रीय प्रशासन में किस प्रकार एडजस्ट करते हैं? 

दूसरा पहलू 2024 के लोकसभा चुनाव में यह रहा है कि देश के कुछेक टी.वी. चैनलों ने तो मोदी के ‘400 पार’ के मनोविज्ञान को मतदाताओं के हृदय में अंकित करने का उत्तरदायित्व अपने कंधों पर ले लिया। ये चैनल मेरा निवेदन स्वीकार करें कि राजनीति में कुछ भी पक्का और स्थायी नहीं। राजनीति पल-पल में बदलती रहती है। मोदी ने ‘400 पार’ लक्ष्य रखा है अपने कार्यकत्र्ताओं में जोश भरने के लिए। संभव है साढ़े चार सौ सीटें भी ले जाएं और यह भी हो सकता है कि गाड़ी 300 सीटों पर ही अटक जाए। टी.वी. चैनल जनता को गुमराह क्यों करें? देश के सामने चर्चा अपने-अपने टी.वी. चैनलों द्वारा करें कि लोकतंत्र क्या है? लोकतंत्र में मतदान का क्या महत्व है? मतदाता के अधिकार और कत्र्तव्य क्या हैं? संविधान हमारा क्या कहता है? यह मतदान का अधिकार हमें किन-किन कठिनाइयों से गुजर कर मिला? चुनाव आयोग भी यह चेष्टा करे कि हरेक बूथ पर सैंट परसैंट वोट पड़ें। 

भविष्यवक्ता तो खुदा भी नहीं। यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि अब चुनाव का अंतिम चरण आ गया है। जनता जनार्दन है, उसके फैसले के बीच आप खड़े न हों। 1952 और 2024 के बीच भारत की जनता ने कम चुनाव नहीं लड़े? यह 18वीं लोकसभा का चुनाव मतदाता करने जा रहा है। विपक्ष तो मोदी के सामने बौना है। फिर विपक्ष में मुझे एक भी मोदी दिखाई नहीं देता। आज 2024 के चुनावों में ‘इंडिया’ गठबंधन भी कुछ करेगा, ऐसा दिखाई ही नहीं देता। मोदी एक ही स्वर और एक ही आवाज में पिछले दो महीनों से एक-एक दिन में चार चुनावी सभाओं को संबोधित  कर रहे हैं। कोई थकावट भी मोदी के चेहरे या शरीर पर नहीं है। आज विपक्ष के पास कौन मोदी के बराबर का नेता है? शून्य! विपक्ष लोकतंत्र की क्या रक्षा करेगा? ऊपर से टी.वी. चैनल चुनावी रुख का पता ही नहीं चलने दे रहे। मतदाता दुविधा से गुजरा है। 

एक समय हुआ करता था जब संसद में विपक्षी नेता गरजते थे तो किसी लौजिक पर, सिद्धांत पर। आज की राजनीति छीना-झपटी की राजनीति है। कौन किसके साथ है। पता ही नहीं चलता। सुबह एक पार्टी में और शाम को वही व्यक्ति दूसरी पार्टी में हार डलवा रहा है। बिखर गई राजनीति। राजनीति स्वार्थ की रह गई। सिद्धांतहीन विपक्ष और बिना लॉजिक के सत्ता पक्ष काम कर रहा है। लाल कृष्ण अडवानी, अटल बिहारी वाजपेयी, मधुलिमये पीलू मोदी, मधु दंडवते, चंद्रशेखर, राम धन, कृष्ण कांत, सुषमा स्वराज जैसे विपक्षी नेता ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे। राम मनोहर लोहिया, संसद में ऐसे तथ्यों से बोलते थे कि पंडित नेहरू प्रधानमंत्री होते हुए भी संसद में हक्के-भक्के रह जाते थे। अटल जी विपक्षी नेता के रूप में बोलते थे तो संसद में सन्नाटा छा जाता था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी संसद और संसद के बाहर एक भव्य नेता दिखाई देते थे। 

आज विपक्ष ‘इंडिया’ गठबंधन बनाकर भी मतदाताओं को अपनी ओर नहीं खींच पाया। राहुल गांधी को सभी कांग्रेसी छोड़ गए। जनता की उम्मीदें विपक्ष से टूट गईं। लोकतंत्र का शृंगार विपक्ष नहीं बन पाया। आज 2024 में विपक्ष भी राजनीति में गाली दे रहा है। सत्तापक्ष भी गाली दे रहा है। सभी राजनेता एक-दूसरे पर ‘बिलो दा बैल्ट’ हिट कर रहे हैं। सिद्धांत न विपक्ष के पास रहा, न ही सत्ता पर सिद्धांत का कोई असर है। जनता के सपने 2024 के लोकसभा चुनाव में टूटते नजर आए। आज ‘इंडिया एलायंस’ से निवेदन करूंगा कि कोई जय प्रकाश नारायण ढूंढो, किसी वाजपेयी को पकड़ो।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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