Edited By ,Updated: 29 Nov, 2024 06:07 AM
अकाली दल के पिछले 100 वर्ष से भी अधिक समय के इतिहास के दौरान सिख पंथ और इसे कई बार बेहद कठिन दौर से गुजरना पड़ा। विशेषकर अंग्रेज हुकूमत के पसंदीदा महंतों से गुरुद्वारों का प्रबंध लेने के समय अंग्रेजी साम्राज्य के उत्पीडऩ को झेलना पड़ा, देश के विभाजन...
अकाली दल के पिछले 100 वर्ष से भी अधिक समय के इतिहास के दौरान सिख पंथ और इसे कई बार बेहद कठिन दौर से गुजरना पड़ा। विशेषकर अंग्रेज हुकूमत के पसंदीदा महंतों से गुरुद्वारों का प्रबंध लेने के समय अंग्रेजी साम्राज्य के उत्पीडऩ को झेलना पड़ा, देश के विभाजन के समय लाखों सिखों का कत्लेआम होना, पंजाबी सूबे की मांग के लिए भारत सरकार का विरोध झेलना, पंजाब के जल के मुद्दे को लेकर संघर्ष करना, 1984 में श्री दरबार साहिब अमृतसर में सैन्य कार्रवाई तथा दिल्ली और देश के विभिन्न भागों में हजारों सिखों का कत्लेआम किया जाना भी शामिल है।
इसके अतिरिक्त अकाली दल का 1928 में 3 भागों में बांटे जाना, 1939 में ज्ञानी खड़क सिंह और ऊधम सिंह नागोके की ओर से अलग-अलग दल बना लेना, 1967 में अकाली दल का संत फतेह सिंह और मास्टर तारा सिंह के दलों में बंट जाना, यह सब सिख पंथ के कठिन दौर की याद दिलाता है। परन्तु इन सभी घटनाओं के समय सिख नेतृत्व सिखों के हितों के लिए डट कर खड़ा रहा और सिख समुदाय का विश्वासपात्र बना रहा। परन्तु पिछले कुछ दशकों के दौरान सिखों से संबंधित कई मामलों में सिख नेतृत्व सिखों के हितों के खिलाफ खड़ा दिखाई दिया जिस कारण सिख समुदाय सिख नेतृत्व को कसूरवार मान रहा है।
यही कारण है कि सिख पंथ का प्रतिनिधित्व करने वाले शिरोमणि अकाली दल का नेतृत्व राजनीतिक संकट में उलझ गया है और पिछले चुनावों के दौरान मिली करारी हारों के बाद अकाली दल के पास सत्ता न होने के कारण पार्टी अध्यक्ष की पकड़ ढीली पड़ गई जिस कारण कई नेताओं ने बागी होकर अकाली दल सुधार लहर नाम का ग्रुप बनाकर सुखबीर बादल से इस्तीफे की मांग कर डाली। सुधार लहर के नेताओं ने श्री अकाल तख्त के जत्थेदार के पास पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और उनके साथियों के खिलाफ लिखती रूप में शिकायत कर डाली।इस शिकायत ने सुखबीर बादल और उनके साथियों को धार्मिक और राजनीतिक संकट में उलझा दिया। हालांकि शिकायत करने वाले नेता खुद भी इस चक्रव्यूह में उलझ चुके हैं। अकाली नेताओं के लिए यह संकट कोई अचानक ही पैदा नहीं हुआ। इस संकट के पीछे अकाली दल के नेताओं के सिख मर्यादाओं के खिलाफ चल कर किए गए कई ऐसे कार्य भी थे जिन्हें सिख पंथ बर्दाश्त नहीं कर रहा।
विशेषकर डेरा मुखी को माफी देने के लिए तख्तों के जत्थेदारों को कथित तौर पर चंडीगढ़ बुलाना और डेरा मुखी को माफ करना, बहबलकलां और कोटकपूरा गोलीकांड, डेरा मुखी की माफी को उचित ठहराने के लिए एस.जी.पी.सी. की ओर से अखबारों में इश्तिहार देना, इजहार आलम को पार्टी में बड़े पद पर बिठाना और सुमेध सिंह सैनी को पंजाब का डी.जी.पी. लगाने जैसे अनेकों फैसलों ने सिख संगत को अकाली दल से कोसों दूर कर दिया और अकाली दल का नेतृत्व आज की स्थिति में पहुंच गया। यहीं पर बस नहीं हुई अकाल तख्त पर शिकायत पहुंचने के बाद भी दोनों दल मुंह जुबानी तथा खुद को अकाल तख्त को समर्पित बताते रहे परन्तु वास्तव में आपसी जोर-अजमाइश में लगे रहे। श्री अकाल तख्त पर शिकायत करने के बाद सुधार लहर के नेताओं ने सुखबीर सिंह बादल तथा उनके साथियों के खिलाफ एक मुहिम छेड़ दी।
सुखबीर के साथियों ने भी अपने आपको सर्वोच्च बताने के लिए कोर-कमेटी, प्रतिनिधियों, जिलाध्यक्षों और वर्किंग कमेटी सदस्यों की ताकत का प्रदर्शन किया और सुधार लहर को कोई अहमियत नहीं दी क्योंकि अकाली दल बादल के नेताओं ने यह समझ लिया कि इनके पास हर तरह का बहुमत है। बेशक कानूनी तौर पर अकाली दल बादल के नेताओं का यह सोचना बिल्कुल ठीक था परन्तु यह नेता इस बात को भूल गए कि सिख संगत, सिख रहित मर्यादा और सिखी मान्यताओं की अवहेलना कदाचित बर्दाश्त नहीं कर सकती। इसी कारण अकाल तख्त के जत्थेदार ने सिख संगत के विरोध को देखने के बाद सुखबीर के सपष्टीकरण को विचार कर उसे ‘तनखाइया’ घोषित कर डाला।इस सारे घटनाक्रम में सिख पंथ को एक बार फिर से मायूसी के आलम में पहुंचा दिया क्योंकि एक तो सुखबीर को तनखाइया घोषित किए जाने को एक लम्बा अर्सा हो गया था और दूसरा कई नेता तो तख्तों के जत्थेदारों पर भी इल्जाम लगाने में लगे हुए थे।
यहां तक कि तख्त श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने इस्तीफा भी दे दिया मगर अकाल तख्त के जत्थेदार की दखलअंदाजी के बाद उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया। परन्तु गत दिनों श्री अकाल तख्त के जत्थेदार की ओर से अकाली दल की 10 वर्ष की सरकार के समय रहे मंत्री, कोर कमेटी सदस्य और एस.जी.पी.सी. की उस समय की अंतरिम कमेटी सदस्यों को 2 दिसम्बर को श्री अकाल तख्त पर पेश करने के आदेश दिए जाने के अतिरिक्त तत्कालीन जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह, ज्ञानी गुरमुख सिंह और ज्ञानी इकबाल सिंह को भी 5 दिनों में स्पष्टीकरण देने के आदेश को सिख समुदाय सकारात्मक संकेत मान रही है।
इसलिए 2 दिसम्बर को सिंह साहिब बेशक कोई फैसला करें या न करें मगर श्री अकाल तख्त की इस कार्रवाई के साथ सिख समुदाय को श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी, डेरा प्रमुख को माफी दिए जाने और गोलीबारी कर सिख नौजवानों को निशाना बनाने के जिम्मेदार नेताओं को पंथक भावनाओं और सिख मर्यादाओं के अनुसार जल्द ही ‘तनख्वाह’ लगने की उम्मीद जरूर जगी है।-इकबाल सिंह चन्नी
(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)