Edited By ,Updated: 16 Sep, 2024 04:56 AM
हालांकि पिछले समय के दौरान इंगलैंड, जर्मनी और फ्रांस तीनों ने ही अपने-अपने लम्बी दूरी के मिसाइल यूक्रेन को दिए हैं परंतु रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में अभी तक यूक्रेन ने इनका इस्तेमाल नहीं किया है। 300 किलोमीटर रेंज वाले ‘अमरीकी आर्मी टैक्टीकल...
हालांकि पिछले समय के दौरान इंगलैंड, जर्मनी और फ्रांस तीनों ने ही अपने-अपने लम्बी दूरी के मिसाइल यूक्रेन को दिए हैं परंतु रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में अभी तक यूक्रेन ने इनका इस्तेमाल नहीं किया है। 300 किलोमीटर रेंज वाले ‘अमरीकी आर्मी टैक्टीकल मिसाइल सिस्टम’ (एटकैम्स) और फ्रांस के ‘स्कैल्प’ मिसाइल की रेंज 250 किलोमीटर, जर्मनी के मिसाइल ‘टारस’ की रेंज 300 किलोमीटर तथा इंगलैंड के मिसाइल ‘स्टॉर्म शैडो’ की रेंज 250 किलोमीटर है। अभी तक यूक्रेन और रूस दोनों ही ड्रोनों की सहायता से एक-दूसरे के विरुद्ध हमले कर रहे हैं जिनकी रफ्तार मिसाइलों की तुलना में काफी कम होती है। यूक्रेन के ड्रोन रूस के ठिकानों पर पहुंचने में आम तौर पर 20 मिनट लेते हैं जिन्हें दूर से ही नजर आ जाने के कारण रूस अपनी एंटी मिसाइल गनों की सहायता से बीच में ही नष्ट कर रहा है। इसके विपरीत उक्त मिसाइलों की रफ्तार अत्यंत तेज होने के कारण ये 6 मिनट में ही अपने निशाने तक पहुंच सकते हैं तथा इन्हें ढूंढना और इनका पता लगाना भी मुश्किल है।
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की यह मांग कर रहे हैं कि उन्हें रूस के विरुद्ध इन मिसाइलों के इस्तेमाल की अनुमति दी जाए। यूक्रेन के पास ये मिसाइल होने के बावजूद अभी वह इनका इस्तेमाल नहीं कर पाया। इसका कारण यह है कि यूक्रेन को रूसी सेनाओं की तैनाती तथा उसे मिलने वाली कुमुक एवं रूसी सेना की गतिविधियों की जानकारी देने वाला सारा नेवीगेशनल डाटा तथा तकनीक तो अमरीका के पास है। जब तक अमरीका यूक्रेन को यह डाटा उपलब्ध नहीं करवाएगा, तब तक रूस के विरुद्ध यूक्रेन इन मिसाइलों को इस्तेमाल नहीं कर सकता। लिहाजा इसके लिए अमरीका की अनुमति लेनी जरूरी है। हाल ही में अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ इसी पर चर्चा करने के लिए इंगलैंड के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर वाशिंगटन गए थे, परंतु यूक्रेन की सहायता को लेकर दुविधा के कारण जो बाइडेन तथा कीर स्टारमर ने कोई संयुक्त बयान जारी नहीं किया है। अलबत्ता बाइडेन ने इतना अवश्य कहा है कि वे जेलेंस्की के साथ हैं।
इस सिलसिले में अमरीका के पूर्व विदेश मंत्री लॉर्ड किम डारोच ने एक बयान में कहा है कि अमरीका द्वारा यूक्रेन को ऐसा करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से पूरा नाटो संगठन रूस के विरुद्ध युद्ध से जुड़ जाएगा और इसका मतलब यह होगा कि समूचा यूरोप और अमरीका रूस के विरुद्ध युद्ध में उतर पड़ेगा। हालांकि रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कई बार इस युद्ध में परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की चेतावनी दी है परंतु उन्होंने अभी तक ऐसा किया नहीं है। यदि यूक्रेन लम्बी दूरी के मिसाइल इस्तेमाल करेगा तो फिर पुतिन को भी परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने से कौन रोक पाएगा? पुतिन के विदेश मंत्री ने भी कहा है कि पुतिन कुछ भी कर सकता है। अब संयुक्त राष्ट्र की आम सभा मेें फैसला होगा कि नाटो देशों द्वारा जेलेंस्की की सहायता की जाए या नहीं। जेलेंस्की का साथ देने का फैसला होने की स्थिति में नाटो देशों के रूस के साथ सीधे टकराव की नौबत आ सकती है क्योंकि रूस तो पहले ही तैयार बैठा है। रूस को 200 किलोमीटर दूर जाकर हमला करने वाली छोटी दूरी की 200 मिसाइलें उसका मददगार ईरान दे चुका है।
दूसरी ओर कुछ यूरोपियन देशों को लगता है कि अगर रूस को अभी नहीं रोका गया तो वह यूक्रेन के कुछ और क्षेत्रों पर कब्जा कर लेगा। सबसे महत्वपूर्ण क्रीमिया सहित यूक्रेन का एक तिहाई हिस्सा पहले से ही इसके पास है और इसने बाकी को बुरी तरह से नष्ट कर दिया है। इसलिए जब युद्ध विराम होगा तो रूस कब्जे वाले क्षेत्रों को नहीं छोड़ेगा।
वास्तव में लम्बी दूरी की मिसाइलों का उपयोग करने के समर्थकों का मानना है कि यह पुतिन जैसे सभी तानाशाहों के लिए एक सबक होगा, यहां तक कि चीन के लिए भी कि यदि आप संयुक्त राष्ट्र या वैश्विक व्यवस्था के नियमों को तोड़ते हैं तो दुनिया इसे स्वीकार नहीं करेगी। परन्तु एक-दूसरे की खींचातानी में तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है। उल्लेखनीय है कि दूसरे विश्व युद्ध में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। अत: यदि विश्व युद्ध न भी हो तो भी क्या यूरोप एक बड़े युद्ध के लिए तैयार है? पहले ही इसराईल तथा हमास एवं रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के कारण सब कुछ अस्त-व्यस्त हो चुका है। यदि यह टकराव जारी रहा तो सब देशों की अर्थव्यवस्था हिल जाएगी और इन सबसे भी बढ़ कर प्रश्र यह भी है कि इस युद्ध को रोकेंगे कैसे?