Edited By ,Updated: 16 Dec, 2024 05:47 AM
सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार साहिबान ने अकाली दल-भाजपा गठबंधन सरकार (2007 से 2017 तक) के 2 निरंतर कार्यकालों के दौरान अकाली दल के प्रमुख एवं तत्कालीन दिवंगत मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल, उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल,...
सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार साहिबान ने अकाली दल-भाजपा गठबंधन सरकार (2007 से 2017 तक) के 2 निरंतर कार्यकालों के दौरान अकाली दल के प्रमुख एवं तत्कालीन दिवंगत मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल, उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल, अन्य मंत्री, शिरोमणि कमेटी के सदस्यों और कई अन्य की ओर से की गई राजनीतिक और धार्मिक भूलों के बदले इन्हें ‘तनखईया’ करार देकर धार्मिक सजाएं सुनाईं। जत्थेदार साहिबान की ओर से सजा सुनाए जाने के कारणों में सरकार के कत्र्ताधत्र्ताओं की ओर से डेरा सच्चा सौदा सिरसा के प्रमुख गुरमीत सिंह उर्फ राम रहीम सिंह को श्री अकाल तख्त साहिब की ओर से सुनाई गई सजा से माफी दिलवाने के लिए तत्कालीन जत्थेदार साहिबान को घर बुलाकर दबाव डालने और इस कदम को उचित ठहराने के लिए समाचार पत्रों में विज्ञापन आदि देना भी शामिल है।
इसी कारण इस दोष के बदले सुनाई गई सजा में इन विज्ञापनों पर खर्च की गई राशि ब्याज सहित शिरोमणि कमेटी को वापस करने का आदेश भी शामिल है। आरोपी के मद्देनजर दिवंगत प्रकाश सिंह बादल को भी श्री अकाल तख्त साहिब की ओर से दिया गया सम्मान ‘फख्र-ए-कौम’ भी वापस करने का आदेश सुनाया गया है। अकाली दल-भाजपा सरकार की ओर से किए गए राजनीतिक गुनाहों में आतंकवाद के दौर में सिख युवकों को मारने वाले पुलिस अधिकारियों को भी बतौर ईनाम पदोन्नति देने और चुनावों में उनके रिश्तेदारों को टिकट देना भी शामिल है।
श्री अकाल तख्त साहिब की ओर से सुनाई गई इन सजाओं के बारे में विभिन्न राजनीतिक नेताओं और व्यक्तियों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। परन्तु यह एक हकीकत है कि श्री अकाल तख्त साहिब के इन फैसलों के केवल अकाली राजनीति के ऊपर ही नहीं बल्कि देश और पंजाब की समस्त राजनीति पर और विशेषकर आम सिख समुदाय की सोच पर दूरगामी प्रभाव जरूर पड़ेंगे। आम सिखों की राय है कि सिख धर्म की परम्पराओं के अनुसार श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार साहिबान सिख धर्म के भीतर उठे धार्मिक विवादों पर सिख परम्पराओं की अवहेलना के बारे में धार्मिक नजरिए से हुकमनामे जारी करें। इस तरह के फैसले अतीत में भी होते आए हैं। यह अलग बात है कि श्री अकाल तख्त के कई हुकमनामों को कट्टरपंथी सिखों ने स्वीकार नहीं किया।
किसी भी धर्म निरपेक्ष तथा लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर सरकारों की कार्यशैली संवैधानिक मर्यादाओं के अनुसार ही चलती है न कि किसी विशेष धर्म की परम्पराओं या उस धर्म से संबंधित लोगों की आस्था के अधीन चलती है। राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवादों के बारे में अपना फैसला देने के समय भी शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों की ओर से न्यायिक प्रक्रियाओं और तथ्यों की अनदेखी करते हुए बहुसंख्यक लोगों की धार्मिक आस्था को आधार बनाया गया था। देश के संविधान में अंकित धर्म निरपेक्ष और लोकतांत्रिक नियमों की पालना करना प्रत्येक भारतवासी का कत्र्तव्य है। धर्मनिरपेक्ष का नियम सभी लोगों को अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी धर्म को मानने या न मानने की स्वतंत्रता देता है।
1947 में देश का बंटवारा धर्म को आधार बनाकर किया गया था। संकीर्ण राजनीतिक सोच का भुगतान अभी तक पूरा देश कर रहा है। पंजाब के अंदर खालिस्तानी लहर के भयानक दौर में धर्म और राजनीति को एक साथ करने के कारण लोगों के मनों के ऊपर अंकित गहरे जख्म अभी तक रिस रहे हैं। आतंकवाद के काले दौर में अलगाववादी तत्वों की ओर से किए गए हमलों में मारे गए हजारों बेगुनाह लोगों में सभी राजनीतिक पाॢटयां, धर्म और जातियों के लोग शामिल थे। उस समय की केंद्र सरकार ने अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए केंद्रीय एजैंसियों का इस्तेमाल करने के साथ स्थिति को और भी गंभीर तथा पेचीदा बनाने का गुनाह किया था। केंद्र सरकार की ओर से आतंकवाद का सामना करने के नाम पर श्री दरबार साहिब पर ‘आप्रेशन ब्लू स्टार’ के तहत सैन्य कार्रवाई की गई। किसी भी सरकार की ओर से राजनीतिक-प्रशासनिक निर्णय (गलत या सही) देश के संविधान के अनुसार समस्त देश और राज्यों के लोगों के प्रति बनती जिम्मेदारी के अंतर्गत ले जाते हैं। बेशक ऐसे निर्णय कड़वे ही समझे जाएं परन्तु ज्यादातर विशेष हालातों में लोगों और देश की सुरक्षा के लिए ऐसे निर्णय लेने जरूरी बन जाते हैं।
श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार साहिबान ने पुलिस की ओर से बेगुनाह सिख युवकों के खिलाफ की गई कार्रवाइयों के कारण तत्कालीन अकाली-भाजपा सरकार के मुख्यमंत्रियों की कड़े शब्दों में निंदा की है परन्तु जिन हथियारबंद लोगों ने अनेकों बेगुनाह हिंदू-सिखों, अकाली नेताओं, धार्मिक शख्सियतों और राजनीतिक नेताओं के बेरहमी से कत्ल किए हैं उनके बारे में एक शब्द भी न बोलना सिख परम्पराओं और शिक्षाओं के अनुकूल नहीं हैं। क्या पंजाब सरकार या अन्य कोई भी सरकार अपना कार्यकाल चलाते समय लोगों के प्रति संवैधानिक जिम्मेदारी निभाते हुए ‘पंथ के नाम पर या फिर कोई धर्म आधारित भेदभाव कर सकती है?’ सिख धर्म के अनुयायी और समूह सिखों को भी नम्रता के साथ अर्ज की जाती है कि वे अपने धर्म के प्रति पूरी श्रद्धा और सम्मान कायम रखते हुए राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में समानता वाले समाज का निर्माण करने के लिए दोगले और मौकापरस्त लोगों से दूर रहें।-मंगत राम पासला