सुनीता विलियम्स : कुछ लोग सितारों को छूने का सपना देखते हैं

Edited By ,Updated: 31 Mar, 2025 05:06 AM

sunita williams some people dream of touching the stars

सुनीता विलियम्स, अंतरिक्ष यात्री बैरी विल्मोर के साथ  केवल प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए ही नहीं घूमी थीं। उन्होंने अंतरिक्ष में 286 दिन तक चहलकदमी की। अपने मिशन के दौरान 121,347,491 मील की यात्रा की तथा पृथ्वी के चारों ओर 4,576 परिक्रमाएं पूरी कीं।...

सुनीता विलियम्स, अंतरिक्ष यात्री बैरी विल्मोर के साथ  केवल प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए ही नहीं घूमी थीं। उन्होंने अंतरिक्ष में 286 दिन तक चहलकदमी की। अपने मिशन के दौरान 121,347,491 मील की यात्रा की तथा पृथ्वी के चारों ओर 4,576 परिक्रमाएं पूरी कीं। उन्होंने दुनिया को दिखाया कि जब कोई मिशन योजना के अनुसार नहीं चलता तो धैर्य और लचीलापन कैसा दिखता है। विलियम्स की नवीनतम अंतरिक्ष यात्रा तकनीकी खराबी के कारण अप्रत्याशित रूप से आगे बढ़ गई। बोइंग स्टारलाइनर कैप्सूल की खराबी के कारण अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आई.एस.एस.) पर उनका प्रवास बढ़ गया और इसलिए राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (नासा) को उन्हें और विल्मोर को पृथ्वी पर वापस लाने के लिए स्पेस एक्स के क्रू ड्रैगन के साथ एक योजना तैयार करनी पड़ी। जो मामला 8 दिन का होना था, वह 9 महीने लंबा हो गया। यह सिर्फ  सहनशक्ति की परीक्षा नहीं थी बल्कि एक ऐसा क्षण था जिसने भारत, अंतरिक्ष और मानवता को इस तरह से जोड़ा, जिसकी हम अभी सराहना करना शुरू कर रहे हैं।

भारतीय पिता के घर जन्मी विलियम्स का अंतरिक्ष प्रवास दृढ़ संकल्प और दृढ़ता की एक प्रेरणादायक कहानी है। वह एक महिला अंतरिक्ष यात्री द्वारा सबसे अधिक अंतरिक्ष चहलकदमी करने का रिकार्ड रखती हैं। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि 59 वर्ष की उम्र में उन्होंने असाधारण कार्य किया है। वह एक निर्विवाद चैंपियन और सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष के विशाल शून्य में भी अपनी जड़ों को हमेशा अपने साथ रखा है। अपनी विरासत के प्रति उनका समर्पण (भगवान गणेश की मूर्ति और भगवद गीता को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक ले जाना) सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है बल्कि यह याद दिलाता है कि आस्था और विज्ञान विरोधी शक्तियां नहीं हैं  बल्कि अज्ञात की खोज में पूरक मार्गदर्शक हैं। 

समोसे और भारतीय संस्कृति के प्रति उनका प्रेम उस भूमि के साथ उनके जुड़ाव को और मजबूत करता है, जिसने उन्हें पृथ्वी पर लौटते हुए उसी गर्व के साथ देखा  जैसा कि वह अपनी घरेलू अंतरिक्ष विजय के लिए रखती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में सिर्फ  एक आशाजनक खिलाड़ी नहीं है,यह एक प्रमुख दावेदार है। चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक चन्द्रमा लैंडिंग, मंगलयान की मंगल की कक्षा में सफलता, तथा आगामी गगनयान मिशन (भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष यान) अंतरिक्ष अन्वेषण के नियमों को पुन: लिख रहे हैं।

सुनीता विलियम्स की कहानी भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के लिए प्रेरणा है। उनका लचीलापन और विशेषज्ञता, अंतरिक्ष में मानव भेजने की भारत की महत्वाकांक्षा के अग्रदूत के रूप में काम करती है। लेकिन विलियम्स एक अंतरिक्ष यात्री से कहीं अधिक हैं। वह सटैम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) में महिलाओं और सटैम में आगे बढऩे की इच्छा रखने वाली युवा लड़कियों के लिए भी एक मार्गदर्शक हैं। जिस तरह भारत ने डा. टेसी थॉमस जैसे अग्रदूतों को जन्म दिया है जो भारत में मिसाइल परियोजना का नेतृत्व करने वाली पहली महिला वैज्ञानिक हैं  और रितु करिधाल जो  इसरो वैज्ञानिक और एयरोस्पेस इंजीनियर हैं, विलियम्स की यात्रा भी संकेत देती है। विलियम्स की यात्रा दुनिया भर की युवा लड़कियों को यह संकेत देती है कि अंतरिक्ष कोई पुरुष-प्रधान क्षेत्र नहीं है। यह वह स्थान है जहां लिंग नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प, बुद्धि और साहस सफलता को परिभाषित करते हैं। फैमिनिस्ट अप्रोच टू टैक्नोलॉजी और स्माइल फाऊंडेशन जैसे जमीनी स्तर के संगठन ‘सटैम’ में हाशिए पर पड़ी युवा लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए अथक प्रयास करते है, उन्हें शिक्षा, मार्गदर्शन और सामाजिक बाधाओं को तोडऩे के अवसर प्रदान करते हैं। इस तरह की पहल यह सुनिश्चित करती है कि अंतरिक्ष क्षेत्र में अग्रणी अगली पीढ़ी देश के हर कोने से आएगी, जिससे यह साबित होगा कि प्रतिभा की कोई सीमा नहीं होती।

सुनीता विलियम्स का योगदान प्रतिनिधित्व और अंतरिक्ष यात्रा से कहीं आगे तक फैला हुआ है। अपने आई.एस.एस. मिशन के दौरान, उन्होंने हैबिटेट-07 प्रयोग किया, जिसमें उन्होंने माइक्रोग्रैविटी में रोमेन लेट्यूस उगाया, ताकि यह समझा जा सके कि जल स्तर पौधों की वृद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है। सुनीता विलियम्स सिर्फ  अंतरिक्ष से वापस नहीं लौटीं, वह दृढ़ता की जीवंत प्रतिमूर्ति, संस्कृतियों के बीच एक सेतु तथा यह याद दिलाने वाली शख्सियत बनकर लौटी हैं कि असंभव केवल एक चुनौती है, जिस पर विजय प्राप्त की जानी है। उनकी कहानी भारत, अमरीका और विश्व की है। यह साहस, जिज्ञासा और इस अटूट विश्वास की कहानी है कि हमें आज जो क्षितिज दिखाई देता है, उससे भी आगे जाना है और जबकि भारत तीन दिवसीय मिशन के लिए 400 किलोमीटर की कक्षा में 3 सदस्यों के दल को भेजकर अपनी पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता के लिए तैयारी कर रहा है, एक बात स्पष्ट है कि  सुनीता विलियम्स ने हमें दिखा दिया है कि हम कितनी ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं। अब, इससे भी आगे जाने की हमारी बारी है।-हरि जयसिंह
 

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