चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सख्ती से अमल हो

Edited By ,Updated: 24 Sep, 2024 05:47 AM

supreme court s decision on child pornography should be strictly implemented

मल्टीनैशनल एडवाइजरी कम्पनी ई-वाई में काम के बोझ के तनाव से युवा लड़की की मौत पर हंगामा हुआ है, लेकिन ऑनलाइन गेम और पोर्नोग्राफी के डिजिटल वायरस से करोड़ों बच्चों और युवाओं की तबाही के खिलाफ सरकार और संसद दोनों का मौन, समाज और देश के लिए खतरनाक है।

मल्टीनैशनल एडवाइजरी कम्पनी ई-वाई में काम के बोझ के तनाव से युवा लड़की की मौत पर हंगामा हुआ है, लेकिन ऑनलाइन गेम और पोर्नोग्राफी के डिजिटल वायरस से करोड़ों बच्चों और युवाओं की तबाही के खिलाफ सरकार और संसद दोनों का मौन, समाज और देश के लिए खतरनाक है। खरबों डॉलर की पोर्नोग्राफी की मंडी की मोबाइल के माध्यम से घुसपैठ, पैगासस से भी ज्यादा खतरनाक है। निर्भया और अभी कोलकाता में महिला डॉक्टर जैसे रेप के अनेक मामलों में जांच रिपोर्ट से जाहिर है कि महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध के लिए नशे के साथ पोर्नोग्राफी की लत बड़े पैमाने पर जिम्मेदार है। 

इंटरनैट के वहशी बाजार में नग्नता और अश्लीलता के लिए बच्चों का बढ़ता कारोबारी इस्तेमाल पूरे समाज और देश के भविष्य के लिए खतरनाक है। सुप्रीम कोर्ट ने केरल और मद्रास हाईकोर्ट के पुराने फैसले को पलटते हुए चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाऊनलोड करना, देखना और प्रसारित करने को गंभीर अपराध माना है। सर्वोच्च अदालत के नए फैसले पर केंद्र सरकार और राज्यों को पूरी तरह से अमल करने की जरूरत है। 

पोर्नोग्राफी का धंधा पूरी तरह से अवैध : अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में पोर्नोग्राफी के प्रसार को संवैधानिक अधिकार का कवच देने के लिए टैक. कम्पनियां भारत में डिजिटल लॉबी को पोषित कर रही हैं। मुद्रित साहित्य, किताब, अखबार, फिल्म और टी.वी. में अश्लीलता और नग्नता रोकने के लिए भारत में बनाए गए कानून अब पोर्नोग्राफी के डिजिटल दानव के आगे बौने दिखते हैं। अंग्रेजों के समय बनाए गए औपनिवेशिक कानूनों के अनुसार आम लोगों की छोटी-छोटी बातें गंभीर अपराध के  दायरे में आ जाती हैं, लेकिन डिजिटल एप्स और विदेशी कम्पनियों के लिए मुक्त बाजार के नाम पर अपराध की खुली छूट है। जिस तरीके से गेम ऑफ स्किल्स की आड़ में बैटिंग और गैम्बलिंग के ऐप्स बच्चों पर कहर ढहा रहे हैं, उसी तरीके से पोर्नोग्राफी के प्रकोप से भारत में बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है। पोर्नोग्राफी की हैवानियत गैर-कानूनी होने के साथ बच्चों, महिलाओं और पूरे समाज के खिलाफ जघन्य अपराध है। 

राष्ट्रीय मानवाधिकार द्वारा एडवाइजरी के अनुसार बाल-यौन शोषण सामग्री के प्रसार पर अंकुश जरूरी है। पोर्नोग्राफी के लिए सार्वजनिक स्थानों पर उपलब्ध फ्री-वाई फाई का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल चिंताजनक है। पोर्नोग्राफी की मंडी में कई तरीके की आपराधिक गतिविधियां होती हैं। बच्चों और महिलाओं को ब्लैकमेल करके पोर्नोग्राफी के धंधे में धकेलना, पोर्नोग्राफी का निर्माण, वितरण और उसका कारोबार, नए बी.एन.एस. कानून, आई.टी. एक्ट और पोक्सो कानून के अनुसार ये सभी गम्भीर अपराध हैं, इसलिए सभी प्रकार की पोर्नोग्राफी के डाऊनलोड और प्रसार करने के खिलाफ सख्त आपराधिक कार्रवाई करने के साथ गिरोह में शामिल सभी एप्स के ऊपर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए,लेकिन पोर्नोग्राफी और गैर-कानूनी गेमिंग एप्स के कारोबार को रोकने में आई.टी. मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, रिजर्व बैंक और महिलाओं तथा बच्चों की सुरक्षा से जुड़े सभी विभाग विफल हो रहे हैं। 

नाबालिग बच्चों की इंटरनैट से सुरक्षा : चाइल्ड पोर्नोग्राफी को आपराधिक मानने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दूसरा पहलू बच्चों की वयस्कता से जुड़ा कानून है। गेमिंग, पोर्नोग्राफी और सोशल मीडिया से जुड़े एप्स कारोबार बढ़ाने के लिए छोटे बच्चों को फर्जी तरीके से अपने जाल में फंसा रहे हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 18 साल से कम उम्र के 43 करोड़ से ज्यादा बच्चे हैं। कांट्रैक्ट एक्ट और इंडियन मिजोरिटी एक्ट के अनुसार 18 साल से कम उम्र के नाबालिग बच्चे किसी भी प्रकार का अनुबंध नहीं कर सकते। 

इसी के अनुसार नाबालिग बच्चों को पी.पी.एफ. खातों में 7.1 प्रतिशत की बजाय सिर्फ 4 प्रतिशत ब्याज मिलने का नया सरकारी नियम आया है। इसलिए नाबालिग बच्चों को ऑनलाइन गेम के जाल में फंसाने वाले सारे एप्स और टैक. कम्पनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। साल-2013 में के. एन. गोविंदाचार्य मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में सरकार द्वारा दायर हलफनामे के अनुसार 13 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया में शामिल नहीं हो सकते। नियमों के अनुसार 13 से 18 साल की उम्र के बच्चे अभिभावकों की सहमति के अनुसार ही सोशल मीडिया ज्वाइन कर सकते हैं। वी प्रोटैक्ट ग्लोबल एलायंस की ‘ग्लोबल थ्रैट असैसमेंट रिपोर्ट’ के मुताबिक पिछले चार सालों में बाल-यौन शोषण सामग्री के प्रसार में 87 प्रतिशत बढ़ौतरी हुई है। 

स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के अनुसार हर 8 में से एक बच्चा ऑनलाइन यौन शोषण का शिकार है। ब्रिटेन के खुफिया एवं सुरक्षा संगठन जी.सी.एच.क्यू. और राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा केंद्र एन.सी.ए.सी. के अनुसार एप्पल और फेसबुक जैसी दिग्गज टैक कम्पनियां संदिग्ध कंटैंट की निगरानी करके बच्चों को सुरक्षित कर सकते हैं। अमरीका के सर्जन जनरल विवेक मूॢत के अनुसार सोशल मीडिया के नुक्सान से बच्चों को बचाने के लिए वाॄनग लेबल लगाने का वक्त आ गया है पिछले साल अक्तूबर में बच्चों की सुरक्षा के मामलों पर  आई.टी. मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोशल मीडिया कम्पनियों को चेतावनी जारी की थी लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। आई.टी. एक्ट और इंटरमीडियरी नियमों के अनुसार पोर्नोग्राफिक कंटैंट का भारत में प्रसार रोकने के लिए इंटरनैट सर्विस प्रोवाइडर की कानूनी जिम्मेदारी है उन नियमों के अनुसार गूगल और एप्पल प्ले-स्टोर से सभी गैर-कानूनी एप्स को हटाने के लिए ठोस आदेश पारित करके इस बारे में सरकार को ठोस शुरुआत करनी चाहिए। डिजीटल दानवों से बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट और सरकार की सख्ती के साथ अध्यापकों और अभिभावकों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट) 
 

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