Edited By ,Updated: 29 May, 2024 05:38 AM
राजस्थान के कई इलाकों में 50 डिग्री के पार तापमान से 48 घंटे में 21 लोगों की मौत जलवायु परिवर्तन के इस जानलेवा असर का दुखदाई संकेत है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व गुजरात जैसे राज्य भी लू से झुलस रहे हैं। भीषण गर्मी के प्रकोप से...
राजस्थान के कई इलाकों में 50 डिग्री के पार तापमान से 48 घंटे में 21 लोगों की मौत जलवायु परिवर्तन के इस जानलेवा असर का दुखदाई संकेत है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व गुजरात जैसे राज्य भी लू से झुलस रहे हैं। भीषण गर्मी के प्रकोप से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश व कश्मीर के जंगलों में लगी आग ने पहाड़ी इलाकों का पारा भी चढ़ा दिया है।
मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों में उत्तर-पश्चिमी भारत के कई इलाकों में पारा 50 डिग्री सैल्सियस के पार जाने की आशंका जताई है। बढ़ते तापमान से खेती, कंस्ट्रक्शन व औद्योगिक कार्यों में लगे उन लाखों श्रमिकों के लिए खतरा है, जो खुली धूप में काम करने को मजबूर हैं। बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग खेती व कामगारों की उत्पादकता के साथ अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरे की घंटी है। इस कड़ी चुनौती से निपटने के लिए भारत को जलवायु परिवर्तन अनुकूल नए टिकाऊ समाधान अपनाने की जरूरत है।
कामगारों व अर्थव्यवस्था पर असर : भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान से कामगारों व अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले असर पर चिंता जताती वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक ‘हर साल बढ़ते तामपान की वजह से 2030 तक भारत में 16 से 20 करोड़ लोग घातक लू की चपेट में आ सकते हैं। भीषण गर्मी के प्रभाव से उत्पादकता व कार्यकुशलता में गिरावट से करीब 3.4 करोड़ लोगों का रोजगार छूटने का अनुमान है।’ खेती व कंस्ट्रक्शन सैक्टर के अलावा स्टील इंडस्ट्री व ईंट भट्टों पर काम करने वालों पर बढ़ते तापमान का सबसे ज्यादा असर पडऩे की संभावना है।
इंटरनैशनल लेबर आर्गेनाइजेशन (आई.एल.ओ.) के एक सर्वे मुताबिक भारत में बढ़ती गर्मी के कारण साल 1995 में खेती व कंस्ट्रक्शन सैक्टर में रोजमर्रा के काम के घंटों में 5.87 प्रतिशत कमी आई, जबकि उद्योगों में 2.95 प्रतिशत व सर्विस सैक्टर में 0.63 प्रतिशत घंटों का नुकसान हुआ था। 2030 तक खेती व कंस्ट्रक्शन में 9.04 प्रतिशत, उद्योगों में 5.29 प्रतिशत और सर्विस सैक्टर में 1.48 प्रतिशत घंटों के नुकसान का अनुमान है। काम करने वाली जगहों पर भीषण गर्मी के तनाव के कारण साल 1995 में दुनिया की अर्थव्यवस्था को 280 बिलियन अमरीकी डॉलर का नुकसान 2030 तक 2400 बिलियन डॉलर होने की आशंका है। ट्रांसपोर्टेशन के दौरान खाद्य पदार्थों का नुकसान 13 अरब डॉलर तक हो सकता है। ट्रांसपोर्टेशन में खाद्य पदार्थों व दवाओं की बर्बादी से निपटने के लिए वल्र्ड बैंक ने कोल्ड चेन डिस्ट्रीब्यूशन नैटवर्क को और अधिक बेहतर करने की सिफारिश की है। प्री-कूलिंग और रैफ्रिजरेटिड ट्रांसपोर्टेशन से खाद्य पदार्थों की 76 प्रतिशत बर्बादी घटाकर कार्बन के फैलाव को भी 16 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
टिकाऊ समाधान : वल्र्ड बैंक स्टड- ‘क्लाईमेट इनवैस्टमैंट ऑपच्र्यूनिटी इन इंडियाज कूलिंग सैक्टर’ के मुताबिक वैकल्पिक एंव आधुनिक एनर्जी एफिशिएंट टैक्नोलॉजी की मदद से लू के प्रकोप से निपटा जा सकता है। इस टैक्नोलॉजी पर 2040 तक 1.6 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर के निवेश की संभावनाएं हैं, जिससे पर्यावरण में ग्रीनहाऊस गैसों के फैलाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
वल्र्ड बैंक का सुझाव है कि एनर्जी एफिशिएंट टैक्नोलॉजी अगले दो दशक में पर्यावरण से कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर को भी काफी हद तक घटा सकती है। पर्यावरण को ठंडा रखने की भारत की ‘कूलिंग’ रणनीति बड़े पैमाने पर जनजीवन व आजीविका की रक्षा के साथ भारत को दुनिया के ‘ग्रीन कूलिंग मैन्युफैक्चरिंग हब’ के रूप में स्थापित कर सकती है। वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट ने कूलिंग के लिए एक टिकाऊ समाधान का सुझाव देते हुए 2040 तक सालाना 300 मिलियन टन कार्बन डाईऑक्साइड के फैलाव को घटाने का रोडमैप दिया है।
2019 में भारत के भी विभिन्न क्षेत्रों में टिकाऊ कूलिंग उपायों को लागू करने के लिए ‘इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान’ (आई.सी.ए.पी.) की शुरूआत की गई। इन उपायों में बिल्डिंग में इनडोर कूङ्क्षलग, कृषि एवं फार्मास्यूटिकल सैक्टर में कोल्ड चेन व यात्री वाहनों में एयरकंडीशनिंग शामिल हैं। इस योजना का लक्ष्य बिजली से चलने वाले कूलिंग उपकरणों में साल 2037-38 तक बिजली की खपत 25 प्रतिशत तक घटाना व ट्रेंड टैक्नीशियंस के लिए 20 लाख नौकरियों के नए अवसर पैदा करना है। इससे अगले दो दशक में रैफ्रीजरेंट की मांग भी करीब 31 प्रतिशत तक घटाने का लक्ष्य है।
जलवायु अनुकूल कूलिंग टैक्नोलॉजी : बढ़ते तापमान से जनजीवन प्रभावित न हो, इसलिए प्राइवेट व सरकारी भवनों में जलवायु अनुकूल कूलिंग टैक्नोलॉजी को एक स्टैंडर्ड के तौर पर अनिवार्य किए जाने की जरूरत है। बड़े पैमाने पर इसकी शुरूआत केंद्र सरकार के किफायती हाऊसिंग प्रोजैक्ट्स से की जा सकती है, जिसके तहत भविष्य में ग्रामीण इलाकों में बनने वाले 2.90 करोड़ व शहरों में 1.10 करोड़ घरों में जलवायु अनुकूल कूलिंग टैक्नोलॉजी अपनाई जा सकती है। जिला स्तर पर पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पी.पी.पी.) के तहत कूलिंग टैक्नोलॉजी में निवेश महत्वपूर्ण है। इस अत्याधुनिक टैक्नोलॉजी से एक सैंट्रल प्लांट में तैयार किए ठंडे पानी को एक साथ कई सारी बिल्डिंगों में अंडरग्राऊंड व अंडर वॉल इंसुलेटिड पाइप के जरिए ठंडा रखा जा सकता है। इससे एयर कंडीशनर के बिजली के बिल पर 20 से 30 प्रतिशत तक खर्च घटाने में मदद मिलेगी।
चंडीगढ़ में जलवायु परिवर्तन अनुकूल बनी पंजाब एनर्जी डिवैल्पमैंट एजैंसी (पेडा) की बिल्डिंग ने मिसाल कायम की है जहां आजकल की भीषण गर्मी में भी बगैर एयरकंडीशनर्स के ठंडक रहती है व सॢदयों में बगैर हीटर के गर्माहट। मजे की बात यह है कि पेडा बिल्डिंग में न तो कोई एयरकंडीशनर लगा है और न ही कोई हीटर। भविष्य में बनने वाली नई बिल्डिंग्स में भी पेडा के डिजाइन को बड़े पैमाने पर दोहराए जाने की जरूरत है।
आगे की राह : जलवायु परिवर्तन के साथ वर्कप्लेस को भी उसके अनुकूल बनाया जाए। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बुनियादी बदलाव लाने के लिए वल्र्ड बैंक बुनियादी ढांचे में निवेश पर जोर देता है। इससे जहां कृषि श्रमिकों का उच्च तापमान के संपर्क में आना कम हो सकेगा, वहीं उनका शारीरिक परिश्रम भी कम होगा। भारत का लक्ष्य पर्यावरण की ओजोन परत के लिए घातक एयरकंडीशनर्स व रैफ्रीजरेटर्स में कूलैंट के तौर पर इस्तेमाल होने वाले हाइड्रोक्लोरोफ्लूरो कार्बन के उत्पादन व प्रयोग को खत्म करने का है। वल्र्ड बैंक ने इस बात पर जोर दिया है कि टिकाऊ ग्रीन डिवैल्पमैंट को बढ़ावा दिया जाए, जिससे जानलेवा जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने में आसानी हो।(लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एवं प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं)-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)