टी.बी. मुक्त भारत : क्षय रोग के अंत की अनवरतयात्रा

Edited By ,Updated: 21 Mar, 2025 05:29 AM

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जैसे -जैसे हम 24 मार्च को विश्व क्षय रोग (टी.बी.) दिवस के करीब पहुंच रहे हैं, मैं भारत में टी.बी. उन्मूलन की हमारी सफल यात्रा की ओर दृष्टि दिलाना चाहता हूं। बीते साल दिसंबर में मैंने ग्रामीण महाराष्ट्र में एक सामुदायिक बैठक देखी, जहां एक युवा महिला...

जैसे -जैसे हम 24 मार्च को विश्व क्षय रोग (टी.बी.) दिवस के करीब पहुंच रहे हैं, मैं भारत में टी.बी. उन्मूलन की हमारी सफल यात्रा की ओर दृष्टि दिलाना चाहता हूं। बीते साल दिसंबर में मैंने ग्रामीण महाराष्ट्र में एक सामुदायिक बैठक देखी, जहां एक युवा महिला ने अपने ठीक होने की कहानी सांझा की। महिला ने गांव में शुरूआती तौर पर बीमारी का कलंक झेला, इसके बावजूद स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकत्र्ताओं ने पूरे इलाज के दौरान उसका साथ दिया और अब वह अपने समुदाय में टी.बी. जागरूकता से जुड़ी मुहिम की अगुवाई करती है। ये किस्सा बदलाव की मिसाल है कि स्थानीय स्तर पर की गई पहल भारत भर में टी.बी. को लेकर लोगों की सोच को कैसे बदल रही है, जो हर राज्य में टी.बी. उन्मूलन के प्रयासों को व्यवस्थित रूप से बढ़ाने की हमारी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को प्रतिबिंबित करता है।

देश में अभी भी क्षय रोग गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक बना हुआ है। भारत टी.बी. रिपोर्ट के नवीनतम संस्करण से ज्ञात होता है कि साल 2024 में इससे जुड़े मामलों में काफी इजाफा देखा गया, नोटिफाई किए गए मामलों की तादाद 25 लाख हो गई, बावजूद इसके 15-20 फीसदी मामले मौटे तौर अभी भी पकड़ में नहीं आते।  आर्थिक रूप से कमजोर समुदाय खासतौर से शहरी झुग्गियों और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग वक्त रहते डायग्नोस और पूरा इलाज करवा पाने में कई बड़ी बाधाओं का सामना कर रहे हैं। हालांकि टी.बी. के कामयाब इलाज की रफ्तार पूरे देश में 86 फीसदी सुधार के आंकड़े को छू रही है। इस बीमारी से आर्थिक पक्ष भी सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है, जिसके चलते कयास लगाया जा रहा है कि इससे सालाना तौर पर करीबन 13,000 करोड़ रुपए की मानवीय संसाधनों से जुड़ी उत्पादकता का नुकसान हो सकता है। ये आंकड़े मिशन की तात्कालिकता और टी.बी. उन्मूलन के लिए नए तरीकों की फौरी जरूरतों की ओर हमारा ध्यान खींचते हैं।

मोदी सरकार साल 2025 तक टी.बी. को खत्म करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। हमारा ये संकल्प है कि हम इस दिशा में तय वैश्विक लक्ष्य की निर्धारित समय सीमा से 5 साल पहले ही इसे हासिल कर लेंगे। यह प्रतिबद्धता सी.बी.एन.ए.ए.टी. और ट्रूनैट मशीनों के बढ़ते इस्तेमाल से डायग्नोस क्षमता के विस्तार एवं इलाज प्रोटोकॉल को मजबूत करने में दिखती है। टी.बी. मुक्त भारत अभियान जैसे सामुदायिक जुड़ाव के प्रयासों ने इस राह में अहम भूमिका निभाई है, साथ ही राष्ट्रीय टी.बी. उन्मूलन कार्यक्रम के लिए हाल ही में जारी 4,200 करोड़ रुपए का बजट आबंटन इस प्रयास को और सशक्त करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इस दिशा में जोर दिया है कि टी.बी. उन्मूलन के लिए न सिर्फ मैडीकल दखल बल्कि सामाजिक बदलाव भी जरूरी है, इसे जन आंदोलन से जुड़ा नजरिया भी समर्थन देता है। इसके अलावा निक्षय पोषण योजना ने 90 लाख से ज्यादा टी.बी. मरीजों को पोषण सहायता दी है, जो कि इलाज, तेज रिकवरी और बीमारी मुक्त होने की दिशा में महत्वपूर्ण घटक है।

हम मानते हैं कि क्षेत्र विशेष की जरूरतों को देखते हुए इस दिशा में समाधानों की दरकार है, हमने टी.बी. जागरूकता की पहल से जुड़ी अपनी रणनीतियों में विभिन्न राज्यों की आवश्यकताओं के हिसाब से विस्तार शुरू किया। इस फेहरिस्त में हमारा सफर हिमाचल प्रदेश से शुरू हुआ, जहां धर्मशाला में हुए एक क्रिकेट मैच के मार्फत हमने टी.बी. बीमारी से जुड़े मामलों की ओर लोगों का ध्यान खींचा, इससे सामुदायिक चर्चाओं का दौर शुरू हुआ साथ ही बीमारी से जुड़े बढ़ते मामलों को नोटिफाई किया जाने लगा। इस कामयाबी को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जहां विभिन्न दलों के सांसदों को एकजुट किया गया ताकि शहरी टी.बी. चुनौतियों और कार्यस्थल स्क्रीनिंग कार्यक्रमों की ओर ध्यान दिया जाए। इससे कॉर्पोरेट सांझेदारियां भी उभरकर सामने आईं। आयोजन के लिए दिल्ली को इसलिए चुना गया क्योंकि यह शहर टी.बी. नियंत्रण की चुनौतियों और अवसरों दोनों से लबरेज है। अब हम 22 मार्च 2025 को एम.सी.ए. क्रिकेट ग्राऊंड पर होने वाले अपने आगामी क्रिकेट मैच की तैयारियां कर रहे हैं। इस आयोजन में सांसदों के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों की नामचीन शख्सियतें शिरकत करेंगी। हमारी यह कवायद टी.बी. बीमारी से जुड़ी चर्चाओं को मुख्यधारा में लाने की हमारी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

टी.बी. उन्मूलन की मुहिम को परिधि में रखकर हमने जो क्षेत्रीय आयोजन शुरू किए थे, अब वह बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय आंदोलन में तबदील हो रहे हैं। इस दिशा में हमने राज्यीय स्तर पर जो कोशिशें शुरू की थीं, उन्होंने स्थानीय चुनौतियों का समाधान करते हुए टी.बी. उन्मूलन के राष्ट्रीय लक्ष्य के यज्ञ में अपनी अनन्य आहुति डाली। इन श्रमसाध्य प्रयासों के दौरान हमने भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता का पूरा सम्मान रखा, साथ ही हम टी.बी. रोकथाम, जल्द निदान और पूर्ण इलाज पर स्पष्ट ध्यान बनाए रखते हैं। हमारे प्रयास सरकार के कार्यक्रमों, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र, मीडिया और हर नागरिक के सहयोग पर निर्भर हैं। टी.बी. उन्मूलन की इस यात्रा में हमें समाज के हर स्तर पर सतत् परिश्रम करना होगा। हालांकि हमारे आयोजनों ने जागरूकता बढ़ाने में महत्ती भूमिका का निर्वाह किया है, ऐसे में अब यह जरूरी हो जाता है कि यह जागरूकता ठोस कार्रवाई में बदले। इस दिशा में टी.बी. मरीजों का साथ देने, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की पैरवी करने और स्क्रीनिंग कार्यक्रमों में हिस्सा लेने तक हर स्तर पर प्रत्येक नागरिक की भूमिका अहम है। अटूट प्रतिबद्धता, नवोन्मेषी दृष्टिकोण और सामूहिक कार्रवाई को एक साथ जोड़कर हम क्षय रोग की चुनौती को पार कर सकते हैं और ‘टी.बी. मुक्त भारत’ के सपने को आने वाली पीढिय़ों के लिए हकीकत में बदल सकते हैं।-अनुराग ठाकुर

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