टी.बी. हारेगा, देश जीतेगा

Edited By ,Updated: 17 Dec, 2024 05:17 AM

tb will lose the country will win

मुझे अच्छे से याद है कि करीब एक दशक पहले जब मैं मुम्बई गया था, वहां एक कार्यक्रम में मेरी मुलाकात अधेड़ उम्र के एक शख्स से हुई थी, उसने मुझे बताया कि वह टी.बी. बीमारी से जूझ रहा है। महानगरीय परिवेश में रहने के बावजूद उसका वजन बीमारी के चलते काफी कम...

मुझे अच्छे से याद है कि करीब एक दशक पहले जब मैं मुम्बई गया था, वहां एक कार्यक्रम में मेरी मुलाकात अधेड़ उम्र के एक शख्स से हुई थी, उसने मुझे बताया कि वह टी.बी. बीमारी से जूझ रहा है। महानगरीय परिवेश में रहने के बावजूद उसका वजन बीमारी के चलते काफी कम हो गया था। टी.बी. ने उसे इस कदर खोखला कर दिया था कि वह बमुश्किल चल- फिर पा रहा था। बीमारी से जुड़े मिथकों की वजह से उसके पड़ोसियों ने उसका बायकाट कर दिया था। उसकी कहानी से साफ हो जाता है कि शहरी इलाके जो कि विकास का केन्द्र माने जाते हैं, वे भी टी.बी. से जुड़ी भ्रांतियों, सामाजिक पूर्वाग्रहों और अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा सहायता से जूझ रहे थे। 

यह सोचकर मन सिहर गया था कि अगर मुंबई जैसे व्यस्त शहर में ऐसे चुनौतीपूर्ण हालात मौजूद हैं तो देश के ग्रामीण इलाकों की तस्वीर और भी भयावह होगी। तपेदिक (टी.बी.) लम्बे समय से सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय रहा है, ऐतिहासिक रूप से भारत में वैश्विक तौर पर इसकी मार ज्यादा देखी गई है। यह बीमारी असमान रूप से हाशिए पर रहने वाली आबादी को अपना शिकार बनाती है, जिससे सामाजिक-आर्थिक विषमताएं बढ़ती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन  की ओर से जारी 2022 की वैश्विक टी.बी. रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में इस बीमारी की मार झेल रहे कुल लोगों की तादाद में 28 फीसदी भारतीय हैं। जांच में देरी, आधा-अधूरा इलाज और इससे जुड़ी भ्रांतियों, मिथकों और अफवाहों जैसी चुनौतियां इसके उन्मूलन में बड़ी बाधा डालती हैं। टी.बी. रोकथाम की दिशा में हुई प्रगति इन्हीं कारणों से रुकावट का सामना करती है। साल 2020 में आई कोविड-19 महामारी ने स्वास्थ्य सेवाओं और संसाधनों पर दबाव डाला, जिसके चलते टी.बी. के मामलों का पता लगाने और उपचार की निरंतरता में बड़ी बाधा देखी गई। नतीजतन इस दिशा में सतत् और लक्षित प्रयासों की जरूरत महसूस की जाने लगी।

इन चुनौतियों के बावजूद भारत सरकार 2025 तक टी.बी. उन्मूलन के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में  जबरदस्त प्रगति कर रही है। साल 2023 में रिकॉर्ड 2.4 मिलियन टी.बी. से जुड़े नोटिफिकेशन दर्ज किए गए, जो कि कोरोना काल से पहले के पहचान स्तर के मुकाबले 18 फीसदी ज्यादा हैं। टी.बी. मरीजों को अच्छा खानपान और भावनात्मक सहयोग देने वाले ‘नि-क्षय मित्र’ जैसे कार्यक्रम इस बीमारी का इलाज करने के साथ इससे जुड़ी नकारात्मक सोच का खात्मा करने में मददगार साबित हो रहे हैं। इस दिशा में साल 2023 में इसके उन्मूलन के लिए जारी फंङ्क्षडग में 3,800 करोड़ रुपए का इजाफा किया गया।

यह प्रयास भारत सरकार के दृढ़ संकल्प को रेखांकित करता है, जिसकी मदद से मजबूत सामुदायिक जुड़ाव वाली रणनीतियां तैयार हुईं, जो कि टी.बी. को पूरी तरह खत्म करने और लाखों नागरिकों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में कारगर साबित होंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की अगुवाई में चलाया जा रहा स्वच्छ भारत अभियान टी.बी. उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने में अहम भूमिका निभा रहा है। स्वच्छता और सफाई पर ध्यान केन्द्रित करके इस पहल ने टी.बी. और अन्य संक्रामक रोगों के प्रसार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है। आज, जब मैं उस आदमी की कहानी पर विचार कर रहा हूं, तो यह पिछले 10 वर्षों में हमने जो परिवर्तन देखा है, उसके बिल्कुल विपरीत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में एन.डी.ए. सरकार ने लगातार स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता दी है।

राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एन.टी.ई.पी.) और ‘नि-क्षय मित्र’ जैसी पहलों ने सुलभ निदान उपकरण, मुफ्त उपचार और सामुदायिक सहायता सुनिश्चित की है, जिससे टी.बी. रोगियों से जुड़े परिणामों में काफी सुधार हुआ है। अब ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां टी.बी. उन्मूलन की कहानियां अब बहिष्कार की नहीं बल्कि उम्मीद की कहानियां हैं, जो टी.बी. मुक्त भविष्य की दिशा में भारत की सामूहिक प्रगति को दर्शाती हैं। प्रधानमंत्री मोदी  ने अपने कार्यकाल में टी.बी. उन्मूलन को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया है। उन्होंने तपेदिक के खिलाफ लड़ाई में शक्तिशाली हथियार के रूप में जागरूकता के महत्व पर लगातार प्रकाश डाला है। इसे पहचानते हुए मैंने समुदायों को जोडऩे और सामूहिक कार्रवाई को प्रेरित करने के लिए खेल की परिवर्तनकारी शक्ति को माध्यम बनाया है। खेल महाकुंभ जैसे मंचों के माध्यम से मैंने स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा दिया और टी.बी. के बारे में जागरूकता बढ़ाई है। अब इस माध्यम से सालाना 1 लाख से अधिक युवा जुड़ रहे हैं।
इन प्रयासों के अनुरूप, मैंने और मेरी टीम ने टी.बी. के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए संसद सदस्यों के बीच क्रिकेट मैच भी आयोजित किए हैं। टी.बी. मुक्त भारत को समर्थन देने के लिए 2017 की बात है, जब धर्मशाला में सांसद और बॉलीवुड अभिनेता एक साथ आए थे।

आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक भारत को टी.बी. मुक्त करने का एक लक्ष्य रखा है, और इसी लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक जागरूकता संदेश देने के लिए भारतीय संसद के सभी पार्टियों के चुङ्क्षनदा सांसदों ने टी.बी. मुक्त भारत अवेयरनैस क्रिकेट मैच के नाम से इस मैत्री क्रिकेट मैच में भागीदारी की। दुनियाभर में टी.बी. को मिटाने का लक्ष्य 2031 का है। अगर आप 2015 से लेकर अब तक देखें तो भारत में जो टी.बी. से जुड़ी मृत्यु में 38 प्रतिशत की गिरावट आई है वहीं जो नए केस हैं उनमें लगभग 18 प्रतिशत की गिरावट है। दुनियाभर में यह लगभग 8 प्रतिशत है। इसका मतलब भारत दुनिया से बेहतर कर रहा है, लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी टी.बी. आबादी भी भारत में ही है। अब इसका इलाज भी है और सरकार मुफ्त में दवाई भी देती है। 1,000 रुपए पोषण के लिए भी देती है और इसकी ट्रैकिंग भी की जाती है।-अनुराग ठाकुर

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