Edited By ,Updated: 29 Jul, 2024 06:28 AM
जीवन में माता-पिता के बाद अध्यापक का ही सर्वोच्च स्थान माना गया है। अध्यापक ही बच्चों को सही शिक्षा देकर ज्ञानवान बनाता है परंतु आज चंद अध्यापक अपनी मर्यादा को भूल कर बच्चों पर अमानवीय अत्याचार कर रहे हैं जो पिछले एक सप्ताह में सामने आए निम्न...
जीवन में माता-पिता के बाद अध्यापक का ही सर्वोच्च स्थान माना गया है। अध्यापक ही बच्चों को सही शिक्षा देकर ज्ञानवान बनाता है परंतु आज चंद अध्यापक अपनी मर्यादा को भूल कर बच्चों पर अमानवीय अत्याचार कर रहे हैं जो पिछले एक सप्ताह में सामने आए निम्न उदाहरणों से स्पष्ट है :
* 21 जुलाई को लखनऊ में ठाकुरगंज स्थित एक निजी स्कूल की अध्यापिका ने कक्षा 5 के छात्र के गाल पर एक मिनट में ताबड़तोड़ 8 थप्पड़ जड़ दिए और उसका कान भी पकड़ कर खींचा। कान से खून निकलने के कारण छात्र के पिता ने अध्यापिका के विरुद्ध पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई है।
* 22 जुलाई को उत्तर प्रदेश के बरेली के सरकारी प्राइमरी स्कूल में कक्षा 4 का एक छात्र जब अपनी अध्यापिका रजनी के लिए जामुन और नींबू तोड़ कर नहीं लाया तो गुस्से के मारे अध्यापिका ने पीट-पीट कर न सिर्फ उसकी चमड़ी उधेड़ दी बल्कि एक घंटे तक कमरे में बंद कर दिया।।
* 25 जुलाई को झारखंड के रांची में डी.ए.वी. गांधी नगर में पढऩे वाले 22 बच्चों को स्कूल के अध्यापक आयुष कुमार ने खेल प्रतियोगिता में अच्छा प्रदर्शन न करने पर बैल्ट और डंडों से इतनी बुरी तरह से पीट डाला जिससे अनेक छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए।
* 26 जुलाई को पंजाब में फिल्लौर के निकटवर्ती गांव लसाड़ा के सरकारी प्राइमरी स्कूल के 8 और 10 वर्ष के बच्चों को होमवर्क न पूरा करने पर अध्यापिकाओं ने न केवल थप्पड़ मारे बल्कि डंडों से पीटा। बच्ची की आंख के ऊपर डंडे से मारने और गाल पर उंगलियों के निशान देखे गए।
* 27 जुलाई को अलवर जिले के मालाखेड़ा थाना क्षेत्र के एक निजी स्कूल के अध्यापक ने कक्षा तीन के एक बच्चे के कान पर इतनी जोर से मारा कि खून बहने लगा। छात्र-छात्राओं के साथ अध्यापकों के एक वर्ग द्वारा इस तरह का आचरण इस आदर्श व्यवसाय पर एक घिनौना धब्बा व अध्यापक वर्ग में भी बढ़ रही नैतिक गिरावट का परिणाम है। कानूनी तौर पर ही अध्यापकों द्वारा बच्चों को शारीरिक दंड देने पर मनाही है तथा टीचर द्वारा किसी छात्र को मानसिक या शारीरिक यातना देने पर उसके विरुद्ध शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्रवाई के अलावा उन्हें नौकरी तक से बर्खास्त किया जा सकता है। लेकिन उक्त प्रावधानों के बावजूद अध्यापकों के एक वर्ग द्वारा मासूम बच्चे-बच्चियों पर इस तरह के अत्याचार को कदापि उचित नहीं कहा जा सकता।