Edited By ,Updated: 01 Aug, 2024 05:20 AM
नए संसद भवन के बाहर शीशे के घेरे में विरोध प्रदर्शन कर रहे पत्रकारों के एक समूह की तस्वीर मीडिया के प्रति मौजूदा सरकार के रवैये के बारे में बहुत कुछ बताती है।
नए संसद भवन के बाहर शीशे के घेरे में विरोध प्रदर्शन कर रहे पत्रकारों के एक समूह की तस्वीर मीडिया के प्रति मौजूदा सरकार के रवैये के बारे में बहुत कुछ बताती है। कोई भी सरकार पार्टी लाइन से हटकर, स्वतंत्र मीडिया नहीं चाहती क्योंकि सरकारें मीडिया को एक विरोधी के रूप में देखती हैं जो मुश्किल सवाल पूछने की हिम्मत करता है। हालांकि, मौजूदा सरकार ने मीडिया के खिलाफ असहिष्णुता के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाने के बारे में कोई पछतावा नहीं जताया है।
यह केवल उस चीज की पक्षधर है जिसे अब ‘गोदी मीडिया’ के रूप में जाना जाता है, जो इस पर ‘विशेष साक्षात्कार’ की बौछार करता है, लेकिन इस शर्त के साथ कि कोई असुविधाजनक सवाल नहीं पूछा जाएगा। इसका नतीजा हास्यास्पद सवाल हैं जैसे कि नेता की ‘ऊर्जा के पीछे का रहस्य’ या क्या उन्हें ‘आम खाना पसंद है’। इसी तरह सरकार संसद की कार्रवाई को केवल लोकसभा टी.वी. और राज्यसभा टी.वी. के चश्मे से दिखाना चाहेगी। जाहिर है कि ये सरकारी चैनल संसद के दोनों सदनों के अंदर क्या हो रहा है, इसकी बजाय स्पीकर का क्लोजअप दिखाकर सरकार का दृष्टिकोण ही दिखाते हैं। इसी कारण से और यह सुनिश्चित करने के लिए कि कार्रवाई के बारे में सही तथ्य जनता के सामने रखे जाएं, इसलिए लोकसभा और राज्यसभा के अंदर मीडिया की उपस्थिति आवश्यक है।
मीडिया गैलरी दुनिया भर के सभी संसद भवनों का अभिन्न अंग रही है। इस मामले में नए संसद भवन में भी मीडिया गैलरी में सीटों की संख्या अधिक रखी गई है, लेकिन सच्चाई यह है कि लगभग सभी सीटें खाली रहती हैं। इसके पीछे का कारण हास्यास्पद नहीं तो बहुत ही तुच्छ है। कोविड महामारी के दौरान संसद सदस्यों सहित अन्य सभी पर प्रतिबंध लगाए गए थे। हालांकि, महामारी के बहुत पहले खत्म हो जाने और संसद सदस्यों, कर्मचारियों और संसद में आने वाले आगंतुकों सहित सभी पर प्रतिबंध हटने के बावजूद, मीडिया गैलरी में प्रवेश अभी भी उन आधारों पर प्रतिबंधित है। स्थानीय प्रैस, छोटे सैटअप, डिजिटल मीडिया, स्वतंत्र मीडिया और पेशेवर पत्रकार सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
कई वरिष्ठ पत्रकारों को ऑनलाइन कार्रवाई देखने और अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए मजबूर किया जाता है जो संसद के दोनों सदनों में वास्तविक माहौल और कार्रवाई को प्रतिबिंबित नहीं करती है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया इस मुद्दे को लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति के संज्ञान में लाया है, लेकिन बहुत कम प्रतिक्रिया मिली है। उन्हें लिखे एक पत्र में, गिल्ड ने उनका ध्यान ‘संसद की कार्रवाई को कवर करने के लिए पत्रकारों की पहुंच को सीमित करने की जारी प्रथा’ की ओर आकृष्ट किया है। इसने बताया कि देश में संसद की कार्रवाई को कवर करने के लिए पत्रकारों की पहुंच को सीमित करने की प्रथा चल रही है।
संसद के दोनों सदनों में मीडिया कर्मियों की उपस्थिति पर प्रतिबंध जारी है और अब उनमें से केवल एक अंश को ही पारदर्शी प्रक्रिया या प्रक्रिया के बिना प्रवेश प्रदान किया जाता है। गिल्ड, जो वरिष्ठ संपादकों का एक स्वतंत्र संगठन है, ने बताया कि पत्रकारों को बेरोक-टोक पहुंच प्रदान करने का निर्णय संविधान सभा के समय से ही प्रचलन में था और पहली संसद द्वारा इसे जारी रखा गया। इसमें कहा गया है कि इसका उद्देश्य लोगों को उनके प्रतिनिधियों के काम, सदन के अंदर के घटनाक्रम और बाहर की गतिशीलता से मीडिया के माध्यम से अवगत कराना था, जो संसदीय लोकतंत्र में महत्वपूर्ण है।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा है कि वह लोकसभा की कार्य मंत्रणा समिति से इस मुद्दे को उठाने और लोकसभा में मीडिया के प्रवेश पर दिशा-निर्देश जारी करने के लिए कहेंगे। हालांकि, वह संसद के मुख्य द्वार के बाहर मीडिया कर्मियों को एक कांच के पिंजरे में सीमित करने के फैसले का बचाव करते दिखे, जिसका इस्तेमाल सदस्य भवन में प्रवेश करने और बाहर निकलने के लिए करते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें कई सांसदों से शिकायतें मिली हैं कि उन्हें प्रवेश और निकास द्वार पर मीडिया कर्मियों की भीड़ लगी दिखाई दी, जो सांसदों की बाइट लेने या उनका साक्षात्कार लेने में व्यस्त थे और इसलिए उन्हें एक कांच के घेरे तक सीमित रखा गया था। उनकी दलीलें अस्वीकार्य हैं क्योंकि मीडिया को सांसदों से विचार जानने के लिए स्वतंत्र पहुंच दी जानी चाहिए। उन्हें कांच के पिंजरे में सीमित करना निश्चित रूप से उचित या वांछनीय नहीं है। -विपिन पब्बी