Edited By ,Updated: 04 Sep, 2024 05:38 AM
हिमाचल जैसे छोटे से पहाड़ी राज्य की माली हालत पर देश भर में खूब बवाल मचा है। करीब 70 लाख की आबादी वाले राज्य में सवा दो लाख कर्मचारी व उनके वित्तीय लाभ इतने हावी हो गए हैं कि प्रदेश में विकास पर ब्रेक लगना स्वाभाविक है। पूरे देश में मीडिया चैनलों पर...
हिमाचल जैसे छोटे से पहाड़ी राज्य की माली हालत पर देश भर में खूब बवाल मचा है। करीब 70 लाख की आबादी वाले राज्य में सवा दो लाख कर्मचारी व उनके वित्तीय लाभ इतने हावी हो गए हैं कि प्रदेश में विकास पर ब्रेक लगना स्वाभाविक है। पूरे देश में मीडिया चैनलों पर हिमाचल के संकट का कारण ओल्ड पैंशन स्कीम यानी ओ.पी.एस. देने को माना जा रहा है। वहीं भाजपा को हरियाणा, जम्मू-कश्मीर में हो रहे चुनावों के मद्देनजर देश भर में कांग्रेस की ङ्क्षखचाई का मौका हाथ लग गया है।
दरअसल हिमाचल की वित्तीय हालत का मसला कोई ज्यादा पेचीदा नहीं है। न ही कोई सरकार या एक पार्टी या एक राजनेता इस हालात के लिए दोषी है। साल दर साल राज्य की आर्थिक स्थिति को बिगडऩे से बचाने के प्रयास ही नहीं हुए। वहीं राज्य में सरकारी नौकरी के लालच में लोगों ने सरकार से वित्तीय अपेक्षाएं बढ़ा लीं। बैक डोर एंट्री से लेकर रैगुलर करने, एरियर, डी.ए., पैंशन तक का लाभ लेने की लालसा ने वित्तीय स्थिति का बेड़ा गर्क कर दिया। हां, कांग्रेस के गले यह विषय इसलिए पड़ गया क्योंकि कांग्रेस ने चुनाव से पहले ओ.पी.एस. देने का वादा किया, बगैर यह जाने कि राज्य यह सब देने की स्थिति में नहीं है।
अब विधानसभा चुनावों व उप-चुनावों में हार के बाद भाजपा जाहिर तौर पर कांग्रेस का ‘फ्रीबीज’ का फार्मूला फेल करने के लिए सदन चलने भी कैसे देगी? लेकिन राज्य की गत कुछ वर्षों की वित्तीय स्थिति पर गौर करें तो स्थिति साफ हो जाती है कि पूर्व की कांग्रेस ही नहीं, भाजपा की सरकारों ने भी राज्य को अपने पैरों पर खड़ा करने की बजाय कर्ज की बैसाखियां पहना कर रखीं। अब जब सुखविंद्र सुक्खू ने ‘फ्री’ बंद करना शुरू किया तो चीखो-पुकार होनी शुरू हो गई।
वीरभद्र, धूमल, जयराम या सुक्खू, सभी को हिमाचल की दुर्दशा का अंदाजा था, परंतु धृतराष्ट्र की पट्टी ने हिमाचल को इस मुहाने पर खड़ा कर दिया। अब वित्तीय तथ्यों का आकलन करें तो तस्वीर साफ है। वास्तव में वर्ष 2018-19 में जयराम ठाकुर ने भाजपा का पहला बजट पेश किया, तब 41,440 करोड़ का बजट था। सुक्खू ने 2022-23 का बजट दिया 53,413 करोड़ रुपए का। तब भी 50 प्रतिशत बजट सैलरी, पैंशन, एरियर, भत्तों में जाता था और अब भी वहीं जाता है। रही ऋण की स्थिति, तो 2007 में हिमाचल का उधार 1977 था, फिर 2012 में 27598, 2017 में 46,386, 2022 में 69,122 और 2024 में 86,589 (सभी करोड़ रुपए में) का ऋण हो गया।
जब जयराम ने सत्ता संभाली तो सरकार 3500 करोड़ रुपए तो सिर्फ वार्षिक ब्याज भरती थी। चूंकि पैंशन (ओ.पी.एस.) बंद हो गई, तब बजट में पैंशन का शेयर घट गया और ब्याज का भी घटा लेकिन ऋण उसी प्रतिशत के हिसाब से चलता रहा। अब हिमाचल की खराब वित्तीय हालत के लिए दो पहलू और बढ़ गए। केंद्र में विभिन्न दलों की सरकारों की हिमाचल के प्रति बेरुखी भी रही, तो वहीं प्रदेश में राजनेताओं के वोट बैंक के लालच ने सरकारी नौकरी व लाभ का प्रलोभन देकर रखा। चाहे कांग्रेस ने पी.टी.ए. टाइप कर्मी बैक डोर से रखे, फिर भाजपा ने पक्के कर दिए और अब ऐसे कई किस्म के कर्मी डी.ए., एरियर, पैंशन मांग कर नेताओं की कमजोरी भांप गए हैं।
सबसे पहला झटका हिमाचल को एन.डी.ए. के समय में लगा, जब प्रदेश की योजना में विकास का हिस्सा (केंद्र व राज्य का) आधा-आधा कर दिया गया। यानी 50-50 प्रतिशत शेयर। जिसे 2015-2018 के समय दौरान 90-10 प्रतिशत किया गया। परंतु तब तक कर्ज 47 हजार करोड़ रुपए हो चुका था।(सभी आंकड़े वित्तीय वर्षों में हिमाचल बजट लेखों से हैं।) लेकिन जब जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री थे, तब बहुत सारे फंड नाबार्ड व केंद्र प्रायोजित स्कीमों के प्रदेश को मिलते रहे, पर सैलरी व ऋण सिरदर्दी बने रहे। उन्होंने अपने चुनावी वर्ष के अंतिम कार्यकाल (2022-2023) में बजट प्रस्ताव को करीब 41 से 51 हजार करोड़ कर दिया। यानी बजट 5 साल में सीधा लगभग 11 हजार करोड़ बढ़ा दिया।
अब वर्ष 2022-2023 में सुक्खू की कांग्रेस सरकार का बजट आया। सरकार का घाटा बढ़ता गया। इस बीच पे- रिवीजन भी हो गया और ओ.पी.एस. का वादा भी निभाना था। बस इन्हीं दो मुद्दों पर गाड़ी पटरी से नीचे उतरनी शुरू हो गई। जब सुक्खू मुख्यमंत्री बने और उन्होंने वर्ष 2023-24 का बजट पेश किया, तब भाजपा सरकार सिर्फ पैंशन व एरियर की 10 हजार करोड़ देनदारी छोड़ गई थी। तब प्रदेश के हर व्यक्ति पर औसतन 92,833 रुपए का कर्जा हो गया था। यहां कांग्रेस सरकार को एक झटका और यह लगा कि 2022-23 में केंद्र से मिलने वाला घाटा अनुमान और कम हो गया। यह घटकर करीब 9,000 करोड़ ही मिला, जो अगले साल और घट कर 3,000 करोड़ ही मिलेगा। दूसरा संकट यह हो गया कि सत्ता में आते ही कांग्रेस को 2003 से रिटायर हो चुके 5,000 सरकारी कर्मियों को पैंशन देनी पड़ गई, वहीं, पुरानी पैंशन स्कीम (ओ.पी.एस.) का 8,000 करोड़ केंद्र सरकार ने वापस करना था, जो हिमाचल को मिला ही नहीं। एन.पी.एस. से ओ.पी.एस. के बदलाव का झमेला गले पड़ा तो रिवाइज्ड पे-स्केल व एरियर सुक्खू को परेशानी में डाल गए।
मार्च 2022 की कैग की रिपोर्ट में साफ किया गया कि हिमाचल को जयराम के मुख्यमंत्री रहते वक्त जी.एस.टी. का 4,412 करोड़ रुपए का कंपनसेशन मिलना था, वह भी नहीं मिला। वहीं पूर्व भाजपा सरकार के समय करीब 2,000 करोड़ रुपए विभिन्न स्कीमों के खर्च ही नहीं हुए। कुल मिलाकर पिछले वर्षों में राज्य सरकारें अपने बटुए को संभाल ही नहीं पाईं और अब कर्मचारियों का हल्ला बोल पूरे देश में सुन रहा है। केंद्र व राज्य में विभिन्न दलों की सरकारें होने का खामियाजा हिमाचल भुगत रहा है। इस बार पहली दफा पहली तारीख को कर्मियों को वेतन व पैंशन नहीं मिली। आने वाला समय (कुछ सालों के लिए) भयावह हो सकता है। खासकर तब, जब हिमाचल को इस चक्रव्यूह से केंद्र बाहर न निकाले। पर वह होगा नहीं क्योंकि ओ.पी.एस. का कांग्रेसी फार्मूला विरोधी पाॢटयां कभी सफल नहीं होने देंगी और हिमाचल को ‘फेलियर मॉडल’ के तौर पर प्रस्तुत करती रहेंगी। यह हिमाचल जैसे पहाड़ी और खूबसूरत प्रदेश की विडंबना होगी!-डा. रचना गुप्ता